विश्व नदी दिवस —– विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन भोपाल

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संस्कृति के निर्माण में नदियों का ही मुख्य योगदान था होता हैं और रहा हैं .कारण जल ही जीवन हैं और कोई भी शहर गांव में निवासी जहाँ जल की सुविधाएँ होती थी वहीँ बसते थे .इसीलिए हम माँ का दर्ज़ा देते हैं नदियां ,कुए ,बावली .नाले ,झिरने आदि सुगम और सरल स्त्रोत होते थे .विकास के नाम पर कल कारखाने और आबादी बढ़ने से इन स्त्रोतों का महत्व कम कर दिया गया .और सिंचाई युक्त खेती और रासायनिक खादों के कारण जमीन से पानी निकालने के कारण सूखों का सामना करना पड़ता हैं .जल का दोहन ,समुचित प्रबंधन का आभाव ,अपव्यय से कमी का होना स्वाभाविक होता हैं .
एक नदी सब कुछ बदल सकती है। हर साल सितंबर के अंतिम रविवार को मनाया जाता है। २५ सितंबर २०२२ को भारत सहित पूरे विश्व में उत्साह से मनाया जाता है। नदियों की रक्षा को लेकर 2005 में इसे मनाने की शुरुआत की गई थी
ब्रिटेन, कनाडा, अमेरिका, भारत, पोलैंड, दक्षिण अफ्रिका, ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया और बांग्लादेश में नदियों की रक्षा को लेकर कई कार्यक्रम का आयोजन होता है। भारत में अनादि काल से नदियों को देवीय महत्व दिया गया है। पूर्वाचल में पवित्र नदियों के किनारे छठ पर्व किया जाता है। छठ पर्व दीपोत्सव के छठे दिन मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं नदी के पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ देती है।
पृथ्वी के 71 प्रतिशत हिस्से में पानी है, जिसमें से 97.3 प्रतिशत पानी पीने योग्य नहीं होकर खारा पानी है। शेष 2.7 प्रतिशत मीठा जल हमें नदियों, झीलों, तालाबों जैसे संसाधनों से प्राप्त होता है। इसलिए विश्व नदी दिवस मनाए जाने की शुरुआत की गई।
गलत नीतियों, मानव द्वारा फैलाए जा रहे प्रदूषण और कई स्वार्थियों के कारण अनेक नदियां का अस्तिव समाप्त हो रहा है। प्रदूषित हो रही नदियों को संवारने के लिए संरक्षित करने की जरूरत है।
पुराणों में उल्लेख है कि विश्व की प्राचीन सभ्यतायें नदियों के किनारे ही विकसित हुई है। नदियां को स्वच्छ जल का संवाहक होती हैं। एशिया महाद्वीप का हिमालय पर्वत पुरातन समय से नदियों का उद्गम स्रोत रहा है। गंगा, यमुना, सिंधु, झेलम, चिनाव, रावी, सतलज, गोमती, घाघरा, राप्ती, कोसी, हुबली तथा ब्रहमपुत्र आदि सभी नदियों का उद्गम हिमालय से शुरू होकर हिन्द महासागर में जाकर अपनी गिरती है।
विश्व नदी दिवस भारत का कोई अलग से कार्यक्रम नहीं है। पुराने लोगों द्वारा कहा जाता है कि सालों पहले भारत की नदियां बारह मासी यानी 12 माह बहने वाली होती थी, लेकिन अंधाधुंध पेड़ों की कटाई के कारण नदियों ने अपना अस्तिव खो दिया। वर्तमान में हालात यह है कि ग्रीष्म ऋतु में भारत की सभी नदियों का जल सूख जाता है।
भारत के कई शहरों में उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ को नदियों में मिला दिया जाता है।गंगा नदी की स्वच्छता अभियान में करोड़ों रूपया खर्च किया जा चूका हैं पर नदियों के किनारे वाले शहरों में स्थापित कल कारखानों द्वारा नदी को अनवरत प्रदूषित किया जा रहा हैं .यह स्थिति संभवतः पूरे भारत में हैं . सीपीसीबी की साल 2020 की रिपोर्ट के अनुसार भारत की जीवनदायिनी कही जाने वाली ये नदियां खुद खतरे में हैं। 521 नदियों के पानी की मॉनिटरिंग करने वाले प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार देश की 198 नदियां ही स्वच्छ हैं। जो छोटी नदियां हैं। जबकि, बड़ी नदियों का पानी भीषण प्रदूषण की चपेट में है। 198 नदियां स्वच्छ पाई गईं, इनमें ज्यादातर दक्षिण-पूर्व भारत की हैं।
संरक्षित करने के उपाय —
हमारी जलवायु बरसात पर आधारित हैं और अच्छी वर्षा होने से हमारी खेती जो हमारे जीवन का मुख्य आधार हैं पर आश्रित हैं ,इसके अलावा समुचित प्रबधन के आभाव में गर्मी के मौसम में सूखा का प्रभाव देखने मिलता हैं .
नदियों को छिछली (उथली) होने से बचायें।
नदियों के किनारों पर सघन वृक्षारोपण किया जाये जिससे किनारों पर कटाव ना हो।
नदियों का पानी गन्दा होने से बचाये, मसलन पशुओं को नदी के पानी मे जाने से रोके। गांव व शहरों का घरेलू अनुपचारित पानी नदी में नही मिलने दे।
पानी को यह सोच कर साफ रखने का प्रयास करें कि आगे जो भी गांव या शहर वाले इस पानी को उपयोग में लाने वाले हैं वो आपके ही भाई बहन या परिवार के लोग हैं।
नगरपालिका और ग्राम पंचायत अपने स्तर पर घरेलू पानी ( दूषित) को साफ करने वाला सयंत्र लगाने के लिए प्रोत्साहित करें।
उद्योगों का अनुपचारित पानी नदी के पानी मे नही मिलने दे।
हो सके तो समय समय पर पानी की गुणवत्ता की जांच करवाते रहे।
जलकुम्भी की सफाई समय समय पर करवाने का प्रयत्न करें।
इसके साथ जल और नदियों का महत्व समझे ये हमारी सर्वश्रेष्ठ विरासत हैं
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड भोपाल 462026 मोबाइल ०९४२५००६७५३

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