ब्यावर के सुधा सागर कॉलोनी स्थित श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में आयोजित श्री 1008 मुनिसुव्रतनाथ भगवान की मंज्जिनेन्द्र जिनबिंब वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव का आज विश्वशांति महायज्ञ के साथ सफलतापूर्वक समापन हो गया। यह भव्य आयोजन आचार्य 108 श्री विद्यासागर जी महाराज की पावन प्रेरणा, आचार्य गुरुदेव 108 श्री समयसागर जी महाराज के मंगल आशीर्वाद और निर्यापक श्रमण मुनि पूज्य श्री 108 सुधासागर जी महाराज के दिव्य मार्गदर्शन में संपन्न हुआ।
महोत्सव के मुख्य आकर्षण
* प्रथम कलश का सौभाग्य: श्री 1008 मुनिसुव्रतनाथ भगवान को विराजमान करने और स्वर्ण-रजत से प्रथम कलश करने का सौभाग्य तरुण रजनी जी अनुराग और प्रतीक्षा काला (मुंबई प्रवासी) को प्राप्त हुआ।
* द्वितीय कलश व शांति धारा: द्वितीय कलश व शांति धारा करने का सौभाग्य सुमन अनुपम धगड़ा परिवार को मिला।
* प्रतिमा स्थापना-श्रीजी की चारों प्रतिमाओं को विराजमान करने का सौभाग्य निर्मलकुमार भुवन मनीष शाह (मांडलगढ़ वाले), पदमचंद जी जितेंद्र कुमार गंगवाल श्रीमति शकुंतला देवी, अभिषेक पाटनी, श्रीमति शरबती देवी और विनोदकुमार काला (पीसांगन वाले) को प्राप्त हुआ।
* सिंहासन और छत्र भेंट: श्रीजी को सिंहासन भेंट करने का सौभाग्य पारसमल टीकमचंद कासलीवाल परिवार को और श्रीजी पर छत्र भेंट श्री मुकुट बिहारी जी, धर्मेन्द्र जी और संदीप जी जैन परिवार को प्राप्त हुआ।
आध्यात्मिक आयोजन और सम्मान
प्रतिष्ठाचार्य प्रदीप भैया (अशोक नगर), प. अरुण जी शास्त्री और प. घनश्याम जी शास्त्री के सान्निध्य में हुए विश्वशांति महायज्ञ ने भक्तों को असीम शांति प्रदान की। शाम को संगीतमय महाआरती और सकल दिगम्बर जैन समाज के लिए वात्सल्य भोजन का आयोजन किया गया, जो सामाजिक समरसता का अद्भुत उदाहरण बना।
समाज के मंत्री नितिन छाबड़ा ने बताया कि प्रातःकाल में मंगलाष्टक, दिग्वंधन, क्षमामंत्र, शांतिमंत्र के साथ नित्यनियम अभिषेक, शांतिधारा पूजन और विश्वशांति महायज्ञ जैसे पवित्र विधान संपन्न हुए। नूतन वेदी में श्री मुनिसुव्रतनाथ भगवान के विराजमान होने के बाद अष्टमंगल द्रव्यों के साथ विधिवत पूजा की गई। शाम को 1008 दीपों से महाआरती और भक्तामर दीप अर्पणा से मंदिर प्रांगण जगमगा उठा।
श्री मारवाड़ी दिगंबर जैन समाज द्वारा भामाशाह तरुण रजनी अनुराग, प्रतीक्षा काला, सुमन और सीमा अनुपम धगड़ा सहित अन्य परिवारजनों का तिलक लगाकर, माला और साफ़ा पहनाकर बहुमान (सम्मान) किया गया। सकल जैन समाज के लिए प्रातः वात्सल्य भोज का आयोजन किया गया, जो एकता और सौहार्द का प्रतीक बना।
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