विषय भोग ही दुख का सबसे बड़ा कारण है

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जैन मुनि प्रज्ञान सागर महाराज
21 जुलाई सोमवार 2025 शांति वीर धर्म स्थल पर प्रात 8:00 बजे जैन मुनि प्रज्ञान सागर महाराज ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए बताया कि आज का मनुष्य वासना विषय भोग में इतना रम गया कि वह पर वस्तुओं को भोगों को अपना मान रहा है भोग ही रोग का कारण है
उन्होंने यह भी बताया कि जो वस्तु अपनी थी नहीं उससे वह राग कर रहा है उसके पीछे अपना अमूल्य कीमती समय गमा रहा है भोग मुनि ने एक खुजली की तरह बताया खुजली चलने पर उसने खुजरते खुजरते खुन निकलने लगता है फिर भी खुजली समाप्त नहीं होती
आज महिलाएं अपने सौंदर्य करण के लिए लाली लिपस्टिक शैंपू नाना प्रकार के अशुद्ध केमिकल युक्त का इस्तेमाल कर रही है जो अपने स्वरूप को बिगाड़ रही है यह सभी वस्तुएं जिओ की हिंसा से तैयार की जाने वाली सामग्री है लंबे बालों को धोने के लिए नाना प्रकार के शैंपू का प्रयोग करते हैं जो बालों को कमजोर करती हैं व बालों को बढ़ोतरी से घटा देते हैं इन वस्तुओं का प्रयोग ना करें ऐसा मुनि ने उद्बोधन में बताया

कुत्ते का उदाहरण देते हो मुनि ने बताया की कुत्ता अपने मुंह में हड्डी को चढ़ाते रहता है चबाते चबातें उसके मुंह से खून निकलने लगता है कुत्ता हड्डी में खून मानकर उसे चाटता रहता है
पांचो इंद्रियों का भोग ही दुख का कारण बताया आज के युग में मोबाइल सुनने के लिए कानों में ऐटा लगाने से कान के पर्दे कमजोर होते हैं एक दिन कानों से सुनना ही बंद हो जाएगा साधु को वचनों को सुनने का मार्ग भी बंद हो जाएगा
मुनि ने बताया कि वस्तुओं का भोग मनुष्य नहीं साधु भी करते हैं फर्क वासना का है साधु वस्तु के पीछे कभी आसक्त नहीं हुए मनुष्य भोग के पीछे आसक्त हो रहा है दौड़ रहा है भोग को ही अपना सुख मान रहा है भोग में सुख होता तो संत अपना परिवार घर कुटुंब छोड़कर इस त्याग के मार्ग पर संत नहीं बनते भोग ही सबसे बड़ा दुख का कारण मुनि ने बताया
मनुष्य जन्म से मृत्यु तक प्रतिदिन भोग की वस्तुएं भोग रहा है फिर भी इस जीव को तृप्ति नहीं हुई ना होगी अंतिम समय तक भी जीव भोग में पड़कर आत्मा का अहित कर रहा है

भगवान का दीप प्रज्वलित निर्मल कुमार अरिहंत धीरज पाटनी परिवार द्वारा किया गया समिति द्वारा तिलक माला दुपट्टा पहनाकर स्वागत सम्मान किया गया
पर वस्तु को अपना समझना मोह है

जैन मुनि प्रसिद्ध सागर महाराज ने बताया
आत्मा को जीव कहते हैं जिसमें चेतन देखने जानने सुनने की शक्ति हो वह जीव है यह जीव चारों गतियां में भ्रमण करता है अच्छे बुरे का ज्ञान होना ही जीव लक्षण है ‍ संसार में सदा रहने वाला जीव है जो स्वयं कर्मों को भोगता है जैसा कर्म करता है जीव को भोगना पड़ता है अन्य दूसरा कोई भोगने वाला नहीं है मुनि ने यह बताया कि जो वस्तु अपनी नहीं है उस वस्तु को जीव अपना मान रहा है और उसके पीछे दौड़ रहा है यह उस वस्तु के प्रति मोह का एक कारण बताया‌ जो अज्ञानता का कारण है

पर वस्तु के पीछे जोड़ना एक मोह का कारण है देव शास्त्र गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा ही मोक्ष पहुंचने का मार्ग मुनि ने बताया

महावीर कुमार जैन सरावगी
वृषभ योग योग प्रचार मंत्री

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