विद्वत् जगत के अनमोल ‘जवाहर’ थे , करणानुयोग मर्मज्ञ आदरणीय पंडित जी

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जैन सिद्धांत , करणानुयोग मर्मज्ञ, परम स्वाध्यायी मनीषी,विद्वद्वरेण्य,स्वनामधन्य, परम आदरणीय पंडित जवाहरलाल जी सिद्धांतशास्त्री की वाणी अब सुनने को नहीं मिलेगी। दिनांक 26 जून 2024 बुधवार को उनका देवलोकगमन हो गया। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने बहुत संयम बनाए रखा आपकी धर्मपत्नी ने बहुत सेवा की। पंडित जवाहरलाल जी दिगंबर जैन विद्वानों की लंबी परंपरा में अंतिम थे, जिन्हें सिद्धांत ग्रंथों का विशेष ज्ञान था।
पूरे भारतवर्ष में शास्त्रों का गहराई से अध्ययन व समझ हासिल करने वाले गिने -चुने पारंगत व धुरंधर मनीषियों में परम आदरणीय पं. जवाहरलाल जी शास्त्री (भिंडर) उदयपुर का नाम अग्रगण्य रहा। आपकी विद्वता की प्रशंसा तो परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज व परम पूज्य आचार्य श्री वर्द्धमानसागर जी महाराज जी सहित सभी संतों द्वारा मुक्तकण्ठ से की जाती थी। इन्हें शास्त्रों का चलता-फिरता गूगल कहा जाता था। आप बहुत ही मधुरभाषी, अत्यंत सहज, शांत, सरल स्वभाव वाले एक बहुत ही बहुमुखी विशिष्ठ व्यक्तित्व के धनी थे। आपका जन्म 26 अक्टूबर 1952 को भीण्डर (राज.) में श्रेष्ठि श्री मोतीलाल जी वक्तावत के यहां हुआ था। आपकी आदरणीया धर्मपत्नि कैलाश जी हायर सेकेंडरी स्कूल में व्याख्याता रही हैं।
आपने अनेक कृतियों, संपादन / लेखन किया है।
परम पूज्य संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के सान्निध्य में सन 1983, 1984 में जबलपुर व 1987 में ललितपुर में धवला पर वाचनाएँ आदरणीय पंडित जी ने की थी जिनकी श्रमण जगत और विद्वत् जगत में आज भी खूब चर्चा होती है। आप उच्च कोटि के विद्वान् होने के साथ ही अत्यंत सरल हृदय और सभी के प्रति वात्सल्यभावी थे, अहंकार उन्हें दूर-दूर तक नहीं छू पाया। मंच, माला, अहंकार से वे सदैव दूर रहे, मां जिनवाणी की जीवनभर निःस्वार्थ और निर्लोभता पूर्वक सेवा की।
बहुमुखी विशिष्ठ व्यक्तित्व के धनी परम आदरणीय पं. श्री जवाहर लाल जी भीण्डर (राजस्थान) को चा.च. आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज के आचार्य पद प्रतिष्ठापना शताब्दी वर्ष के अवसर पर प्रभावना जनकल्याण परिषद (रजि.) द्वारा वर्ष 2023 का ‘विद्यान्वेषी आचार्य श्री वर्द्धमानसागर पुरस्कार’ प्रदान करने के अवसर के दौरान मुझे उनके साक्षात् दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पुरस्कार समर्पण समारोह का आयोजन परम पूज्य वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्द्धमानसागर जी महाराज के सान्निध्य में सलूम्बर राजस्थान में 10 जनवरी 2024 को था। वे पुरस्कार आदि लेते नहीं थे लेकिन उनसे विशेष अनुरोध करने पर वह तैयार हो गए लेकिन वह पुरस्कार राशि ग्रहण नहीं करेंगे ऐसा संदेश प्राप्त हुआ। वे अस्वस्थता की वजह से सलूम्बर आयोजन स्थल पर नहीं पहुँच सके तो पूज्य आचार्यश्री के आशीर्वाद से हम लोग उनके निज निवास सर्व ऋतु विलास, उदयपुर राजस्थान 11 जनवरी 2024 को प्रातः पहुँच गए। अस्वस्थता की वजह से आदरणीय पंडित जी के पास किसी भी व्यक्ति को पूर्व समय लेकर जाना होता था। लेकिन जैसे ही उन्हें पता लगा हम लोग आना चाहते हैं उन्होंने तुरन्त संदेश पहुँचाया विद्वानों का समागम उन्हें बहुत अच्छा लगता है , आप लोग किसी भी समय आ जाएं। हम लोग उनके निवास पर पहुँचे, उन्होंने हम लोगों को जो वात्सल्य, स्नेह, मार्गदर्शन प्रदान किया उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। कुछ नजदीकी रिश्तेदार भी आ गए थे। विधिवत रूप से पुरस्कार स्वरूप प्रशस्ति पत्र, अंग वस्त्र, साहित्य, पगड़ी ,माला,श्रीफल, रजत कलश भेंट करने के बाद आदरणीय पंडितजी से तत्त्व चर्चा आरंभ हुई। मुझे करीब 20 मिनिट तक उनका साक्षात्कार लेने का अपूर्व अवसर प्राप्त हुआ, जिसकी रिकार्डिंग भी की गई। उन्होंने बताया कि आदरणीय पंडित रतनलाल जी मुख्तार सहारनपुर उनके गुरु थे, उन्होंने ( पंडित रतनलाल जी मुख्तार) करणानुयोग प्रभाकर सिद्धांत कोष बनाने में अपने जीवन के 33 साल लगाए , इसमें शंकाऒ के समाधान दिए गए हैं। पंडित जी ने बताया कि उन शंका समाधान के संपादन में उन्होंने अपनी जवानी के 15 लगा दिए यानी पूरा यौवन इसमें लगा दिया। उन्होंने बताया कि जैनेंद्र सिद्धांत कोष को तैयार करने में जिनेन्द्र वर्णी जी को 17 वर्ष लगे थे, (जिनेन्द्र वर्णी जी के गुरु भी पंडित रतनलाल जी मुख्तार थे) लेकिन यह इतिहास की एक अनोखी घटना थी जो करणानुयोग प्रभाकर तैयार करने में कुल 48 वर्ष लगे। 33 वर्ष गुरु जी यानि पंडित रतनलाल जी मुख्तार व 15 वर्ष मुझे। धवला के 16341 पृष्ठों में यह समाहित है। वे यह सब सुनाते हुए भावुक भी हुए और अपने गुरु को श्रद्धा पूर्वक स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि विद्वानों के द्वारा की गई साहित्य सपर्या भी एक बहुत बड़ी साधना है। समाज को विद्वानों की इस साधना को समझना चाहिए। पंडित जी ने बताया कि उस शंका समाधान को एक लंबे समय तक महासभा द्वारा प्रकाशित जैन गजट व जैन संदेश में उन्होंने प्रकाशित कराया, जिसे श्रमण जगत, विद्वत् जगत के साथ ही स्वाध्यायशील लोगों ने खूब सराहा और वे अंक भी लोगों ने सम्हालकर रखे। उन्होंने बताया अब साहित्य सृजन का नहीं साधना का समय है, जो मैं क्रमशः कर रहा हूँ।
इसी बीच उनकी धर्म पत्नी आदरणीया कैलाश जी ने हम लोगों को बताया कि आज एक लंबे समय के बाद पंडित जी ने इतने समय तक चर्चा की है और वह भी बैठकर। अन्यथा स्वास्थ्य कारणों से किसी से पांच-दस मिनिट ही चर्चा हो पाती थी। इतनी देर बातचीत होने पर उन्हें कोई परेशानी भी नहीं हुई। अंततः लगभग एक घंटे के समागम के बाद हम सभी सपरिवार उनका आशीर्वाद लेकर उनके निवास से बहुत सारा मार्गदर्शन लेकर लौटे।
बीमारी की स्थिति में वे अपने विशुद्ध परिणामों से सरल बने रहे उनसे मिलकर मैं कृतार्थ हो गया था।वे यथानाम तथागुण थे, सचमुच में वे ‘जवाहर’ थे। वे जिनवाणी के बहुमूल्यरत्न को परखने वाले अनमोल जौहरी भी थे। उन्होंने साहित्य, जिनवाणी सेवा, साधना के जो अनुभव सुनाए वे हमेशा हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे। उनका दिया गया मार्गदर्शन हमें सदैव जिनवाणी की निःस्वार्थ सेवा के लिए जागरूक बनाए रखेगा।
पंडित जुगलकिशोर जी मुख्तार, डॉ. हीरालाल जी जैन, पंडित नाथूराम प्रेमी जी ,डॉ. एएन जी उपाध्ये, डॉ. महेंद्र कुमार जी न्यायाचार्य, पंडित फूलचंद्र जी शास्त्री, पंडित कैलाशचंद्र जी शास्त्री, पंडित बालचंद्र जी शास्त्री, पंडित हीरालाल जी साढूमल, पंडित सुमेरुचंद्र दिवाकर जी, डॉ. नेमीचंद्र जी ज्योतिषाचार्य, डॉ. जगदीश चंद्र जैन जी, प्राचार्य नरेन्द्र प्रकाश जी, पंडित रतनलाल जी बैनाड़ा आदि प्रखर ज्ञान सूर्य, विद्वानों के बाद एक और अनमोल ‘जवाहर’ हमारे बीच से चले गए हैं। जैनसिद्धान्त और करणानुयोग के मर्मज्ञ विद्वत्प्रवर पं.श्री जवाहरलाल जी भिंडर के निधन से जैन धर्म, विद्वत् जगत और समाज को एक अपूरणीय क्षति हुई है ।
दिवंगत आत्मा के प्रति भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ ।जिनेन्द्र प्रभु से मंगल प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को शीघ्र अभ्युदय की प्राप्ति हो एवं शोकाकुल परिवार को यह असहनीय दुःख सहन करने को शक्ति प्राप्त हो।

-डॉ सुनील जैन ‘संचय’, ललितपुर
9793821108

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