परिवर्तन संसार का नियम है जो अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है।इस प्रक्रिया से कोई भी अछूता नहीं रह पाया है। कुछ इस परिवर्तन को अत्यधिक तीव्रता के साथ ग्रहण कर लेते हैं और कुछ काफी देर के बाद इस परिवर्तन को स्वीकार करने की हिम्मत जुटा पाते हैं। इसके विपरीत यदि कुछ महत्वाकांक्षी व दूरदर्शी सामाजिक व्यक्तित्व की बात करें तो वे भावी परिवर्तन का पूर्व में ही कयास लगा लेते हैं और उसी के अनुसार स्वयं एवं समाज को परिवर्तित करने का प्रयास करते हैं। कुछ स्वयं बदलाव लाने की हिम्मत करते हैं जो मार्गदर्शक के रूप में स्वीकार किये जाते हैं।
वर्तमान युग मे भी तेजी के साथ परिवर्तन की बयार बह रही है, यू कहें कि नित नए विचार,आइडिया,तरीके युवा पीढ़ी के माध्यम से सामने आ रहे हैं तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी। इस सब मे टेक्नोलॉजी का बहुत बड़ा योगदान है। इस बढ़ते युग मे “लकीर का फकीर होना” थोड़ा बेमानी ही होगा।अतः बुजुर्गों को सामाजिक बदलाव को स्वीकार कर लेना चाहिए जो बेहतर परिणाम का द्योतक होता है।
परिवर्तित युग मे सामाजिक विचारधारा में भी परिवर्तन होना लाजमी है,किंतु यह परिवर्तन मर्यादित व सामाजिक परम्पराओं के अनुरुप सभी मापदंडों पर खरे होने चाहिए। परिवर्तन की आड़ में सामाजिकता का ह्रास किसी भी कीमत पर नही होना चाहिए। प्रत्येक परिवर्तन समाज के विकास,प्रगति व उन्नति से जुड़ा हो तो सामान्यतः स्वीकार कर लिया जाता है।
वर्तमान सामाजिक परिदृश्य को दृष्टिगोचर करे तो युवा और बुजुर्गों के बीच पीढ़ी का अंतर बड़ी तेजी से समाज को प्रभावित कर रहा है। युवाओं में दिखावे का प्रचलन इस कदर हावी होता जा रहा है कि वास्तविकता बहुत दूर होती जा रही है। समाज मे बनावटीपन का विकास भी तेजी के साथ पनप रहा है। जो सामाजिक ढांचे के लिए हर समय घातक ही रहता है। मैं यहां केवल इतनी ही चर्चा करना चाहता हूं की समाज में बनावटीपन और दिखावे कि इस प्रथा का चलन नहीं होना चाहिए। वास्तविकता के साथ जीवन को जिया जाए और प्रत्येक व्यक्ति को सामाजिक सम्मान प्रदान करते हुए समाज के विकास की राह खोजी जाए ।यही समाज के लिए बेहतर और सुखद परिणाम लाने वाला हो सकता है। वर्तमान परिदृश्य में आ रहे इस बनावटीपन के बदलाव को भी परिवर्तित करने की आवश्यकता है। यह दूरगामी परिणाम प्राप्त करने की एक प्रक्रिया है जिससे हमें गुजरना ही होगा।
सवांददाता जैन गजट
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