जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के द्वारा एक विशेष वर्कशॉप का आयोजन सी. जे. एम. व डी. एल. एस. ए. की सचिव कीर्ति वशिष्ठ की अध्यक्षता में ए. डी. आर. सैन्टर के कॉन्फ्रेंस हॉल में किया गया। कार्यक्रम का संचालन पैनल अधिवक्ता वी. पी. एस. सिद्धू ने किया। सदस्यों को जानकारी देते हुये सिद्धू ने बताया कि प्रत्येक वर्ष फरवरी माह के दूसरे गुरुवार को विश्व स्तर पर सेफर इंटरनेट डे मनाया जाता है, इसका उद्देश्य सरकारी व अर्ध सरकारी कार्यालयों के अधिकारियों व कर्मचारियों को इंटरनेट और सोशल मीडिया के सुरक्षित उपयोग के प्रति जागरूक करना है व साइबर फ्रॉड से सुरक्षित रखना है। उन्होंने बताया कि इस को मनाये जाने का मुख्य उद्देश्य इंटरनेट के सुरक्षित और जिम्मेदाराना उपयोग के प्रति जागरूकता फैलाना है, खासकर बच्चों और युवाओं के बीच। इंटरनेट एक शक्तिशाली माध्यम है, लेकिन इसके साथ साइबर अपराध, डेटा चोरी, ऑनलाइन धोखाधड़ी और साइबर बुलिंग जैसी समस्याएं भी बढ़ी हैं, इसलिए इस दिवस के जरिए लोगों को साइबर सुरक्षा, डिजिटल प्राइवेसी और इंटरनेट के सकारात्मक उपयोग के प्रशिक्षित किया जाता है। उन्होंने नेशनल महिला दिवस के बारे में जानकारी देते हुये कहा कि भारत में हर वर्ष 13 फरवरी को राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है, यह दिन भारत कोकिला सरोजिनी नायडू के जयंती के अवसर पर मनाया जाता है। इस दिन को महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए भी मनाया जाता है। यह दिवस महिलाओं के द्वारा अलग-अलग क्षेत्र में किए गए कार्यों और योगदान को लेकर समर्पित है। यह दिन 8 मार्च को मनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस से अलग है। उन्होंने बताया कि सरोजिनी नायडू के द्वारा महिला उत्थान के लिए किए गए कार्य सदा ही प्रेरणादायक रहेंगे। सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद में हुआ था। उनका योगदान कई क्षेत्रों में देखने को मिलता है, वह एक प्रसिद्ध कवयित्री के साथ-साथ महान स्वतंत्रता सेनानी भी थी, उन्होंने कई आंदोलन में भी भाग लिया, महिला उत्थान और महिलाओं से जुड़े अधिकारों को लेकर भी उनकी भूमिका बहुत अहम रही, वह भारत में पहली महिला राज्यपाल बनीं। पैनल अधिवक्ता अमिता कुमारी ने बताया कि आज बच्चों का यौन शोषण एक सामुदायिक चिंता का विषय हो गया है और इसके लिए ध्यान केंद्रित किया है। अगर हम भारत के कुल जनसंख्या की बात करें तो लगभग 37 प्रतिशत का हिस्सा बच्चों का है और वही विश्व की कुल जनसंख्या में 20 प्रतिशत हिस्सा बच्चों का बताया जाता है इसी क्रम में सालों से बाल यौन शोषण पर ध्यान आकर्षित करने और इसके आसपास की चुप्पी की साजिश को तोड़ने के लिए कई प्रयास किए गए हैं। इसी का परिणाम यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 एक ऐतिहासिक कानून बनाया गया है। पॉक्सो एक्ट-2012 की सभी धाराओं के बारे में भी विस्तार से बताया गया है, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने के लिए पॉक्सो जिसका पूरा नाम है प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट अधिनियम बनाया गया है। इस अधिनियम को महिला और बाल विकास मंत्रालय ने साल 2012 पोक्सो एक्ट-2012 के नाम से बनाया था। इस कानून के जरिए नाबालिग बच्चों के प्रति यौन उत्पीड़न, यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में कार्रवाई की जाती है। इस कानून के अंतर्गत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा निर्धारित की गई है। इस अवसर पर पैरा लीगल वालंटियर्स व पैनल अधिवक्ता उपस्थित रहे।
जानकारी देते पैनल अधिवक्ता……………..(डा. आर. के. जैन)