युद्ध विकास नही विनाश का परिचायक,अहिंसा शांति ही समृद्धि की उन्नायक* संजय जैन बड़जात्या

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*विश्व शांति हेतु जीओ और जीने दो सिद्धान्त की प्रबल आवश्यकता*
मानवीय सभ्यता में शांति व अहिंसा ही विकास का द्वार खोलती हैं किसी भी सूरत में युद्ध नही,अपितु युद्ध तो मानवता के विपरीत विनाश का परिचायक है। आज युद्ध की आहट संपूर्ण विश्व को सहमा रही है पहले यूक्रेन जला तो रुस भी बहुत पीछे चला गया। उसके बाद जब गाजा पट्टी में हमास और इजरायल उलझे तो मानवता और विकास दोनों का बहुत बड़ा ह्रास हुआ। भारत पाकिस्तान की बड़ी समस्या विकराल रूप ले रही थी तो कुछ समय मे ही नियंत्रित कर लिया गया। किंतु वर्तमान में ईरान और इजरायल आपस मे युद्ध के मुहाने पर ही नही अपितु युद्ध मे उतर चुके हैं। अमेरिका ने इस भयावहता को और हवा दे दी है। एक तरफ शांति के नोबल पुरुष्कार पर दावा करने वाले सशक्त नेता ही युद्ध पर आमादा नजर आ रहे हैं।
        ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जैसे ऊपर वाले ने इस इंसान को बना कर बहुत बड़ी भूल की हो। आदिकाल से मानव लड़ता झगड़ता चला आ रहा है। पहले यह पत्थरों से लड़ता था, फिर धीरे-धीरे हथियारों के रूप में तलवार,भाले आदि का विकास होने लगा, हथियारों के विकास ने जब उन्नति की गति पकड़ी तो बंदूक,तोप-गोले आदि का तीव्रता से विकास होता चला गया। अब तो उससे भी कुछ आगे बढ़कर मिसाइल के साथ युद्ध हो रहा है। जो की संपूर्ण मानवता के लिए बहुत ही घातक है। विकास के चरम पर पहुंचने के बाद युद्ध लड़ने की शैली में भी परिवर्तन हुआ है। मिसाइल के साथ-साथ जैविक युद्ध और उससे भी कई गुणा मानवीय सभ्यता का ह्रास करने वाले *परमाणु युद्ध* की संभावनाएं अति प्रबलता के साथ आगे बढ़ रही हैं।
   किसी भी धर्म ग्रंथ में यह नहीं कहा गया की आप हिंसा का मार्ग अपनाओ, युद्ध की ओर अग्रसर हो,एक दूसरे का संहार करो,जैन धर्म के अंतिम व चौबीसवें तीर्थंकर ने तो सम्पूर्ण विश्व को *जीओ और जीने दो* का अमूल्य उपहार प्रदान किया है। अहिंसा परमोधर्म की विरासत हम सबको प्राप्त हुई है। हिन्दू,बौद्ध,ईसाई धर्म भी अहिंसा के प्रबल समर्थक हैं, तो फिर मानव में इन गुणों का विकास क्यों हुआ? क्यों मानव एक दूसरे के खून का प्यासा नजर आता है?  क्यों एक दूसरे पर राज करने की परिणति का विकास हो रहा है? आर्थिक भूख,स्वार्थ,अस्तित्व सिद्धि में क्यो मानवीय सवेंदनाओ का ह्रास हो रहा है?
   वर्तमान में वैश्विक विकरालता के मूल में एक छोटा सा कारण आबादी का एक बड़े हिस्से का नास्तिक हो जाना भी हो सकता है।   खैर प्रश्न विचारणीय है किंतु जवाब शायद शून्य है। इस शून्यता में भी यदि थोड़ा सा भी मंथन करें तो यह बात जरूर जहन में आएगी क्या युद्ध से कभी किसी का भला हुआ है? क्या युद्ध से विकास संभव हुआ है? क्या युद्ध के दौरान किसी भी देश ने उन्नति की है? युद्ध हमेशा विनाश करता है और भविष्य के लिए दुखों का महासागर छोड़ जाता है। एक ऐसी पीड़ा पीछे रह जाती है जिसे आने वाली पीढियों को भी भुगतना पड़ता है। खैर ऊपर वाला सद्बुद्धि प्रदान करें विश्व शांति की ओर अग्रसर हो यही हमारी भावना है।
संजय जैन बड़जात्या कामां,जैन गजट सवांददाता

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