युवा पीढ़ी सबसे बड़े नशे मोबाइल की गिरफ्त में समा रही जो अत्यधिक चिंतनीय :- संजय जैन बड़जात्या कामाँ

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वर्तमान परिदृश्य पर दृष्टि पात करे तो यह लाइन आज के बच्चों पर सटीक बैठती है जिनका खाना,पीना,उठना, सोना यहाँ तक कि समय का हर पल मोबाइल के साथ ही होता है ।
आप किसी भी उम्र के बच्चों को देखिये,सभी आपको मोबाइल पर गेम्स खेलते हुये या अन्य अनावश्यक कार्यो में व्यस्त दिखायी देंगे। हर समय मोबाइल पर स्वयं को व्यस्त कर अन्य महत्वपूर्ण कार्यो से दूर होते जा रहे हैं। यहां मैं यह भी कहना चाहता हूं कि मोबाइल ने मानव जीवन को बहुत ही सरल तो बनाई है साथ ही संपूर्ण विश्व को एक क्लिक पर लाकर समेट दिया है। इसकी उपयोगिता भी निश्चित रूप से दिखाई देती है किंतु इसका अत्यधिक उपयोग इसकी भयावहता को इंगित करता हुआ नजर आता है। यू लगता है कि वर्तमान का यह सबसे बड़ा नशा बनकर उभर रहा है तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी।
पहले खेले जाने वाले परंपरागत खेल जैसे कंचे ,ताश, लंगड़ी टांग,कबड्डी,गिल्ली डंडा,सतोलिया आदि तो आज के समय के बच्चे जानते ही नहीं हैं बल्कि इन्होंने तो लूडो़ , सांप-सीढ़ी ,कैरम बिज़नेस और शतरंज जैसे इंडोर गेम्स भी खेलना बंद कर दिया है।इसके लिये सिर्फ तकनीक को दोष नहीं दिया जा सकता है ऐसी स्थिति उत्पन्न होने के लिये बहुत से कारण जिम्मेदार हैं।
पहले संयुक्त परिवारों में बच्चे दादा -दादी,ताऊ-ताई, चाचा-चाची,बुआ,बड़े भाई बहनों के बीच में खेलते- कूदते बड़े हो जाते थे। लेकिन अब एकल परिवारों के बढ़ते चलन ने छोटे बच्चों को अकेला कर दिया है ।
आजकल हर घर में एक या दो बच्चे ही होते हैं और दो बच्चों के बीच में भी उम्र का बड़ा अंतर होता है ।
इस कारण दोनों बच्चों की जरुरतें ,इच्छायें और शौक भी अलग होने से दोनों बच्चे सामंजस्य नहीं बिठा पाते हैं और अलग- अलग समय व्यतीत करते हैं।
परिवारों पर नजर डाले तो ज्यादातर महिलायें नौकरी पेशा होती हैं या एकल और अपने बच्चों को पूरा समय नहीं दे पाती हैं इसलिये उन्हें भी बच्चों के रोने , चिड़चिड़ेपन से खुद को बचाने के लिये बच्चों का मोबाइल में घुसे रहना सही लगता है। प्रारम्भ में स्वयं के द्वारा लगाया ये शोक बच्चों की बढ़ती उम्र के साथ नागवार गुजरने लगता हैं। किंतु बच्चे नशे की तरह मोबाइल का उपयोग करते हैं जिसके दुष्प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहे हैं।
कोरोना महामारी के बाद तो ट्रेंड में बड़ा परिवर्तन आया वर्तमान में बच्चों को गजेट्स एडिक्टेड बना दिया है। अधिकत्तर कोचिंगऔर हॉबी क्लासेज ऑनलाइन होने से बच्चों का अधिकांश समय मोबाइल और लैपटॉप पर ही निकलने लगा है और बच्चों को मोबाइल प्राप्त करने का अच्छा खासा बहाना भी मिला है कि ऑनलाइन क्लासेज आ रही हैं।
बचपन का रोग बढ़ती उम्र के साथ आवश्यकता में तब्दील होता जा रहा है और किशोर होती पीढ़ी परम्परागत खेलों से बहुत दूर होती जा रही है। साथ ही अनेको बीमारियों को स्वतः ही आमंत्रित कर रही है। एकाकीपन, चिड़चिड़ापन, अत्यधिक गुस्सा,जिद्दी स्वभाव,तहजीब से दूरी,शुष्क होती आंखे,बोझिल मन,स्मरण शक्ति का ह्रास,साइटिका जैसे अनेको समस्याओं का सामना कमोवेश सभी परिवारों को करना पड़ रहा है।आने वाले भविष्य पर निगाह डाले तो मोबाइल प्रेम सबसे बड़ी महामारी के रूप में विकरालता लिए दिखाई देने वाला है जिससे सावधान रहने की आवश्यकता है।
संजय जैन बड़जात्या,क्षेत्रीय अध्यक्ष अपनाघर आश्रम

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