इतिहास गवाह है जब-जब पृथ्वी पर अत्याचार, अनाचार ,दुराचार, हिंसा, का बोलबाला हुआ तब तब दिव्य आत्माओने ने इस धरातल पर अवतार लेकर समाज में आमूल चूल बदलाव लाया। इसी श्रेणी मे एक पवित्र आत्मा का जन्म हुआ ।जो बचपन से ही शौर्य और पराक्रम का धनी था ।इसलिए उनका नाम वीर, अतिवीर और महावीर पड़ा। वह साधारण प्रतिभा का धनी था इसलिए उन्हें सन्मति कहा गया। उनके गुण निरंतर वृद्धिगत होते थे इसलिए वर्धमान कहा गया।
भ महावीर मौलिक थे ,वे शास्त्रीय नहीं वैज्ञानिक थे।ऊन्होने सम्पुर्ण जीवन को प्रयोग शाला बनाकर आत्मिक और बौद्धिक चिंतन द्वारा निरपेक्ष सत्य का अनुभव कर संसार के जड़ और चेतन स्वरूप का अध्ययन किया और अंतरिक्ष विज्ञान, पदार्थ विज्ञान, परमाणु विज्ञान ,कर्म विज्ञान आदि के मूल सिद्धांतों की घोषणा की और जनमानस के कल्याणार्थ वितरित किया ।जिसे हम पंचशील सिद्धांत कहते हैं। जो अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह आचोर्य और ब्रह्मचर्य है ।यही हमें जीवन जीने की कला सिखाते हैं। क्योंकि वे व्यवहारिक जीवन की कसौटी पर कसे हुए शाश्वत सत्य है। उनमें वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिकता का अपूर्व सम्मिश्रण है। जिस पर चलकर कोई भी आत्मशुद्धि तथा आत्मोन्नति के शिखर पर आरुढ हो सकता है। हम यह कह सकते हैं कि दुनिया के सबसे बड़े वैज्ञानिक महावीर थे। क्योंकि गत दो सौ वर्ष से जिस गति से विज्ञान प्रगति कर रहा है उन सब में भ महावीर द्वारा छब्बीसौ वर्ष पूर्व कहे गए तत्वों का हम अनुभव कर रहे हैं ।आज जो हमें विज्ञान दिखा रहा है वह हजारों वर्ष पूर्वसेही हमारे शास्त्रों में वर्णित है ।उन्ही का रिसर्च वैज्ञानिक कर कर उनकी पुष्टि कर रहे है।द्रव्य दृष्टी से असत् का जन्म नही होता सत् का विनाश नही होता।यह सिद्धान्त त्रैकालीक है।आज हम आगम के सुत्रो को वैज्ञानिको के नाम से पहचानते है ।जैसे न्यूटनका गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत उसके जन्म के पुर्वसे ही था। उसने सिद्धांत बनाया नही ,मात्र बताया। सिद्धांत त्रैकालिक होते है ,तात्कालिक नही। वैज्ञानिक अन्वेषक हो सकते है,लेकिन कर्ता नही।जगत मे कुछ भी नया नही है।केवल वस्तु का परिणमन है।विज्ञान में सर्च नहीं रिसर्च होता है। अल्बर्ट आइंस्टीन ने सन् 1905 में महावीर के ही सिद्धांतों पर रिसर्च कर सापेक्षता के सिद्धांत की पुष्टि की। भ महावीर का अनेकांतवाद सापेक्षतावाद और बहुलवाद को प्रोत्साहित करता है। भ महावीर का अनेकान्तवाद सर्वोदयी तीर्थ है।अनेकांत जैन दर्शन का प्राण है, हृदय है ।अपनी ही बात का आग्रह नहीं रखना ,अनाग्रही भावना रखना यही अनेकांत वैचारिक सहिष्णुता है ।इसके बिना सहअस्तित्व की भावना टिक नहीं सकती। ऐसे महान सिद्धांत को पहले ही हमने समझ लिया होता तो आज धर्म के इतने बंटवारे नहीं होते ।जब तक सापेक्षता साथ में लेकर नहीं चलेंगे जीवन में सत्य को प्राप्त नहीं कर सकते ।भ महावीर धर्म जगत के आइंस्टीन है और आइंस्टीन विज्ञान जगत के महावीर है।
