वर्तमान को सुधारने की आवश्यकता है भविष्य अपने आप सवर जायेगा।
दृष्टि बदले सृष्टि नहीं
मुनि 108 प्रज्ञान सागर जी महाराज
मेरी भावना शिक्षण संस्थानों के पाठ्यक्रम में लागू हो एवं प्रार्थना के रूप में बोली जाए आलेख की प्रतियां भेट की
नैनवा (बूंदी) परमपूज्य आचार्य 108 विनिश्चय सागर जी महाराज के शिष्य मुनि श्री 108 प्रज्ञान सागर जी महाराज एवं प्रसिद्ध सागर जी महाराज राजस्थान की पावन वसुंधरा छोटी काशी के नाम से सुविख्यात बूंदी जिले के अंतर्गत धर्म प्राण नगरी नैनवा में धर्मप्रभावना के साथ वर्षायोग कर रहे है ।मंदिर समिति एवं वर्षायोग समिति के कमल मारवाडा विनोद मारवाडा महावीर सरावगी प्रकाश जैन पदाधिकारियों ने विगत 35 वर्षों से जैन पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाले राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी पारस जैन “पार्श्वमणि” पत्रकार कोटा एवं खंडेलवाल सरावगी समाज के पूर्व अध्यक्ष रविंद्र जी काला बूंदी का सर पर पगड़ी माला व दुपट्टा पहनाकर स्मृति चिन्ह भेंट कर भाव भीना अभिनंदन किया। मेरी भावना संपूर्ण भारतवर्ष की शिक्षण संस्थानों में पाठ्यक्रम में शामिल हो एवं प्रार्थना के रूप में बोली जाए इस विषय पर पारस जैन “पार्श्वमणी” पत्रकार कोटा द्वारा भारत वर्ष की अलग-अलग भाषाओं में जो आलेख प्रकाशित हुआ इसकी प्रतिकृति भी मुनि श्री के कर कमलों में भेंट की गई द्वय मुनि श्री ने प्रसन्न चित्र मुद्रा में अपना मंगल आशीर्वाद प्रसन्नचित मुद्रा में इस पावन पुनीत कार्य के लिए प्रदान किया। परम पूज्य मुनि प्रज्ञानसागर जी की प्रवचन शैली बड़ी प्रभावशाली है जो एक बार उनकी वाणी को सुन लेता है वो उनका हो जाता है जैन धर्म दर्शन के गुड़ रहस्य को समझाने की सरल सरस भाषा में आपकी शैली चिर परिचित है । नैनवा शांति वीर धर्मशाला में आयोजित विशाल धर्म सभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री प्रज्ञान सागर जी ने कहा कि संसार प्रतिबिंब है जो दोगे वही मिलेगा भव सुधारने के लिए भाव सुधारना परम आवश्यक है। जैन धर्म दर्शन भावना प्रधान हे भावना भावना नाशनी भावना ही भव का नाश करती है द्रष्टि जैसी होती है वैसी सृष्टि दिखाई देती हे हमें दृष्टि बदलने की आवश्यकता है सृष्टि नहीं स्वयं सुधरे भगवान महावीर स्वामी ने भी अपने दिव्य संदेश में कहां है कि संसार को मत सुधारों स्वयं सुधरो यदि स्वयं सुधर जायेगे तो संसार स्वयं सुधरने लग जाएगा नजरे अस्पनी बदलो नजारे बदल जाएंगे। आगे उन्होंने कहा कि वर्तमान को सुधारने की आवश्यकता है भविष्य अपने आप सवर जायेगा।धर्मसभा को मुनि प्रसिद्ध सागर जी ने भी संबोधित किया।