महावीर दीपचंद ठोले छत्रपतीसंभाजीनगर महामंत्री श्री भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थ संरक्षिणी महासभा( महा)
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क्षमा आत्मा का स्वभाव है। सहिष्णुता,समता, और सौजन्य क्षमा की पर्याये है ।सामर्थ्य और क्षमता संपन्न व्यक्ति ही क्षमा धारण कर सकता है। न चाहते हुए गलती सुधारना व भविष्य में न करना महानता है। गलती होने पर क्षमा मांगना तथा दूसरों के प्रती क्षमा रखना ही वीरो का लक्षण है। क्षमा वीरस्य भूषणम् अर्थात क्षमा वीरो का आभूषण है। क्षमा धारण करना विशिष्ट क्षमतावान, महान आत्माओं के ही वश की बात है। क्षमा में वह शक्ति, वह शांति वह संतुलन है जो हमें संसार में कहीं नहीं मिल सकती। मनुष्य क्षमा के माध्यम से ही शारीरिक, सामाजिक संतुलन बना लेता है। इससे तन, मन एवं चेतन में हमेशा शालीनता बनी रहती है ।मनुष्य का आभूषण शरीर का सौंदर्य है। सौंदर्य का और रूप का आभूषण सद्गुण है। सद्गुणों का आभूषण ज्ञान है। और ज्ञान का आभूषण सारभुत क्षमा है ।क्षमा वास्तव में सौंदर्य है, क्षमा ही सच्ची पूजा है,क्षमाही सच्ची स्तुती है, क्षमा ही वास्तविक जप है क्षमा ही सच्चा ध्यान है ।
प्रत्येक संस्कृति कुछ ना कुछ आत्मोन्नति के सूत्र प्रदान करती हैं। हर व्यक्ति दूसरे धर्मो का तिरस्कार नहीं करता। सभी अपने धर्मनुसार रहकर आचरण करते हैं। आजभी हमारे देश में धर्म पालन करने की सबको स्वतंत्रता है ।जितने भी धार्मिक संप्रदाय है वे सब परस्पर का आदर सम्मान रखते हुए अपने अपने धर्म का पालन करते है। प्रत्येक संस्कृति के दार्शनिकों ने ,चिंतन को ने संत महात्माओं ने क्षमा का अनूठा परिचय हमारे लिए दिया है।
सत्वेषु मैत्री गुणेषु प्रमोद, क्लिष्टेषु जीवेषु कृपा परत्वा । माध्यस्थ भावं विपरीत व्रतो, सदा ममात्मा, विद् धातु देवं ।।अर्थात प्राणी मात्र के प्रति सद्भाव और मैत्री भाव बनाने के लिए संदेश दिया है।
ऊदार चरिताना त् वसुदैव कुटुम्बकम् अर्थात उदार दिलवाले उदात्त चरित्रवाले महामानवो के लिए सारी पृथ्वी के लोग अपने ही समान जान पड़ते हैं। इसलिए जगत के समस्त प्राणी मात्र में आत्मा का अस्तित्व मानकर सबसे क्षमा और मैत्री भाव को विस्तृत बनाना यही शांति का सर्वोच्च मार्ग है।
हिंसा को प्रति हिंसा से दूर नहीं किया जा सकता। उसे तो प्रेम, क्षमा, सहिष्णुता द्वारा ही जीता जा सकता है। इसलिए वैरभाव, क्रोध, प्रति हिंसा, प्रतिशोध या हिंसक प्रतिकार आदि सबको अहितकारी मानकर उनसे बचने का प्रयत्न करना चाहिए तभी दूसरों के हृदय को जीता जा सकता है।
क्षमा एवं मैत्री के संदेश से आपसी कलह एवं युद्ध से होने वाली क्षति को रोका जा सकता है। तेजी से बढ़ रही अनिद्रा ,एवं ब्लड प्रेशर जैसी असाध्य बीमारियों को रोकना क्षमा द्वारा सहज ही संभव है ।यह एक वैज्ञानिक सत्य है। हमारे जीवन में अनेक तनाव बढे हैं वे क्षमापना से दूर हो जाते हैं ।आपसमे मैत्री निर्माण हो जाती है ।हमारे शरीर में हैप्पीनेस हार्मोंस निर्माण होते हैं ।यही क्षमावणी का उद्देश्य है। क्षमा वाण व्यक्ति एक दूसरे से निर्भय होकर क्षमा मांगता है ।उससे ऊसके संबंध अच्छे बनते हैं। क्षमा के अवलंबन से न्यायालय की भीड़ कम हो रही हो सकती है। टुटते हुए संयुक्त परिवारों को क्षमा के सहारे बिखरने से बचाए जा सकता है। मानव मानव के बीच आज जो अविश्वास का संकट उपस्थित है उससे मुक्ति का मार्ग क्षमा ही है ।क्षमावाणी के इस पावन अवसर पर हम अपने अंदर ऐसी विशाल विचारधाराओं को लाये जिससे हम दुनिया में प्रेम का, भाईचारे का, सद्भावना का बीजारोपण कर सकते है।क्षमा के समान हमारा कोई बंधु नहीं है। क्रोध के समान हमारा कोई शत्रु नहीं है। क्रोध समस्त विपदाओ का मूल कारण है ।अतः क्रोध का सब ने त्याग करना चाहिए यही हमारे लिए संदेश है।
