व्यक्तित्व एवं कृतित्व – जैनाचार्य ज्ञानसागर महाराज

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मुरेना (मनोज जैन नायक) चंबल अंचल की पावन पवित्र वसुंधरा ज्ञान नगरी मुरैना में 1 मई 1957 को उपरोचिया दिगंबर जैसवाल जैन समाज के बजाज गोत्रीय श्रावक श्रेष्ठी शांतिलाल जी के घर माता श्रीमती अशर्फी देवी जी की कोख से जन्मे बालक उमेश जन्म से ही सहज सरल व धार्मिक संस्कारों से संस्कारित थे आप भौतिक चकाचौंध से दूर धर्म आराधना में लीन रहते थे । बचपन से ही आपको देव शास्त्र गुरु के प्रति बेहद लगाव व अटूट श्रद्धा थी । जब भी कभी किन्ही दिगंबर मुनि राजों का मुरैना से निकलना होता था तब आप उनके बिहार में अवश्य जाते थे । घंटो मंदिर जी में बैठकर जाप देना स्वाध्याय करना, आत्म चिंतन करना आपकी दैनिक दिनचर्या थी ।
पूज्य गुरुदेव सराकोद्धारक आचार्य श्री ज्ञानसागर महाराज के परम भक्त अनूप जैन भंडारी द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार वर्ष 1974 में आप बीरम गांव अजमेर में संत शिरोमणि परम पूज्य गुरुवर आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज से 17 वर्ष की उम्र में आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण कर आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़े तथा दिनांक 5-11-1976 को श्री दिगंबर जैन सिद्ध क्षेत्र सोनागिर जी में चारित्र चक्रवर्ती समाधि सम्राट परम पूज्य गुरुवर आचार्य श्री 108 सुमति सागर जी महाराज से छुल्लक दीक्षा ग्रहण कर छुल्लक श्री 105 गुण सागर जी नाम से अलंकृत हुए । छुल्लक अवस्था में आपने कभी दुपट्टा या चटाई का सर्दियों में भी उपयोग नहीं किया । आपने परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महा मुनिराज एवं अन्य मुनिजनो तथा विद्वानों द्वारा सिद्धांत गृन्थो का गहन अध्ययन किया । आपने एक ही स्थान पर एक ही आसन पर 22/22 घंटे की ध्यान साधना की । आगम के अनुसार निर्दोष चर्या का पालन करते हुए चारित्र चक्रवर्ती समाधि सम्राट परम पूज्य गुरुवर आचार्य श्री 108 सुमति सागर जी महाराज से 31 मार्च 1988 चैत्र शुक्ल त्रयोदशी महावीर जयंती के पावन अवसर पर श्री 1008 दिगंबर जैन सिद्ध क्षेत्र सोनागिरी जी में मूल नायक देवाधिदेव श्री 1008 चंदा प्रभु भगवान के पाद मूल में निरगृन्थ दिगंबर जैनेश्वरी दीक्षा ग्रहण कर मुनि श्री 108 ज्ञान सागर जी नाम प्राप्त किया । इसके बाद 30 जनवरी 1989 को दिगंबर जैन समाज सरधना मेरठ उत्तर प्रदेश द्वारा आपको उपाध्याय पद पर अलंकृत किया गया । उपाध्याय रत्न श्री 108 ज्ञान सागर जी महाराज ने समाज की मुख्य धारा से अलग-थलग रहने वाले बिहार बंगाल उड़ीसा के सराक बन्धुओं को समाज की मुख्य धारा में जोड़ते हुए उन्हें शिक्षित व सशक्त बनाकर उन्हें संगठित किया और समाज की मुख्य धारा से जोड़ा इस कारण उन्हें सराकोध्दारक नाम की विशिष्ट पहचान मिली । परम पूज्य गुरुदेव ने समाज के सभी वर्गों वकील शिक्षक इंजीनियर डॉक्टर वैज्ञानिक आईएएस आईपीएस आदि को गोष्टी संगोष्ठियों के माध्यम से संगठित कर धर्म से जोड़ने का प्रयास किया आपके सानिध्य में अनेकों गोष्टियां संगोष्टियां संपन्न हुई आपको कभी किसी ने सोते हुए अथवा लेटे हुए नहीं देखा । इस लिए आप निद्रा विजेता कहलाए । आपकी प्रेरणा से अनेकों तीर्थ क्षेत्रों का जीणो्द्धार व निर्माण कार्य किया गया जो युगों युगों तक जैन धर्म की प्रभावना में सहयोगी रहेगा । परम पूज्य आचार्य श्री 108 विद्याभूषण सन्मति सागर जी महाराज की समाधि के पश्चात दिनांक 27 मई 2013 को श्री दिगंबर जैन त्रिलोक तीर्थ क्षेत्र बड़ागांव (बागपत) उत्तर प्रदेश में आचार्य श्री 108 शांति सागर जी क्षाणीं परंपरा में षष्ठम पट्टाचार्य पद पर सुशोभित किया गया । आपकी प्रेरणा व आशीर्वाद से आगरा मुंबई राष्ट्रीय राजमार्ग पर मध्य प्रदेश के मुरैना शहर से 4:30 किलोमीटर उत्तर की ओर श्री दिगंबर जैन ज्ञान तीर्थ क्षेत्र की स्थापना हुई । जो वर्तमान में बुंदेलखंड का तिलक द्वार नाम से प्रसिद्ध है । 15 नवंबर 2020 कार्तिक कृष्ण अमावस्या भगवान महावीर निर्वाण महोत्सव की पावन बेला में श्री दिगंबर जैन मंदिर नसियां जी वांरा राजस्थान में आपका समाधि पूर्वक देवलोक गमन हो गया । आपकी अचानक हुई समाधि श्रावक जनों के लिए एक बजृपात के रूप में रही । आपके द्वारा किए गए कार्यों को युगों युगों तक याद किया जाता रहेगा भगवान महावीर स्वामी की परंपरा में कुंदकुंद आचार्य के अनुयाई, सराको के राम, वर्तमान के वर्धमान समाधिस्थ गुरुवर आचार्य श्री 108 ज्ञान सागर जी महाराज के पावन चरणों में कोटि-कोटि नमन शत् शत् वंदन ।
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चरण सेवक
अनूप जैन भंडारी
वर्धमान साड़ी सरोवर
मुरैना मध्य प्रदेश

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