अपने भीतर के महावीर को जगाएं
-डॉ. सुनील जैन ‘संचय’,ललितपुर
जैन परम्परा में 24 तीर्थंकर हुए हैं। वर्तमान कालीन 24 तीर्थंकरों की श्रृखंला में प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव और 24वें एवं अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी हैं। भगवान महावीर के जन्म कल्याणक को देश-विदेश में बडे़ ही उत्साह के साथ पूरी आस्था के साथ मनाया जाता है।
भगवान महावीर को वर्द्धमान, सन्मति, वीर, अतिवीर के नाम से भी जाना जाता है। ईसा से 599 पूर्व वैशाली गणराज्य के कुण्डलपुर में राजा सिद्धार्थ एवं माता त्रिशला की एक मात्र सन्तान के रूप में चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को आपका जन्म हुआ था। तिलोयपण्णत्ति ग्रंथ में आपके जन्म के संबंध में उल्लेख है-
सिद्धत्थराय पियकारिणीहि णयरम्मिकुंडले वीरो। उत्तर फग्गुणि रिक्खे चेत्त सिद तेरसीए उप्पण्णे ।।
30 वर्ष तक राजप्रासाद में रहकर आप आत्म स्वरूप का चिंतन एवं अपने वैराग्य के भावों में वृद्धि करते रहे। 30 वर्ष की युवावस्था में आप महल छोड़कर जंगल की ओर प्रयाण कर गये एवं वहां मुनि दीक्षा लेकर 12 वर्षों तक घोर तपश्चरण किया। तदुपरान्त 30 वर्षों तक देश के विविध अंचलों में पदविहार कर आपने संत्रस्त मानवता के कल्याण हेतु धर्म का उपदेश दिया। ईसा से 527 वर्ष पूर्व कार्तिक अमावस्या को उषाकाल में पावापुरी में आपको निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त हुआ।
नमः श्री वर्धमानाय, निर्भूत कलिलात्मने। सालोकानाम् त्रिलोकानाम् यद्विद्या दर्पणायते ।।
अर्थात् जिन्होंने अपनी आत्मा के कर्ममल को धो डाला है और जिनकी विद्या में अलोकाकाश सहित तीन लोक दर्पणवत् प्रतिबिम्बित होते हैं, उन श्री वर्धमान जिनेन्द्र को नमस्कार है।
महावीर जयंती हम प्रतिवर्ष मानते हैं, एकबार स्वयं महावीर के रास्ते पर चलने का यदि संकल्प ले लिया तो हम स्वयं महावीर बनने की ओर कदम बढ़ा लेंगे। इसलिए जरूरी है कि हम में से हर व्यक्ति महावीर बनने की तैयारी करे, तभी सभी समस्याओं से मुक्ति पाई जा सकती है। भगवान महावीर वही व्यक्ति बन सकता है, जो लक्ष्य के प्रति पूर्ण समर्पित हो, जिसमें दुःख-कष्टों को सहने की क्षमता हो। जिसको प्रतिकूल परिस्थितियों में भी संतुलन बनाना आ गया वह महावीर बन सकता है। आज की भागमभाग के जीवन में सुख-शांति की खोज महावीर के पथ से प्राप्त हो सकती है। जिसके मन मस्तिष्क में प्राणिमात्र के प्रति सहअस्तित्व की भावना हो। जो पुरुषार्थ के द्वारा अपना भाग्य बदलना जानता हो वह महावीर बन सकता है।
भगवान महावीर ने अपनी देशना में मानव के लिए उपदेश दिया कि धर्म का सही अर्थ समझो। धर्म तुम्हें सुख, शांति, समृद्धि, समाधि -यह सब आज देता है या बाद में -इसका मूल्य नहीं है। मूल्य इस बात का है कि धर्म तुम्हें समता, ईमानदारी, सत्य, पवित्रता, नैतिकता, स्याद्वाद, अपरिग्रह और अहिंसा की अनुभूति कराता है या नहीं। महावीर का जीवन हमारे लिए इसलिए महत्वपूर्ण है कि उसमें धर्म के सूत्र निहित हैं। आज महावीर के पुनर्जन्म की नहीं, बल्कि उनके द्वारा जीये गए मूल्यों के पुनर्जन्म की अपेक्षा है। जरूरत है हम बदलें, हमारा स्वभाव बदले और हम हर क्षण महावीर बनने की तैयारी में जुटें, तभी महावीर जयंती मनाना सार्थक होगा।