जाति, व्यक्ति, सम्प्रदाय आदि संकीर्ण विचारों से परे भ महावीर ने “‘साइंस ऑफ क्रिएशन एंड स्पिरिचुअल इवोल्यूशन'” का विकास जनकल्याण हेतु करकर मानव समाज को संदेश दिए और यथार्थता तथा प्राकृतिक नियमों पर आधारित एक ऐसे धर्म की स्थापना हो गई जिनमें जन्म- मृत्यु, सुख- दुख आदि मानवीय समस्याओं का समाधान ईश्वर द्वारा न होकर स्वयं मनुष्य द्वारा किया जाता है। इस सृष्टि का कोई कर्ता नहीं, कोई रक्षक नहीं। ।सोलहवी शताब्दी में यूरोप में भ महावीर के इस नियम को “लॉ ऑफ कंजर्वेशन ऑफ मास एंड एनर्जी “के नाम से प्रस्तुत कर आधुनिक विज्ञान की नींव रखी थी ।
किसी भी सिद्धांतों को समझने के लिए हमें उसकी तहतक पहुंचने के लिए विज्ञान का तरीका अपनाना होगा रामण इफेक्ट के अनुसार परमाणु लहर भी है ,तरंग भी है और कण भी है। अर्थात अभिन्नता, समन्वय विज्ञान का मूल सिद्धांत है। यानी परस्पर विरोधी होते हुए भी हम एक दूसरे के पूरक है। यही बात भ महावीर ने कही कि हम शरीर की दृष्टि से भिन्न है, लेकिन आत्मा की दृष्टि से अभिन्न। यहीं से उदय होती है जियो और जीने दो की भावना। भ महावीर ने कहा जब तक मनुष्य के मन में सअस्तित्व की प्रबल भावना जन्म नहीं लेती तब तक वह अहिंसक हो ही नहीं सकता। आज विश्व को इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है। जब तक अहिंसा मूलक भावना है सह अस्तीत्व की चेतना है तभी तक विश्व का संतुलन है ।आज सारा विश्व बारूद की ढेर पर मौत का सामान एकत्रित कर कर खड़ा है ।किसी एक के दिमाग में फितूर आ जाए तो कुछ ही क्षण में विश्व का नाश हो जाएगा। जिसका ताजा उदाहरण है यूक्रेन – रूस ,हमास और फ्रांस का युद्ध। इसलिए भ महावीर ने हजारों वर्ष पूर्व जो निशस्त्रीकरण की बात कही थी उसके लिए सारे विश्व को सजग होने की आवश्यकता है। परंतु विडंबना है आज सारा विश्व शांति की तो बात करता है पर तैयारी कर रहा है युद्ध की।
जब मार्क्स और लेनीनने अर्थ साम्यवाद की स्थापना पर जोर देते हुए कम्युनिस्ट विचारधारा को जन्म दिया तब लोगों की नजर भ महावीर के अपरिग्रह पर गई और वह अर्थ साम्यवाद के लिए कितना अहम और उपयोगी है यह जाना। क्योंकि संग्रह अशांति का अग्रदूत है ।वह अनेक समस्याओं को जन्म देता है। अपरिग्रह ही उसकी संजीवनी है। जो सामाजिक समता स्थापित कर सकता है ।विश्व में व्याप्त भ्रष्टाचार व कालेधन पर अंकुश लगाया जा सकता है।
आज के परिपेक्ष में देखे तो स्त्रियों के समान अधिकार एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता रखने हेतु महावीरजी के विचार सार्थक प्रतीत होते हैं। उनके ब्रह्मचर्य सूत्र आज के भोगवादी पाश्चात्य प्रभावी युग में बहुत प्रभावी है ।इससे बढ़ती जनसंख्या, निर्धनता, बेरोजगारी भिक्षावृती, आवास, निवास, बाल अपराध आदि अनेक समस्याओं का निराकरण होगा, तथा महामारी को विश्व में विकराल रूप धारण करने से भी रोक पायेगा।
आहार नियंत्रण वैज्ञानिक दृष्टि से एक महान औषधि है। चिकित्सा प्रणाली में भी उपवास के अनेक लाभ बताए गए हैं ।यथासंभव रात्री भोजन त्याग को वैज्ञानिको ने सही माना है ।भ महावीर ने तन -मन शुद्धी तथा आत्मबल बढ़ाने हेतु साधना एवं तपश्चर्या पर भी बल दिया ।भाषा विवेक से कई विवाद अपने आप टल जाते हैं। इसके कारण मन प्रसन्न रहता है। स्मरण शक्ति व संकल्प शक्ति का विकास होकर, स्वास्थ्य में सुधार होता है ।उसी प्रकार मांसाहार शरीर एवं मन के लिए प्राण घातक है और हिंसक प्रवृत्ति को जन्म देता है ।यह वैज्ञानिक सत्य है।
