संजय जैन बड़जात्या कामां
वर्तमान से लेकर पुरातन तक सामाजिक परिदृश्य में बड़े ही बदलाव आए हैं जो अनवरत रूप से हो रहे है। बदलाव की यह बयार हमेशा से कुछ मंथर,कुछ मध्यम कुछ तीव्रता के साथ चलती आई है। लेकिन वर्तमान युग पिछले बीस वर्षों में ही बहुत तेजी के साथ परिवर्तित हुआ है और इस परिवर्तन में मुख्य भूमिका डिजिटलाइजेशन और मोबाइल क्रांति की रही है। सामाजिक परिदृश्य में यह बदलाव कितना रच बस रहा है इसका आकलन भी बहुत जरूरी है किंतु इस आलेख के माध्यम से बढ़ रही अपेक्षा और मिल रही उपेक्षा का छोटा सा विवेचन करते हैं।
सामान्य रूप से अपेक्षा का विलोम उपेक्षा ही है अर्थात जहां अपेक्षा रहती है और परिणाम विपरीत होता है तो वयक्ति स्वयं को उपेक्षित महसूस करता है। उसे ही उपेक्षा के रूप में जाना जाता है। सीधे अर्थ में अपेक्षा का अभिप्राय आशा, आकांक्षा, अभिलाषा, चाह,इच्छा,उम्मीद से लगाया जाता है। सामाजिकता में अपेक्षा से मतलब अन्य समाजजनों से मिलने वाले सम्मान व कार्य से लगाया जाता है। उपेक्षा का अर्थ भी बड़ा ही सरल शब्दों में अवहेलना,अनदेखा,नजरअंदाज, तुच्छ,भूलना,नकारना आदि है। वर्तमान में उपेक्षा को अंग्रेजी के शब्दों इग्नोर,इंडिफर्नेस, इनअटेंशन,कंटेम्पेट,डिसरिगार्ड, नेगलेक्टिंग आदि से भी समझा जा सकता है।
वर्तमान सामाजिक परिदृश्य में लोगों की अपेक्षाएं बहुत अधिक प्रबल होती हैं और जब उनके स्वयं के व्यक्तियों अर्थात जिन्हें वह अपना समझता है के द्वारा उन्हें अनदेखा किया जाता है। तो फिर वह स्वयं अपेक्षित महसूस करते हैं और स्वयं के सम्मान व अपमान से जोड़ कर देखते हैं। यही से एक लकीर खिंचने लगती है जो समय के साथ खाई का रूप धारण कर लेती है। यहां यह विवेचन भी आवश्यक है कि कार्यकर्ताओं की उपेक्षा समाज विकास में थोड़ा अवरोध जरूर लाती है। किंतु कार्यकर्ताओ की अधिक समय तक उपेक्षा की भी नही जा सकती क्योंकि उनमें काबिलियत छुपी होती है। इस सब के कारण समाज मे बढ़ रहे दम्भ,अहम,स्वप्रसिद्धि व अवहेलना का भाव रहता है।
उपेक्षा के साथ-साथ अपेक्षा स्वतः ही चलने वाली एक प्रक्रिया है। कब, कौन, किस क्रिया के कारण अपेक्षा महसूस करें इसका भी अंदाजा लगाना कठिन होता है। आपकी नजर ही इस बात को बयां करती है कि आप कितनी अपेक्षा रखते हैं और कितनी पूरी कर पाते हैं यदि उसमें कहीं कोई कमी रह जाती है तो फिर वह अपेक्षा की श्रेणी में आ जाती है। इसीलिए शास्त्रों व संतों ने स्पष्ट रूप से परिलक्षित किया है कि आप अपेक्षा ही मत रखिए जिससे कहीं उपेक्षा मिले अर्थात अपेक्षा में ही उपेक्षा छुपी हुई है।
सवांददाता जैन गजट
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