अमृतोद्भव पावसयोग
डॉ. सुनील जैन संचय, ललितपुर
भारतीय संस्कृति के उन्नयन में श्रमण संस्कृति का योगदान गौरवशाली रहा है। आज भी वह प्राचीन श्रमण संस्कृति भारतीय संस्कृति के उन्नयन में अपनी अहम भूमिका का निर्वाह कर रही है। श्रमण संस्कृति की गौरवशाली परंपरा में परम पूज्य आचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज के प्रभावक शिष्य परम पूज्य श्रमण सुप्रभसागर जी मुनिराज अपनी आगमोक्त चर्या और आध्यात्मिक चिंतन के द्वारा निरंतर आत्मसाधना व प्रभावना में संलग्न हैं। आप श्रमण परंपरा के विलक्षण और तपस्वी संत हैं। आपने समाज और संस्कृति को भी एक नई दिशा दिखाई है।
जन्म : मुनि श्री सुप्रभसागर जी का जन्म जननी मां के जनक नाना के यहां , कोल्हापुर महाराष्ट्र में पिता सद-गृहस्थ श्रेष्ठी राजनशाह , माता सुशील-सरल स्वभावी जननी मां सुरमंजरी की कुक्षि से 13 दिसंबर सन 1981 में हुआ था। श्रमण मुनि श्री सुप्रभसागर जी का गृह ग्राम आध्यात्मिक धर्म नगरी सोलापुर महाराष्ट्र है, जहां एक ओर श्राविका आश्रम है तो दूसरी ओर जीवराज ग्रंथ माला है जहां से संपूर्ण विश्व में जैन साहित्य उपलब्ध कराया जाता है, ऐसी दर्शन- ज्ञान -चारित्र रूपी त्रिवेणी से संपन्न नगर में आपका बाल्यकाल व्यतीत हुआ। गौर वर्ण के शिशु का नामकरण ‘तथा गुण यथा नाम’ की युक्ति अनुसार मनोज्ञ रखा गया। आपके ननिहाल पक्ष से सुप्रसिद्ध दिगंबर जैन आचार्य श्री समंतभद्र जी महाराज हुए जिन्होंने खुरई, कारंजा आदि स्थानों पर गुरुकुल स्थापित किए थे।
आप बचपन से ही विरागी थे।
आचार्य श्री 108 श्री विशुद्धसागर जी ने बैरागी के वैराग्य का परीक्षण कर मध्यप्रदेश के अशोकनगर में सन 2009 अक्टूबर की 14 तारीख को भव्य समारोह में अपार जनसमूह के मध्य ब्रह्मचारी भैया जी को जैनेश्वरी दीक्षा प्रदान की। आपका नामकरण श्रमण मुनि सुप्रभसागर किया गया । इसके उपरांत आप लगभग 6 वर्ष तक अपने दीक्षा गुरु के साथ रहकर धर्म ग्रंथों का अध्ययन करते रहे।
मध्य में असाता कर्मोदय के कारण अंतराय और शारीरिक पीड़ा को समता पूर्वक सहन करते रहे। जैसे स्वर्ण अग्नि में तप कर ही चमकता है वैसे ही आपने रोगों को सहनकर अपने दृढ़ वैराग्य एवं आंतरिक समत्व भाव का परिचय दिया ।
उपसंघ : अपने शिष्य की प्रतिभा को परख चुके आचार्य श्री विशुद्धसागर जी ने आपको धर्म प्रभावना के लिए प्रेरित किया फलतः सन 2016 छिंदवाड़ा से आपका पृथक उप- संघ बना। तब से अब तक आप नगर -नगर, गांव- गांव में पग विहार कर धर्म की प्रभावना कर रहे हैं ।
प्रवचन शैली मनमोहक: आपकी प्रवचन शैली प्रभावक एवं मनमोहनी है। आप आध्यत्मिकता से परिपूर्ण ओजस्वी वक्ता के रूप में जाने जाते हैं। सूत्र वाक्यों में बड़ी से बड़ी बात कह देना आपकी प्रमुख विशेषता है। आप सहज, सरल व कठिन तपस्वी हैं। सक्षम गुरु के सक्षम शिष्य हैं।