भ महावीर वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखते हुए कहते हैं कि जो मार्ग पर चलेगा उसे ही मार्ग फल मिलेगा। विज्ञान के सारे सिद्धांत और नियम भी यही कहते हैं ।मंजिल ऊन्हीके कदम चुमती है और उन्हे ही मकसुद होती है जो भगवान के दिखाए राहो पर चलते है।यही विज्ञान का “क्वाज एंड इफेक्ट” (कार्य का कारण) नियम है। इसे ही “कर्म सिद्धांत” कहा जाता है ।भ महावीर ने मनुष्य की पहचान ‘”जन्म से नहीं कर्म” से होती है ऐसा संदेश दिया था। जिस व्यक्ति ने इसे नहीं माना उसका जीवन पूर्ण अवैज्ञानिक सिद्ध हुआ।
एक ओर जीव हत्या तो दूसरी ओर वृक्ष के हत्यारे जो वृक्षो को काटकर कांक्रीट के जंगल बनाते जा रहे हैं। जिससे एक दिन ऐसा होगा जब मानव को रेगिस्तान की चिलचिलाती धूप में प्यासा मरना होगा। पर्यावरण, प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग के दौर में भ महावीर की प्रासंगिकता और बढ़ गई है। इसलिए तो वर्धमान स्वामी को पर्यावरण पुरुष और अहिंसा विज्ञान को पर्यावरण विज्ञान कहा जाता है।
उपरोक्त विवेचन से यह सिद्ध होता है कि भ महावीर ने भौतिक और जीव विज्ञान के सिद्धांतों की खोज की और उन्हें मोक्ष मार्ग के रूप में जनसमुदाय के सम्मुख प्रस्तुत किया ।भ महावीर के सिद्धांत और आधुनिक विज्ञान में जो भेद दिखाई देता है इसका मुख्य कारण रेफरेंस सिस्टम का है। वर्धमान ने आत्मा को केंद्र बिंदु मानकर सत् का प्रतिपादन किया और वैज्ञानिकों ने परमाणु को केंद्र बिंदु मानकर सिद्धांतों का कथन किया ।अतः सर्वग्य द्वारा सत् निरपेक्ष और वैज्ञानिक सिद्धांत सापेक्ष है।
जीवन के अस्तित्व के रक्षा के लिए पृथ्वी पर दो बातें मुलतः आवश्यक है। विज्ञान और अहिंसा ।विज्ञान बाह्य संसार है जो मूलतः पश्चिम से विकसित हुआ। अहिंसा भीतरी संसार का मूलतत्व है जो पूरब में विकसित हुआ ।पूरब और पश्चिम का मिलन ही पूर्णता प्रदान कर सकता है और मानव का कल्याण हो सकता है। क्योंकि विज्ञान सुविधा देता है और महावीर का संदेश शांति ।आज के भौतिकवादी वैज्ञानिक युग में वर्धमान स्वामी के सिद्धांत प्रासंगिक है क्योंकि विज्ञान अति और खतरनाक है। धर्म उसे संतुलन देगा और मनुष्य खतरे से बचेगा ।भ महावीर के समग्र सिद्धांत मानव जाति के लिए केवल अतीत में ही उपयोगी रहे वरन् उनकी प्रासंगिकता आज भी बरकरार है। वह कभी भी आउट ऑफ डेट नहीं हुए वे अपटुडेट, ही है । धरती पर जब तक कोई भी मनुष्य बुद्धि और हृदय द्वारा जीवन की राहो को पार करता रहेगा तब तक वर्धमान के उपदेशों और सिद्धांतों की उपयोगिता निर्विवाद बनी रहेगी ।इसका मूल कारण वे मात्र सद्ग्रंथ के उपदेश नहीं वरन् जीवन की वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक प्रस्तुति है ।
वर्धमान स्वामी का दीया तो 2600 वर्ष पूर्व जला था पर आश्चर्य की बात है कि ना तो उसमें किसी ने घी डाला, ना किसी ने उसकी बाती बढाई ,ना किसी ने लौ लगाई। महाभयंकर प्रलय आए उसके पश्चात उसके रोशनी में हम आज भी जी रहे हैं। उसकी धवल जोत्सना विश्व कल्याण कर सकती है ,ऊनका प्रकाश,ऊनकी आभा हमारे जीवन मे अद्भुत चमत्कार कर सकती है। अंतर्मन मे शान्ति और बोधि की सुवास भर सकती है।यदि व्यक्ति राग, द्वेष, ईर्ष्या, स्वार्थ एवं सांप्रदायिकता से ऊपर उठकर विज्ञान एवं अध्यात्म के समन्वय की ओर ले जाने वाली राह अपनाए।
महावीर दीपचंद ठोले छत्रपती संभाजीनगर (महा) 7588044495