विश्व तंबाकू निषेध दिवस 31 मई पर विशेष

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कैंसर रोग का जन्मदाता तंबाकू का नशा।
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                   विजय कुमार जैन राघौगढ़ म.प्र.
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युवकों में नशे की प्रवृति निरंतर बढ़ रही है। बीड़ी-सिगरेट पीकर नशा करने की आदत किशोरावस्था में महाविद्यालयीन शिक्षा के दौरान बढ़ जाती है। मुंह से सिगरेट-बीड़ी लगते ही युवक किशोरावस्था में ही अनेक गंभीर बीमारियों को शरीर में जन्म दे देते हैं। वर्तमान में नशे के अनेक साधन उपलब्ध है। नशा करने बाले सिगरेट, बीड़ी, गुटखा, शराब, ब्राउन शुगर आदि का उपयोग जोर-शोर से कर रहे हैं। बीड़ी-सिगरेट में निकोटीन होता है, इसके नशे का सबसे पहले असर श्वसन प्रणाली पर पड़ता है।इनके नशे का एक दुष्प्रभाव यह होता है कि यह आदत किशोरावस्था में लगती है और जीवन भर रहती है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि भारत में तंबाकू के पौधे को सबसे पहले पुर्तगाली यात्री वास्कोडिगामा लेकर आया था।
                        तंबाकू के भारत में प्रवेश से पहले यहाँ प्राचीनकाल से भांग का नशा का किया जाता था। अन्य प्रकार के नशों की अपेक्षा भांग से कैंसर नहीं होता है। धूम्रपान करने बालों के फेफड़ों में कमजोरी आ जाती है,अथवा फेफड़ों में बीमारी प्रवेश कर लेती है। जबकि जो नशा नहीं करते हैं उन्हें यह स्थिति नहीं होती है। एक सर्वेक्षण के अनुसार यह आंकड़े सामने आये है कि पुरुषों में 50 प्रतिशत एवं महिलाओं में 20 प्रतिशत कैंसर तंबाकू के कारण ही होता है। 25 से 60 आयु समूह में मरने वालों में 25 प्रतिशत धूम्रपान के कारण मौत के मुँह में चले जाते है। यह भी उल्लेखनीय है कि धूम्रपान करने वालों में क्षय रोग टीबी की बीमारी के कीटाणु लगने की आशंका अन्य लोगों से चार गुना ज्यादा होती है। कैंसर इन्स्टीट्यूट नई दिल्ली के कैंसर चिकित्सा सेवा विभाग के निदेशक डाँ पुनीत गुप्ता ने कुछ समय पूर्व एक चर्चा के दौरान बताया तंबाकू की पत्तियों में करीब चार हजार रसायन होते हैं, जिनमें से 60 रसायन मनुष्य के शरीर में जाकर डीएनए, आर एन ए और प्रोटीन की संरचना में बदलाव करके गंभीर रोग कैंसर को पैदा करते हैं।
डाँ पुनीत गुप्ता के अनुसार जब तंबाकू से बने सिगरेट या सिगार को सुलगाया जाता है तो चार हजार रसायनों में से कुछ कैंसर जन्य रसायनों में बदल जाते हैं।जब तंबाकू का सेवन शराब के साथ किया जाता है तो कैंसर पैदा करने की उसकी क्षमता बहुत अधिक बढ़ जाती है। इसलिए तंबाकू का सेवन किसी भी रूप में घातक है। सिगरेट सिगार या बीड़ी का एक कश भी मानव शरीर के लिये हानिकारक है। एक सर्वेक्षण में यह तथ्य भी सामने आये है कि देश में तंबाकू का सेवन एवं धूम्रपान जानलेवा महामारी का रूप धारण कर चुका है। आम लोगों में इस बुरी आदत को छुड़ाने में मनोवैज्ञानिक उपचार कारगर साबित हुए है। अनेक अध्ययनों से ऐसे प्रमाण मिले है कि मनोवैज्ञानिक उपाय एवं उपचार से धूम्रपान छोड़ने बालों की संख्या बढ़ रही है। रिपोर्ट में यह भी कहा है कि तंबाकू खाना पूरी तरह से बंद करने से कैंसर तथा पूर्व कैंसर के 60 प्रतिशत मामलों को रोका जा सकता है। सर्वेक्षण में यह भी उल्लेख किया है भारत में 12 करोड़ लोग धूम्रपान करते हैं और दुनियाभर में धूम्रपान करने बालों की संख्या के हिसाब से चीन के बाद हमारा भारत दूसरे स्थान पर है। एक अध्ययन के अनुसार धूम्रपान करने बालों की तुलना में कैंसर से मरने बालों की संभावना सात गुना अधिक होती है। यह भी कहा है शराब और अन्य नशीले पदार्थों के साथ तंबाकू का सेवन तंबाकू के दुष्प्रभाव को और बढ़ा देता है। 