सृजन से समृद्ध हुआ साहित्य : आप प्रखर और ऊर्जावान वाणी के लिए तो जाने ही जाते हैं साथ ही अल्प साधना काल में ही बड़ी मात्रा में साहित्य सृजन कर मां जिनवाणी के भंडार और साहित्य जगत के भंडार को बढ़ाया है। आपका साहित्य सभी आयु वर्ग के लिए होता है इसलिए लोग आपकी प्रत्येक रचना को हाथोंहाथ लेते हैं। आपके साहित्य सृजन में कुछ इस प्रकार से है- सुनयनपथगामी, शुभ -लाभ , अहं या वहं, एक भ्रम,भवितव्यता, किसने लिखा। काव्य रचना के प्रति भी आपकी गहरी रुचि होने से आपकी लेखनी से अनेक काव्य रचनाएं भी निरंतर प्रसूत हो रहीं हैं जिनमें सोच , सुगुरु विशुद्धाष्टकम (संस्कृत), सोच नई। आपकी कृतियों का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है , जिनमें प्रमुख हैं- स्वानुभव तरंगिणी (मराठी), पंचशील सिद्धांत (मराठी), नियम देशना (मराठी), सुनयनपथगामी ( मराठी एवं अंग्रेजी)। आपके साहित्य सृजन से साहित्य का भंडार समृद्ध हुआ है।
बहु भाषाविद : श्रमण मुनि श्री सुप्रभसागर जी महाराज का जन्म महाराष्ट्र में हुआ है। मातृभाषा मराठी, लौकिक शिक्षा सीए होने पर भी संस्कृत, प्राकृत, हिंदी, कन्नड़, अंग्रेजी आदि भाषाविद हैं। बुंदेलखंडी भी खूब बोलते हैं।आपकी प्रवचन शैली मन को मोहने वाली है। मातृभाषा मराठी होने के बाद भी हिंदी भाषा अच्छी है। भाषा सौष्ठव अनूठा है।
आपकी तप- साधना भी अनूठी है। धर्म -आत्माओं का स्थितिकारण कैसे करना चाहिए यह मुनिश्री से सीखना चाहिए। आप निरंतर अष्टांग सम्यक्त्व का पालन करते हैं।
समीचीन विकल्पों का सम्यक समाधान : मुनिश्री समीचीन विकल्पों का आगमोक्त सम्यक समाधान निरंतर करके जिज्ञासाओं की पिपासा को शांत कर उन्हें प्रशस्त मार्ग दिखा रहे हैं।
विद्वानों के प्रति वात्सल्य : मुनिश्री का विद्वानों के प्रति हमेशा अतीव वात्सल्य भाव देखने को मिलता है। जब भी कोई विद्वान उनके समीप पहुंचा वह हमेशा उसे प्रमुखता देकर तत्त्व चर्चा करते हैं।
विद्वत संगोष्ठियां : आपके सान्निध्य में मड़ावरा, सागर, विदिशा, उज्जैन और लखनऊ में कुल पांच राष्ट्रीय विद्वत संगोष्ठी अपूर्व सफलता के साथ अभी तक सम्पन्न हुई हैं। छठवीं संगोष्ठी मेरी भावना पर 19,20 अक्टूबर को लखनऊ में होने जा रही है। मेरा सौभाग्य है कि इन सभी संगोष्ठियों का संयोजन करने का अवसर मुझे प्राप्त हुआ है।
साधना शिविरों से जुड़ा युवावर्ग : मुनिश्री के सान्निध्य में प्रतिवर्ष दसलक्षण महापर्व के अवसर पर आयोजित साधना शिविर में बड़ी संख्या में युवक-युवतियां सम्मिलित होकर नैतिक संस्कारों से जुड़ती हैं। दस दिन में मुनिश्री द्वारा दिए गए अनेक जीवन उपयोगी सूत्रों से युवावर्ग लाभान्वित होता है।
पंचकल्याणक प्रतिष्ठाएं : जहाँ आप युवा वर्ग को
धर्म, संस्कारों, संस्कृति से जोड़कर जीवंत प्रतिमाएं तैयार कर रहे हैं वहीं आपके सान्निध्य में अनेक पंचकल्याणक प्रतिष्ठाओं के माध्यम से पाषाण को संस्कारित कर भगवान बनाया गया है।
द्वय मुनिराजों का आपस में वात्सल्य :
मुनि श्री के साथ परम पूज्यमुनि श्री प्रणतसागर जी हैं जिनकी जन्मभूमि ललितपुर नगरी है, मुनिश्री मनोज्ञ, ध्यानी, सरल-स्वभावी हैं। मुनिराजों का आपस में वात्सल्य एवं समन्वय भी आज के परिपेक्ष्य में अनुकरणीय व स्तुत्य है। मुनिश्री के सान्निध्य में विगत वर्ष में कुछ समाधियां भी सफलता पूर्वक सम्पन्न हुई हैं।
अमृतोद्भव पावसयोग-2024 लखनऊ में प्रभावनामयी आयोजन : मुनिश्री का प्रत्येक वर्षायोग ऐतिहासिक होता है। लखनऊ में भी अमृतोद्भव पावसयोग में अनेक प्रभावनामयी आयोजनों की श्रृंखला निरंतर जारी है। जिनमें कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं-
