विराट व्यक्तित्व एवं कृतित्व के धनी आचार्य ज्ञानसागरजी महाराज

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सराको के राम, वर्तमान के वर्धमान
विराट व्यक्तित्व एवं कृतित्व के धनी आचार्य ज्ञानसागरजी महाराज
5वें समाधि स्मृति दिवस (15 नवम्बर) पर विशेष

(मनोज जैन नायक मुरैना की कलम से)
मुरैना-चंबल अंचल की पावन पवित्र वसुंधरा संस्कारधानी, ज्ञान नगरी मुरैना में 1 मई 1957 को दिगंबर जैसवाल जैन उपरोचियां समाज के बजाज गोत्रीय श्रावक श्रेष्ठी शांतिलाल जैन के घर माता अशर्फी देवी जैन की कोख से जन्मे बालक उमेश जन्म से ही सहज, सरल व धार्मिक संस्कारों से संस्कारित थे। आप भौतिक चकाचौंध से दूर, धर्म आराधना में लीन रहते थे। जब भी कभी किन्ही दिगंबर मुनिराजों का मुरैना से निकलना होता था, तब आप उनके विहार में सहभागिता प्रदान करने तत्पर रहते थे। घंटो मंदिर में बैठकर जाप देना स्वाध्याय करना, आत्म चिंतन करना आपकी दैनिक दिनचर्या थी।
गुरुदेव के परम भक्त अनूप भंडारी मुरैना द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार वर्ष 1974 में आपने वीरम गांव अजमेर में संत शिरोमणि परम पूज्य गुरुवर आचार्य श्री 108 विद्यासागरजी महाराज से 17 वर्ष की उम्र में आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण कर आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़े तथा दिनांक 5 नवंबर 1976 को श्री 1008 दिगंबर जैन सिद्धक्षेत्र सोनागिरजी में चारित्र चक्रवर्ती, मासोपवासी, समाधि सम्राट परम पूज्य गुरुवर आचार्य श्री 108 सुमति सागर जी महाराज से क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण कर क्षुल्लकश्री 105 गुणसागर जी नाम प्राप्त किया । आचार्यश्री 108 सुमति सागर जी महाराज से 31 मार्च 1988 चैत्र शुक्ला त्रयोदशी महावीर जयंती के पावन अवसर पर श्री 1008 दिगंबर जैन सिद्धक्षेत्र सोनागिरीजी की पावन पवित्र भूमि पर मूलनायक श्री 1008 चंद्रप्रभु भगवान के पाद मूल में निग्रंथ दिगंबर जैनेश्वरी दीक्षा ग्रहण कर मुनि श्री 108 ज्ञानसागरजी नाम से सुशोभित हुए । तत्पश्चात 30 जनवरी 1989 को पूज्य गुरुदेव के निर्देशानुसार दिगंबर जैन समाज सरधना मेरठ उत्तर प्रदेश द्वारा आपको उपाध्याय पद पर अलंकृत किया गया।
उपाध्याय रत्न श्री 108 ज्ञान सागर जी महाराज ने समाज की मुख्य धारा से अलग-थलग रहने वाले बिहार बंगाल उड़ीसा के सराक बन्धुओं को समाज की मुख्य धारा से जोड़ते हुए उन्हें शिक्षित व सशक्त बनाकर संगठित किया और समाज की मुख्य धारा से जोड़ा । इस कारण उन्हें सराकोद्धारक नाम की विशिष्ट पहचान मिली। तथा सराक बन्धु उन्हें अपना आराध्य मानकर आज भी उनके प्रति पूर्ण समर्पित भाव रखते हुए उनकी आराधना में लीन रहते है तथा उन्हें सराको के राम मानते है । आपकी प्रेरणा से अनेकों तीर्थ क्षेत्रों का जीर्णोद्धार व निर्माण कार्य किया गया, जो युगों युगों तक जैन धर्म की प्रभावना में सहयोगी रहेगा। आपके द्वारा समूचे देश में पद विहार कर अहिंसा का प्रचार प्रसार हुआ आपके सानिध्य मे अनेको गोष्ठी संगोष्ठी के माध्यम से शिक्षकों, वकीलों, बैंकर्स, सी.ए, डाक्टर्स, इन्जीनियर, आईएएस आईपीएस, वैज्ञानिक आदि को समाज सेवा के साथ आध्यात्मिकता से भी जोडा गया । आपकी प्रेरणा से मेधावी क्षात्रों को प्रतिभा सम्मान के माध्यम से सम्मानित किया गया । पूज्य आचार्यश्री 108 विद्याभूषण सन्मतिसागर जी महाराज की समाधि के पश्चात दिनांक 27 मई 2013 को श्री 1008 दिगंबर जैन त्रिलोकतीर्थ क्षेत्र बड़ागांव (बागपत) उत्तर प्रदेश में आचार्य श्री 108 शांति सागर जी छाणी परंपरा में षष्ठम पट्टाचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया गया। कार्तिक कृष्ण अमावस्या को भगवान महावीर निर्वाण महोत्सव की पावन बेला में श्री दिगंबर जैन मंदिर नसियां जी वारा राजस्थान में आपका समाधि पूर्वक देवलोक गमन हो गया। भगवान महावीर स्वामी जी के जन्म कल्याणक पर दिक्षा ग्रहण कर भगवान महावीर निर्वाणोत्सव की पावन बेला मे देवलोक गमन करना यह दर्शाता है कि आप वर्तमान के वर्धमान थे । आपके द्वारा किए गए कार्यों को युगों युगों तक याद किया जाता रहेगा।
परम पूज्य गुरुदेव सराकोद्धारक छाणी परंपरा के षष्ट पट्टाचार्य ज्ञानसागरजी महाराज के 5वें समाधि स्मृति दिवस (15 नवंबर) के अवसर पर गुरू चरणों में कोटि कोटि नमन
चरण सेवक –
मनोज जैन नायक, मुरैना
मोवा. 9893332493

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