आजकल व्यक्ति सुविधा भोगी के साथ सुलभ साधन अपनाना चाहता हैं जिस कारण जिम का चलन प्रचुरता से होने लगा जिससे अनेकों को लाभ भी हुआ पर उसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं आपने योग की उपयोगिता को जोड़कर बहुतों को प्रेरणा दी इसके लिए साधुवाद .
व्यायाम क्या हैं ,कितनी मात्रा में करना चाहिए ,किसको करना चाहिए और किनको नहीं और क्या आहार होना चाहिए .?
व्यायाम —
शरीरचेष्टा च चेष्टा स्थैर्यार्थ बलवर्धनी ,देहव्यायाम संख्याता मात्रया तां समाचरेत .(चरक सूत्रस्थान ७/३१ )
शरीर को जो चेष्टा मन के अनुकूल शरीर में स्थिरता लाने वाली और बल बढ़ाने हो उसे शरीरीक
व्यायाम कहते हैं .इसे उचित मात्रा में सेवन करना चाहिए .
लाघवँ कर्मसमर्थयर स्थैर्य दुखसहिष्णुता .दोषक्षायाग्नि वृद्धिश्च व्यायमादुपजायते .
व्यायाम करने से देह में हल्कापन .कार्य करने की शक्ति ,शरीर में स्थिरता ,दुःख सहने की क्षमता ,वृद्ध दोषों की क्षीणता और अग्नि की वृद्धि होती हैं .
श्रमः क्लमः क्षयस्त्रष्णा रक्तपित्तम प्रातमक:.अतिव्यायममतः कासो जवरश्चदिश्च जायते .
मात्रा से अधिक व्यायाम करने से थकावट ,क्लम (बिना परिश्रम का थकावट ) रसादि धातुओं का क्षय ,प्यास की अधिकता ,रक्तपित्त रोग ,प्रतमक श्वाश ,कास ,ज्वर वमन रोग हो जाते हैं .
स्वैदागमः श्वासवृद्धिर्गात्रानां लाघवँ तथा .हृदयाघुपरोधश्च इति व्यायाम लक्षणम .
स्वेद का निकलना ,श्वास की वृद्धि ,शरीर के प्रत्येक अंग में लघुता ,हृदयादि प्रदेश में बाधा (हृदय -गति का तीव्र होना )ये व्यायाम के लक्षण हैं .
व्यायाम .हंसना अधिक बोलना ,रास्ता चलना ,मैथुन ,जागना आदि कर्म यदि अभ्यास करने से उचित हो गया हो तो भी बुद्धिमान व्यक्ति को इनका सेवन अधिक मात्रा में नहीं करना चाहिए .शक्तिशाली व्यक्तियों को भी अति परिश्र्म /व्यायाम नहीं करना चाहिए जैसे हाथी को खींचने से सिंह की मृत्यु हो जाती हैं .व्यायाम करने की मात्रा के बारे में बताया गया हैं की जितनी मेहनत करने से पसीना हमारी कांख(एक्सिला)में आता हैं उससे आधी करना चाहिए .
जो व्यक्ति अधिक मैथुन ,अधिक भारवहन ,अधिक रास्ता चलने से अधिक दुबला हो गए हैं ,क्रोध ,शोक ,भय और परिश्रम से आक्रांत हैं एवं बालक ,वृद्ध और प्रबल वात प्रकृति वाले ,उच्च स्वर से बोलने वाले ,भूख एवं पिपासा से पीड़ित हैं ऐसे व्यक्तियों को व्यायाम नहीं करना चाहिए .
इस प्रकार आजकल जिम में पौष्टिकता के नाम जो प्रदाय किया जा रहा हैं वह भी घातक होता हैं जितने हम प्राकृतिक सामग्री का सेवन करेंगे उतना अधिक लाभकारी होगा .
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड भोपाल 462026 मोबाइल ०९४२५००६७५३
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