हमारे वैचारिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान के लिए क्षमागुण यह अद्भुत गुण है ।जिससे मन स्वच्छ बनकर समाज में भाईचारा स्थापित हो सकता है। क्षमा अहिंसा की जननी है, विश्व प्रेम का आधार है ,क्षमा समर्थो का जीवन है, बलहिनो का है उपहार। । गलती करना मनुष्य का स्वभाव है हम जीवन में कई गलतियां करते हैं लेकिन गलती महसूस हो जाने पर पीछे नहीं हटना चाहिए वह क्या कहेगा, क्या सोचेगा ऐसा ना सोचते हुए वह क्षमा करें या ना करें हमें आगे होकर क्षमा मांग लेना चाहिए। हमें आत्म चिंतन जरूर करना चाहिए सब जीवों को मैं क्षमा करता हूं सब जीव मुझे क्षमा करें ।सभी से मेरा मैत्री भाव रहे, यही भाव हमें शांति दे सकता है। पर्युषण पर्व के उपसंहार का यह दिन क्षमावाणी के रूप में मात्र जैन समुदाय मनाती है। जहां यह दिन पारस्परिक वैमनस्यता को छोड़कर क्षमा, शांति और समन्वय की बातों का प्रतीक है। और विश्व शांति का , विश्व मैत्री का भी संदेश दे रहा है। वास्तव में प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात लोगों और देशो के बीच आपसी द्वेष, शत्रुता, और नफरत की भावना ने जन्म लिया था और इसे समाप्त करने के लिए अमेरिका ने 1935 में मैत्री दिवस मनाने का निर्णय लिया था। तत्पश्चात 20 जुलाई 1958 को डॉ रामन आर्टिमियो ब्रेको द्वारा इसे प्रस्तावित किया गया और यह मैत्री दिवस जाती ,रंग ,धर्म के बावजूद सभी मनुष्य के बीच दोस्ती को बढ़ाने के लिए भारत के साथ अन्य कई देशों में अगस्त के पहले रविवार को फ्रेंडशिप डे या मैत्री दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। परंतु अब यह मात्र एक औपचारिकता व युवक युवतियो तक ही सीमित रह गया है। इसके पीछे का व्यापक दृष्टिकोण अब नहीं रहा। इसलिए अनादि काल से चले आ रहे पर्युषण पर्व के समापन के पश्चात आत्मीयता बढ़ाने वाले इस क्षमावाणी पर्व को वैश्विक रूप देकर विश्व मैत्री दिवस
के रूप में मनाकर विश्व शांति स्थापित करने का सुनहरा अवसर है। क्योकि ईसका का मूल उद्देश्य राष्ट्रीय स्तर पर एकता को बढ़ावा देना तथा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समाज में विश्व मैत्रीकरण की ओर बढ़ने का आग्रह करना है। आज इस महापर्व के अवसर पर मै सर्व समाज से अपील करता हु कि हमारा हित हमारी एकता में है ,यदि एकता की डोर टूट गई तो इस राष्ट्र का, इस विश्व का कितना अहित हो सकता है इसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकते ।
अतः क्रोध, वैरभाव ,प्रतिहिंसा आदि सबको अहितकर मानकर पर्युषण पर्व के इस पावन अवसर पर क्षमा ,शांति और समन्वय को अपना कर विश्व शांति स्थापित करें।
श्री संपादक महोदय,जयजिनेद्र।
क्षमावाणी के पावन अवसर यह आलेख प्रकाशित कर उपकृत करे ।धन्यवाद।
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