50 की उम्र के बाद धूम्रपान को रोकने पर कैंसर का खतरा आधा हो जाता है जबकि 30 की उम्र में धूम्रपान रोकने पर इसके सभी दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है। विगत वर्षों भारत सरकार ने संसद में प्रस्तुत रिपोर्ट में जानकारी दी थी तंबाकू का बाजार विश्व स्तर पर हर वर्ष 8.5 प्रतिशत से बढ़ रहा है। भारत में भारत सरकार द्वारा हर वर्ष सिगरेट पर जी एस टी में वृद्धि करने के वावजूद सिगरेट की खपत में दिन रात वृद्धि हो रही है। यहाँ विशेष रूप से उल्लेख करना चाहेंगे कि धूम्रपान करना सिगरेट का कश लम्बे समय तक खींचकर नशा करने से अनेक बीमारियाँ मानव शरीर में प्रवेश कर जाती हैं। सिर, गले, फेफड़े, आहार नली, किडनी, पैक्रियाज,स्तन एवं सर्वाइकल में कैंसर हो सकता है। इसके अलावा हृदय रोग और स्ट्रोक के अलावा पैरों में वैस्कुलर रोग के खतरे बढ़ जाते है। इसका इलाज नहीं है।
                  शासकीय दंत चिकित्सा महाविद्यालय इंदौर के रजिस्ट्रार एवं सुप्रसिद्ध दंत चिकित्सक मैक्सिलोफेशियल सर्जरी विभाग के प्रोफेसर डॉ अमित रावत से मेरी इस विषय पर विस्तार से चर्चा हुई आपका कहना है ओरल कैंसर भारत में एक बड़ी समस्या है, देश में शीर्ष तीन प्रकार के कैंसर में इसका स्थान है। डॉ अमित रावत ने बताया, ”जब शरीर के ओरल कैविटी के किसी भी भाग में कैंसर होता है तो इसे ओरल कैंसर कहा जाता है। ओरल कैविटी में होंठ, गाल, लार ग्रंथिया, कोमल व हार्ड तालू, यूवुला, मसूडों, टॉन्सिल, जीभ और जीभ के अंदर का हिस्‍सा आते हैं। ओरल कैंसर आज हमारे देश की एक प्रमुख समस्या के रुप में बीमारी उभरी है सबसे ज्यादा पुरुषों में पाया जाता है इसका मुख्य कारण पान मसाला तंबाकू बीड़ी सिगरेट का प्रयोग करना है एल्कोहल भी इसका कारण है। ओरल कैंसर से पूरी तरह बचा जा सकता है। सभी का योगदान बहुत जरुरी है। तबाकू में करीब पांच सौ तरीके के हानिकारक तत्व होते हैं जिनमें से 50 ऐसे हैं जिन्हें हम कार्सिनोजन कहते है।कैसे होता है ओरल कैंसर-
1. स्मोकिंग-सिगरेट, सिगार, हुक्का, इन तीनों चीज़ों के आदी लोगों को एक नॉनस्मोकर के मुकाबले माउथ कैंसर होने का 6 फीसदी ज्यादा खतरा होता है।
2.तंबाकू-माउथ कैंसर होने का खतरा तंबाकू सूंघने, खाने या चबाने वाले लोगों को उनकी तुलना में 50 फीसदी ज्यादा होता है, जो तंबाकू यूज़ नहीं करते। माउथ कैंसर आम तौर पर गाल, गम्स और होंठों में होते हैं।
3. एल्कोहल-शराब पीने वालों को माउथ कैंसर होने का खतरा बाकी लोगों से 6 फीसद ज्यादा होता है। तम्बाकू सेवन युवा पीढ़ी के लिए अभिशाप है। वर्ष 2020 में covid19. एबम ब्लैक फंगस के मरीजो में भी तम्बाकू उपयोग करने बाले लोगों को अधिक इन्फेक्शन हो रहा है।मेरे मित्र समाज सेवी एवं पिछले लगभग 30 वर्ष से “गुटखा हानिकारक है” नशा मुक्ति अभियान चला रहे माली कृष्ण गोपाल कश्यप जिन्हें उत्कृष्ट कार्य के विगत वर्ष मध्यप्रदेश शासन द्वारा महात्मा ज्योतिबा फुले राज्य स्तरीय सम्मान से सम्मानित किया है। कश्यप का कहना है वर्तमान में नशीले गुटखा पाउच का प्रचलन ज्यादा हो रहा है। गुटखा पाउच को सभी उम्र के लोग खा रहे हैं। गुटखा खाने से मुंह का कैंसर होता है। गुटखा में तंबाकू के साथ और भी नशीली वस्तुओं का मिश्रण किया जाता है। आपका कहना है गुटखा पाउच जिसे हम चाव से खाते है वह कैंसर को शीघ्र जन्म दे रहा है।
नोट:-लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं भारतीय जैन मिलन के राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष है।
                                                                     ***************************************आग्रह:-आलेख का प्रकाशन मेरे फोटो के साथ कीजिये। प्रकाशन उपरांत समाचार पत्र की एक प्रति अवश्य भेजिये।
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