महावीर बनने की कसौटी है- देश और काल से निरपेक्ष तथा जाति और संप्रदाय की कारा से मुक्त चेतना का आविर्भाव। भगवान महावीर एक कालजयी और असांप्रदायिक महापुरुष थे, जिन्होंने अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांत को तीव्रता से जीया।
आज स्वार्थ, मोह और छल -कपट का बाजार गर्म है। नीति -अनीति, सत्य- असत्य और न्याय- अन्याय आदि का कोई ध्यान रखें बगैर उच्च पदस्थ लोग भी विभिन्न प्रकार के भ्रष्ट आचरणों में लिप्त हो रहे हैं। अपने ही लोग अपनों को गिराने में लगे हैं, जलन , द्वेष- ईर्ष्या , मोह-माया की प्रवृत्ति मानव के मन मस्तिष्क में घर कर गयी है। मानव स्वार्थी इतना हो गया है कि उसे अपने सिवा कुछ दिखता नहीं है। धर्म के कार्यों में ठगी और मंच, माला, माइक की प्रवृत्ति ने असली महावीर और उनके सिद्धांत कहीं गुम से हो गए हैं। मानव का मुखौटा इतना दिखावटी, बनावटी और सजावटी हो गया है कि सत्य, असत्य की पहचान ही कठिन हो गयी है। वह यह भूल ही गया है कि एक दिन इस संसार से विदा भी होना है! यह दुखद है कि राजनीति, न्याय, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में आए दिन आचरण की दृष्टि से कलुषित व्यवहार और मिथ्याचार की घटनाएं लगातार सुर्खियां बन रही हैं। इसी के साथ अपराधों की दुनिया का तेजी से विस्तार हो रहा है। ऐसे विकट हो रहे सामाजिक परिवेश में भगवान महावीर की प्रतीति और अनुभूति मार्गदर्शक भी है और आश्वस्त भी करने वाली है। आज हमें अपने भीतर के महावीर को जगाने की और महावीरमय होने की आवश्यकता है। भगवान महावीर स्वामी का स्मरण और उनके साथ तादात्म्य स्थापित करने की चेष्टा मनुष्य को कुमार्गगामी होने से बचने और सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है।
अपने अंदर के महावीर को जगाने के लिए एक ही सूत्र है -‘मैं’ का विसर्जन। मैं और मेरा का सतत संघर्ष चलता रहता है। अहंकार आत्म विकास के मार्ग में सबसे बड़ा अवरोधक है। जहां मान होता है वहां प्रेम खत्म हो जाता है फिर भी हम मान को नहीं निकाल पाते हैं। मान में भगवान नहीं दिखाई देते हैं और गुरु को भी नकार देते हैं। मान में अहंकार का वास रहता है जो हमें धर्म से विमुख कर देता है। अहंकारी व्यक्ति अपने आपको श्रेष्ठ तथा अन्य को तुच्छ समझता है। अंह के विसर्जन के बाद ही आत्म विकास संभव हैं।
आज भी सत्य, धैर्य, धर्म, करुणा, क्षमा, मैत्री और अहिंसा आदि के पालन से ही जीवन को मूल्यवान बनाना संभव है। इसी पथ पर आगे बढ़ने में मानव का कल्याण निहित है। महावीरमय होने का आशय दैहिक, दैविक और भौतिक तीनों तरह के तापों से मानव समाज की मुक्ति है। इसके लिए मन, बुद्धि और कर्म तीनों को पवित्र करना होगा। तभी विचार में बल आ सकेगा, मन स्फूर्ति का संचार होगा और हमारे कर्म फलवान हो सकेंगे। इसी वृत्ति के साथ सन्नद्ध होने पर ही देश, समाज के उत्थान के कार्य में कामयाबी मिल सकेगी।
आज विखंडित हो रहे समाज और विनाश की ओर बढ़ रही दुनिया को सही दिशा देने में भगवान महावीर की शिक्षाएं जितनी प्रासंगिक और उपयोगी हैं, उतना कोई नहीं। इसीलिए धरती की अविरल जीवन धारा के साथ भगवान महावीर सदैव अभिवंद्य रहेंगे।
महावीर पूजा में लिखा है-
जनम चैत सित तेरस के दिन, कुण्डलपुर कन वरना।
सुरगिरि सुरगुरु पूज रचायो, मैं पूजौं भवहरना।।