बूंदी—चित्तौड़गढ़ राष्ट्रीय राज्यमार्ग पर स्थित इस क्षेत्र में विक्रम संवत् 1226 का एक शिलालेख है, जिसके अनुसार भगवान पार्श्वनाथ को केवल ज्ञान प्राप्त होने से पूर्व कमठ द्वारा इसी स्थान पर उपसर्ग किया गया था। इसके बाद भगवान पार्श्वनाथ को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। यह शिलालेख विश्व का सबसे विशालतम शिलालेख माना जाता है।
इस क्षेत्र पर कुल 11 मन्दिर हैं। एक चौबीसी, समवाशरण रचना व 2 मानस्तम्भ हैं। यहां संतशाला व गणधर परमेष्ठी मन्दिर भी हैं। स्थानीय लोगों की मान्यता के अनुसार उज्जैन के व्यापारी जब यहां यात्रा करते हुये आये, तो उन्हें प्रतिमाओं के बारे में सपना आया। अगले दिन उनके द्वारा निश्चित स्थान पर खुदाई की गई और प्रतिमायें निकाली गईं। इसके बाद इस मन्दिर का निर्माण करवाया गया।
बिजोलिया नगर भीलवाड़ा जिले में स्थित है। उपरमाल के पठार पर स्थित बिजोलिया की प्रसिद्धि वहा स्थित ब्राह्मण और जैन मंदिरों और चट्टानों पर उत्कीर्ण शिलालेखो से भी ज्यादा भारतीय स्वतंत्रता से पूर्व यहाँ हुवे किसान आन्दोलन के कारण है, जिसमे विभिन्न प्रकार के 84 करो के लगाए जाने के कारण जमींदार के विरुद्ध स्थानीय किसानो ने आन्दोलन किया था। जिसका नेतृत्व साधू सीतारामदास और विजय सिंह पथिक ने किया था|बिजोलिया,मेनाल,जोगनिया माता का ये क्षेत्र प्राचीन समय में में मुख्यत चौहानों के अधीन रहा वहा स्थित प्राचीन मंदिरों का निर्माण चौहान शासको के काल में हुआ। बाद में गुहिलो के अधीन आ गया। महाराणा सांगा के समय सांगा ने खानवा के युद्ध में परमार अशोक की वीरता से प्रभावित होकर बिजोलिया क्षेत्र उन्हें जागीर के रूप में प्रदान कर दिया गया जिसके बाद में स्वतंत्रता तक ये पंवारो की जागीर में ही रहा। बिजोलिया की कोटा से दुरी 85 किलोमीटर, बूंदी से 50 किलोमीटर, चित्तौडगढ से 100 किलोमीटर है।