रामलला पर विश्व का पहला डाक टिकट दक्षिण पूर्वी एशिया के देश लाओस ने किया।
विश्व संस्कृति में रचे-बसे श्री राम पर पूर्व में भी कई देशों में हो चुकें हैं डाक टिकट जारी परन्तु रामलला पर यह पहला मौका है।
बदनावर। श्री राम की दिव्यता का परिचय इससे ही मिलता है कि भारत ही नहीं विश्व के कई देशों में भगवान राम को किसी ने किसी रूप में पूजा जाता है। जो लोग राम को काल्पनिक बताने की बातें करते हैं उन्हें भारत के प्राचीन ग्रंथो को एवं विदेशी संस्कृति में रचे-बसे श्री राम के चरित्र के बारे में जानकारी लेना चाहिए। डाक टिकटों की बात करें तो देश-विदेश में राम के जीवन पर कई डाक टिकट जारी हुए है।
उक्त जानकारी देते हुए वर्द्धमानपुर शोध संस्थान के एवं डाक टिकट संग्राहक ओम पाटोदी ने बताया कि हाल ही में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 25 से 27 जुलाई 2024 तक लाओ पीपुल्स डेमोक्रेटिक रिपब्लिक की राजधानी वियनतियाने की अपनी तीन दिवसीय यात्रा के दौरान अयोध्या के राम लला पर विश्व के पहले डाक टिकट का अनावरण किया। इस प्रकार दक्षिण पूर्वी एशिया का देश लाओस श्री राम के बाल रूप एवं अयोध्या के रामलला मूर्ति शिल्प पर डाक टिकट जारी करने वाला पहला देश बन गया है। इस डाक टिकट पर हाल ही में अयोध्या के नवनिर्मित मंदिर में विराजमान रामलला की मूर्ति को दर्शाया गया है।
2000वर्ष प्राचीन जैन ग्रंथों में है राम का उल्लेख
पाटोदी ने बताया कि श्री राम का उल्लेख आचार्य रविषेण (सातवीं शती विक्रम संवत् ७३४ अर्थात् ६७७ ई० के लगभग)द्वारा रचित प्रसिद्ध जैन ग्रंथ ‘पद्मपुराण’ में मिलता हैं। यह ग्रंथ विमलसूरि रचित प्राकृत भाषा के ‘पउम चरियं’ का पल्लवित अनुवाद माना जाता है। जैन कवि विमलदेव सूरि जैन रामकथा के आदि कवि के रूप में प्रख्यात हैं। प्राकृत भाषा में रचित इनकी रचना पउम चरियं जैन रामकथा का आदि काव्य माना जाता है। विमल सूरि ने अपनी कृति की समाप्ति का समय विक्रम संवत् 60 में सूचित किया है। इस हिसाब से आज से 2021 वर्ष पूर्व यह काव्य रचना गया था, जिसमें पद्मप्रभ अर्थात् रामचन्द्र की कथा वर्णित है।