वर्तमान को संभालिए, भविष्य स्वतः सुधर जाएगा -मुनिश्री विलोकसागर

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मुरैना (मनोज जैन नायक) सांसारिक प्राणी भविष्य की चिंता में अपने वर्तमान को भी खराब कर देता है । हमें अनेकों जन्मों के पुण्य से यह मानव पर्याय मिली है, इसे यो ही व्यर्थ नहीं गवाना है । इस मनुष्य पर्याय में हमें कर्तव्यनिष्ठ रहते हुए अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए । कर्तव्य ही हमारे जीवन की दिशा तय करता है । इसलिए हमें कर्तव्यशील बनना चाहिए । हम सभी को अपना वर्तमान सम्हालना चाहिए । वर्तमान सम्हल गया तो भविष्य स्वतः सम्हल जायेगा । लेकिन हम वर्तमान को बर्बाद करते हैं और भविष्य की चिंता करते रहते हैं। उक्त उद्गार मुनिश्री विलोकसागर महाराज ने बड़ा जैन मंदिर मुरैना में श्री सिद्धचक्र महामंडल के दौरान धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए ।
पूज्य मुनिश्री ने भव्य आत्माओं को संबोधित करते हुए कहा कि हम संसार में इतने रम गए हैं कि अपने कर्तव्य से विमुख होते जा रहे हैं। आप लोग सांसारिक कार्यों को अधिक महत्व देते हैं, धार्मिक क्रियाओं से दूरी बनाकर रखते हैं। मान लीजिए कि आपको कहीं बाहर जाना है, आपकी ट्रेन 8.30 बजे है तो आप स्टेशन पर 8 बजे ही पहुंच जाते हैं और मंदिर में कोई अनुष्ठान 08.30 पर है तो 09 बजे के बाद पहुंचते हैं। स्टेशन पहुंचने की इतनी सजगता रहती है और मंदिर आने में इतनी लापरवाही । इसीलिए हमारे पूर्वाचार्यों ने कहा है कि हमें धार्मिक अनुष्ठानों में भी कर्तव्यनिष्ठा का ध्यान रखना चाहिए ।
मुनिश्री विलोक सागर ने किए केशलोच
जैन साधु दीक्षा उपरांत अपने सिर, दाढ़ी एवं मूंछों के वालों को हटाने के लिए कभी भी कैंची, रेजर, ब्लेड या किसी रसायन का उपयोग नहीं करते । वे अपने बालों को घास फूस की तरह हाथों से उखाड़ते है । बालों को हाथों से उखाड़ने की क्रिया को ही केशलॉच कहा जाता है ।
मनुष्य के शरीर में सिर, दाढ़ी एवं मूंछों के बाल निरंतर और जल्दी बढ़ते रहते हैं । जैन मुनि अधिकतम 45 दिन के अंतराल से केशलोच करते हैं।
विगत दिवस मुरैना बड़े जैन मंदिर में विराजमान आचार्य श्री आर्जव सागर महाराज के शिष्य मुनिश्री विलोक सागर महाराज ने अपने हाथों से सिर, दाढ़ी, मूंछ के वालों को उखाड़ कर केशलॉच की क्रिया को पूरा किया । यह एक कठिन तप है, जिसे दिगंबर साधु बगैर किसी कठिनाई या परेशानी के एक अंतराल के बाद नियमित रूप से करते है ।
सिद्धचक्र विधान के तीसरे दिन चढ़ाए गए अर्घ
आठ दिवसीय सिद्धों की आराधना के तहत श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान के तीसरे दिन अभिषेक, शांतिधारा, पूजन के पश्चात विधान पुण्यार्जक चोरम्बार जैन परिवार सहित सभी इंद्र इंद्राणीयों ने भक्ति भाव के साथ अर्घ समर्पित किए ।
विधान में सहभागिता प्रदान करने वाले सभी बंधु पीले परिधान में एवं सभी महिलाएं केसरिया साड़ी में मुकुट एवं हार से सुशोभित थी । सभी लोग सिद्धों की जय जयकार करते हुए भक्ति के साथ नृत्य कर रहे थे । प्रतिष्ठा निर्देशक महेन्द्रकुमार शास्त्री एवं प्रतिष्ठाचार्य राजेंद्र शास्त्री मंगरोनी विधान के मध्य पूजन एवं श्लोकों का महत्व एवं अर्थ भी समझाते जा रहे थे ।

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