आगर मालवा (मध्य प्रदेश ) धरती बिछौना है आसमान ओढ़ना है तप संयम साधना ही जिनका गहना है ऐसे संतो के चरणों सदैव हमको रहना है। संतो के सानिध्य में रहने से मानव भले ही संत ना बन पाए परंतु संतोषी हो ही जाता है । जी हाँ। आपका परिचय एक ऐसे व्यक्तित्व से करवाता हूं जो विगत 25 सालों से जैन संतों की सेवा में समर्पित है
देव शास्त्र गुरू के परम भक्त व्यवहार कुशल प्रभाव शाली श्री पिताश्री रमेश चंद जी जैन एवम
माता श्रीमती शशीकांत जैन के सुयोग्य सुपुत्र जितेंद्र जैन विगत 25 वर्षों से कर रहे है जैन संतो की सेवा निरंतर श्रध्दा समर्पण के साथ करते आ रहे है। जब भी नगर के आस पास किसी भी जैन साधु संत का मंगल विहार हो तो सबसे पहले ये आपने ईष्ट मित्रो के साथ जाते है। इनकी धर्म पत्नी श्रीमती ज्योति जैन भी सद संस्कारो से युक्त है। विगत 35 वर्षों से जैन पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाले राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी पारस जैन “पार्श्वमणि” पत्रकार से ये जुड़े हुवे है निरंतर पारस जी को जानकारी देते रहते है। आपके परिवार में आपका एक पुत्र दर्शील जैन पुत्री मीतांशी जैन है। आपको ये जानकर बड़ा हर्ष होगा कि इनके द्वारा अभी तक 25 वर्षों में 200 से अधिक संतो का मंगल विहार में अविस्मरणीय भूमिका निभा चुके है। आगर में मात्र 25 घर की जैन सामाज है आपको
मुनियों की सेवा की प्रेरणा आदरणीय श्री भेरुलाल जी संपादक के द्वारा दी गई।
प्रस्तुति
राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी
पारस जैन “पार्श्वमणि”पत्रकार कोटा
9414763980
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