सन्तों व श्रावको को चिंतन, मनन व मंथन कर भावी योजनाएं बनानी चाहिए
जैन धर्मावलंबियों की संख्या लगातार कम होती जा रही है यह जनगणना के आंकड़े व्यक्त करते हैं। वास्तविक रूप से क्या आंकड़े हैं इसका अंदाजा लगाना शायद मुश्किल है। किंतु एक सार्थक और चिंतनीय प्रश्न सामने आकर खड़ा हो गया है कि भविष्य में क्या जैन धर्म के अनुयायियों की संख्या नगण्य हो जाएगी? जैन धर्म अन्य धर्म में तब्दील हो जाएगा? पहले प्रश्न पर महत्वपूर्ण चिंतन की आवश्यकता है क्योंकि दूसरा प्रश्न पहले प्रश्न से ही जुड़ा हुआ है।आखिरकार यह चिंतन क्यों हो रहा है और क्यों अब इस और कदम उठाने की आवश्यकता है इसके कुछ सटीक कारणों पर मंथन मनन करते हुए कार्य योजना बनाकर श्रावक और साधु दोनों को आगे बढ़ना होगा।
1- हम दो हमारे दो की प्रस्तावना से भी अलग, हम दो हमारे एक की प्रस्तावना पर हम चल रहे हैं और कुछ-कुछ तो हम दो हमारे एक भी नहीं की भावना भी व्यक्त कर रहे हैं।
2- जैन धर्म में वर्तमान में विजातीय विवाह अत्यधिक दिखाई दे रहे हैं।जिसमें हमारी बेटियां भी जैन धर्म से अन्य धर्म में जा रही है जिसे समाज के द्वारा स्वीकार किया जा रहा है।
3- अत्यधिक शिक्षित होने एवं अन्य सभ्यताओं से स्वयं की तुलना कर, उन सभ्यताओं को अपनाने की पद्धति बढ़ रही है।
4- अत्यधिक अभिभावक अपनी संतान की उन्नति चाहते हैं और उस उन्नति के चक्कर में अपनी संतान को विदेशों में भेज देते हैं जहां जैन धर्म के सिद्धांत बिल्कुल विलुप्त हो जाते हैं और वह संतान जैन धर्म से पृथक हो जाती है।
5- वर्तमान पीढ़ी जैन धर्म के सिद्धांतों को पृथक कर अपना अलग ही जीवन जीना चाहती है जो सिद्धांतों मान्यताओं और बाध्यताओं से बहुत दूर हो यूं कहें की खुलापन समाज में छाता जा रहा है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
6- नाम के साथ जैन शब्द का उपयोग न करने से भी इसमें बहुत बड़ी कमी आ रही है।
हो सकता है उक्त बिंदुओं से अलग आपकी कुछ मान्यताएं, विचार हो और आप मेरे विचारों से सहमत ना हो। किंतु वर्तमान परिस्थितियां काफी उलझी हुई है और ऐसी स्थिति में जैन धर्म को बचाने की कवायद सभी संतो और श्रावको को मिलकर करनी चाहिए। संत भी इस ओर ध्यान देंगे क्योंकि संतों का परम कर्तव्य होता है समाज को दिशा देना। संतो के मार्गदर्शन से बहुत बड़ा प्रभाव समाज के वर्ग पर पड़ता है। वर्तमान में समस्याएं तुच्छ या छोटी नजर आ सकती है किंतु भविष्य में यह सब बहुत विकराल रूप लेने वाली है। समाज के प्रबुद्ध जनों,विद्वानों,मनीषियों और सामाजिक संस्थाओं के द्वारा इस और अब प्रयास करने की माहिती आवश्यकता है सादर जय जिनेंद्र।
संजय जैन बड़जात्या, कामां, राष्ट्रीय प्रचार मंत्री धर्म जागृति संस्थान
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