आत्मा की उन्नति ऊंचाई के लिए संयम रूपी ऊर्जा शक्ति जरूरी है ।तीर्थंकर पद भी संयम धारण किए बिना नहीं मिलता हैं
आचार्य श्री वर्धमान सागर जी
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धूप ख़ेपन से महक उठे जिनालय
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फागी संवाददाता
2 सितम्बर
वात्सल्य वारिधी आचार्य वर्धमान सागर जी महाराज स संघ के पावन सानिध्य में टोंक शहर में पर्यूषण पर्व पर अनेक धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं कार्यक्रम में आचार्य श्री ने सुगंध दशमी पर अपने मंगलमय आशीर्वचन में श्रृद्धालुओं को संबोधित करते हुए बताया कि संयम धर्म पर में साधु के लिए बताया गया कि व्रत धारण कर समिति का, गुप्ती का महावर्तो का पालन कर कषायो का निग्रह कर इंद्रियों पर विजय प्राप्त करते हैं, सम्यक रूप से इंद्रीयो का शमन करना संयम धर्म है। मनुष्य जीवन में नदी के समान तट संयम का होना जरूरी है क्योंकि नदी के तट किनारे टूट जाने से विनाश होता है इसलिए संसारी प्राणी को खान-पान, बोलने कार्य करने में चलने उठने बैठने आदि में संयम नहीं होने पर विपदा कष्ट आते हैं ।तीर्थंकर पद भी संयम के बिना नहीं मिलता है। इस कारण मन ,वचन और काय पर संयम जरूरी है जिस प्रकार पानी को रोककर बांध द्वारा उर्जा उत्पन्न होती हैं उसी प्रकार आत्मा की उन्नति ऊंचाई के लिए संयम जरूरी है यह मंगल देशना आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज ने दशलक्षण पर्व के छठे उत्तम संयम धर्म की विवेचना में प्रकट की, आचार्य श्री ने आगे बताया कि जिस प्रकार ऊंचाई पर स्थित पानी की टंकी को आप विद्युत पंप ऊर्जा से ऊपर चढ़ाते हैं,उसी प्रकार जीवन को भी उन्नति पर ले जाने के लिए संयम रूपी ऊर्जा शक्ति जरूरी है, लता बेल दीवार या रस्सी के सहारे ऊपर बढ़ती है उसी प्रकार बेल रूपी जीवन संयम से ऊंचाई को प्राप्त होता हैं। वाहन चलाते समय एकाग्रता रूपी ब्रेक जरूरी है उसी प्रकार जीवन में संयम रूपी ब्रेक जरूरी है हर पल हर घड़ी सावधानी संयम जरूरी है जीवन अनेक रोगों से ग्रसित है।संयम बंधन से संसारी आत्मा को कर्म बंधन से छुटकारा मिलता है, संयम हितकारी है ,संयम से वैराग्य होता है संयम से उन्नति होती है। अतिशयकारी श्री आदिनाथ भगवान का विभिन्न द्रव्यों से पंचामृत अभिषेक देखकर श्रवण बेलगोला के श्री बाहुबली भगवान का महामस्तकाभिषेक स्मरण में आ गया। पंचामृत अभिषेक आगम अनुसार होता है संघ में प्रथमाचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज के समय से चैत्यालय रखने की परंपरा है ताकि संघ के श्रावक श्राविकाओं को अभिषेक पूजन करने में असुविधा नहीं हो और जिस कारण समाज में कोई विवाद नहीं हो।क्योंकि अभिषेक के बिना पूजन अधूरा होता हैं। समाज की प्राचीन अभिषेक परंपरा को बदलना ठीक नहीं है। समाज प्रवक्ता पवन कंटान और विकास जागीरदार अनुसार आजआचार्य संघ सानिध्य एवं मुखारविंद से 108 परिवारों द्वारा 108 कलशो से देवाधिदेव 1008 भगवान आदिनाथ का दुग्धशांतिधारा पंचामृत अभिषेक बड़े भक्ति भाव के साथ किया गया एवम इसके पश्चात पांडाल में पांडुकशीला पर भगवान का पंचामृत अभिषेक व शांतिधारा की गई । आचार्य संघ के सानिध्य में इंद्रध्वज मंडल विधान में सोधर्मइंद्र दिनेश छामुनिया, टोनी आड़रा, मोहन लाल छामुनिया, सुमित दाखीया, ओम ककोड़, विकास अत्तर नीटू छामुनिया मुकेश बरवास लाल चंद फूलता, नेमीचंद बनेठा, अनिल सर्राफ आदि इंद्र द्वारा बड़े भक्ति भाव करके अर्घ्य समर्पित किए गए समाज ने सामूहिक रूप से नगर के सभी जिनालयों में अष्ट कर्मों के दहन के लिए धूप अग्नि पर अर्पित की।आज अनेक महिलाओं ने सुंगध दशमी के उपवास भी किए। शाम को श्री जी,मंडल विधान ओर आचार्य श्री की आरती के बाद सांस्कृतिक प्रश्नोत्तरी ओर अन्य कार्यक्रम हुए।
राजाबाबू गोधा जैन गजट संवाददाता राजस्थान