यदि हम सोचने का ढंग बदल लें..
तो जिन्दगी हमारी उत्सव बन जाये..!आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज. हैद्राबाद /औरंगाबाद पियुष कासलीवाल नरेंद्र अजमेरा. भारत गौरव साधना महोदधि सिंहनिष्कड़ित व्रत कर्ता अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज एवं सौम्यमूर्ति उपाध्याय 108 श्री पीयूष सागर जी महाराज ससंघ का पदविहार
कुलचाराम हैदराबाद की और अहिंसा संस्कार पदयात्रा चल रहा है विहार के दौरान भक्तौ को प्रवचन
यदि हम सोचने का ढंग बदल लें..
तो जिन्दगी हमारी उत्सव बन जाये..!
जो स्वयं के बारे में हित और अहित की बात ना सोच सके, वो जीवन ऐसा है, जैसे — धोबी का गधा ना घर का ना घाट का।अरे बाबु! तुम तो समझदार हो, बुद्धि जीवी हो। तुम तो स्वयं के बारे में अच्छा–बुरा सोच सकते हो। बुरे से बच सकते हो। अच्छे को कर सकते हो। तुम्हारे साथ तो गधे जैसी कोई मजबूरी नहीं है। फिर क्यों तुम घर और घाट के बीच में भटक रहे हो। गलत फहमियों में जी रहे हो। तुम कौन हुये? पता है? — गधा।
गधा किसे कहते हैं-? “ग” याने गलत, “धा” याने धारणा। जो गलत धारणा में जीता है, वो गधा है। गधे की अनेक गलत धारणाएं हैं, जैसे – जब बह चौराहे पर खड़े होकर पंचम स्वर में अलाप भरता है, तो वह अपने आप को अनुराधा पौडवाल से कम नहीं समझता। ये पहली गलत धारणा। दूसरी — जब वह गांव के बाहर धूल में लौटता है, तो वह अपने आप को अमिताभ बच्चन का बाप से कम नहीं समझता है। तीसरी — गधे को “वैशाखी नन्दन” कहते हैं। पता है क्यों? गधा वैशाख माह में मोटा और आषाढ़ में पतला हो जाता है। इसलिए कि वह सोचता है देखो मैंने पुरी हरी घास खा ली, यह सोचकर मोटा हो जाता है। और आषाढ़ यानि बरसात में चारों ओर हरियाली देखकर पतला हो जाता है, इतनी हरी घास मैं कैसे खाऊँगा-? दिन रात इसी चिन्ता में वह एकदम कमजोर हो जाता है।
अब मैं तुमसे कह रहा हूँ – यदि तुम्हारे मन में, अपने प्रति, अपनों के प्रति, पड़ोसी के प्रति, परिवार के प्रति, मित्रो के प्रति, गुरु या धर्म के प्रति गलत धारणा रखते हो या तुम गलत धारणा में जीते हो, तो तुम भी _________…!!! पियुष कासलीवाल नरेंद्र अजमेरा औरंगाबाद