07 जुलाई 2024 को भव्य मंगल प्रवेश लखनऊ में हुआ तथा 20 जुलाई को पावसयोग कलश स्थापना की गई। 21 जुलाई को गुरु पूर्णिमा मनाई गई जिसमें लखनऊ के साथ ही अनेक स्थानों से आकर भक्तों ने गुरु गुणानुवाद किया। मुझे भी इस पल का साक्षी होने का सौभाग्य मिला। 22 जुलाई को वीरशासन जयंती मनाई गई। 11.8.24 से 19.8.24 तक डालीगंज में इंद्रध्वज महामण्डल विधान भक्ति श्रद्धा के साथ हुआ। 11 अगस्त को मुकुट सप्तमी (मोक्षसप्तमी) मनाई गई।19 अगस्त को वात्सल्य पर्व रक्षाबंधन मनाया गया। 08 सितम्बर से 17 सितम्बर 2024 तक समायसारोपासक साधना संस्कार शिविर काकोरी में भारी उल्लास के साथ आयोजित हुआ। यह ऐतिहासिक आयोजन था,ज्ञात जानकारी के अनुसार लखनऊ के इतिहास में पहली बार संस्कार शिविर का आयोजन हुआ।
18 सितम्बर को सामूहिक क्षमावाणी का कार्यक्रम हुआ। 21,22 सितम्बर को गणाचार्य श्री विरागसागर जी व्यक्तित्व एवं कृतित्व राष्ट्रीय विद्वत् संगोष्ठी का आयोजन पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर सआदतगंज में हुआ। आचार्यश्री के समाधि के बाद यह पहला आयोजन था जो आचार्यश्री के व्यक्तित्व-कृतित्व को समर्पित था। 6 अक्टूबर 24 को गुरु उपकार पर्व (दीक्षादिवस) प.पू. मुनि श्री प्रणतसागरजी महाराज का मनाया गया।
आगामी आयोजनों में 17 अक्टूबर को गोद भराई का कार्यक्रम होगा जिसमें आचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज के कर कमलों से होने जा रही जैनेश्वरी दीक्षाओं के दीक्षार्थियों की गोद भराई होगी।
आगामी 19, 20 अक्टूबर को मेरी भावना पर राष्ट्रीय विद्वत् संगोष्ठी सआदतगंज में आयोजित होगी। जिसके निर्देशक डॉ श्रेयांस कुमार जी जैन एवं संयोजन का सौभाग्य मुझे (डॉ सुनील संचय) को प्राप्त हो रहा है।
लख़नऊ में 16वां दीक्षा दिवस : मुनिश्री का 2024 का मङ्गल वर्षायोग उत्तर प्रदेश की राजधानी लख़नऊ में विविध प्रभावनामयी आयोजनों के साथ चल रहा है। 14 अक्टूबर को सआदतगंज लख़नऊ में मुनिश्री का 16वां मुनि दीक्षा दिवस त्रिदिवसीय विविध आयोजनों के साथ अगाध श्रद्धा पूर्वक मनाया जाएगा, जिसमें मुनिश्री के भक्तगण दूरस्थ स्थानों से भी सम्मिलित होंगे। जिसमें 12 अक्टूबर को उपनयन संस्कार और 13 अक्टूबर को दंपत्ति मूलगुण संस्कार का आयोजन भी भव्यता के साथ होंगे।
मुनिश्री के साधनामयी तेजस्वी जीवन को शब्दों की परिधि में बांधना संभव नहीं है । यह सूर्य को दीपक दिखाना और सिंधु को बिंदु जैसा है ।
दीक्षा कल्याणक को प्राप्त करें : हमारे आराध्य पंच परमेष्ठी में साधु परमेष्ठी को गौरवान्वित कर रहे हैं। आप पांचों पदों को प्राप्त करें और इस दीक्षा दिवस पर उनके चरणों में नमोस्तु करते हुए भावना भाता हूं कि आपका दीक्षा कल्याणक भी हमें मनाने को मिले । दीक्षा दिवस पर यही भावना भाता हूं कि तपोवर्धन एवं स्व-पर कल्याण के निमित्त आप सदा स्वस्थ रहें, दीर्घायु होकर श्रमण संस्कृति- जैन धर्म की असीम प्रभावना करें और आशीर्वाद प्रदान करते रहें जिससे हम अपने जीवन को ज्योतिर्मय बना सकें।
महासभा और जैन गजट परिवार की ओर से सादर नमोस्तु!!!