वर्णी ज्ञान प्रभावना रथ का वर्णी जी की कर्मभूमि मड़ावरा में हुआ भव्य स्वागत एवं समापन समारोह संपन्न

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मनीष विद्यार्थी वर्णी गौरव से सम्मानित
 सागर। बुंदेलखंड सहित देशभर में  शिक्षा की अनोखी अलख जगाने वाले जनपद के ग्राम हँसेरा (मड़ावरा) में जन्मे गणेशप्रसाद जी वर्णी जी की 150 वी जन्म जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में वर्णी जी की मूर्ति  रथ पर विराजमान होकर मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश के श्री दिगंबर जैन सिद्ध क्षेत्र नैनागिर से होकर शाहगढ, बमोरी, बक्सवाहा, बड़ा मलहरा, द्रोणगिरी, भगवां, घुवारा, बड़ागांव, टीकमगढ़, जतारा, ललितपुर, सागर, मकरोनिया, बण्डा, शाहपुर,पथरिया,दमोह, गढ़ाकोटा, परसोरिया, कर्रापुर वराराठा एवं मड़ावरा मैं समापन    वर्णी जी कर्मभूमि वर्णी नगर मड़ावरा आगमन हुआ जिसका भव्य स्वागत विद्या विहार प्रांगण में  किया गया।
इसके बाद प्रातः 10 बजे से गणेश वर्णी प्रभावना रथ नगर के डाक बंगला, नया मंदिर, नेमिनाथ मंदिर, वर्णी पूर्व माध्यमिक विद्यालय, मुख्य बाजार आदि मुख्य मार्गों से गाजे-बाजे के साथ प्रभावना करते हुए पुनः विद्या विहार प्रांगण रथ पहुँचा। रास्ते में अनेक स्थानों पर श्रद्धालुओं ने आरती उतारी व स्वागत किया, वर्णी जी को नमन किया, बड़ी संख्या में वर्णी विकास संस्थान समिति एवं मड़ावरा जैन समाज के लोग रथ के साथ चलते हुए वर्णी जी के जयकारे लगाते हुए चल रहे थे। वर्णी विकास संस्थान समिति के पदाधिकारी खुशी में भक्ति नृत्य करते हुए चल रहे थे। इसी बीच वर्णी जी जहाँ रहते थे एवं जहाँ वह प्रवचन सुनते थे जिससे उनका जीवन परिवर्तन हुआ उस स्थान का भी बाहर से आए गणमान्य लोगों ने अवलोकन किया।
वर्णी प्रभावना रथ के नगर भ्रमण के बाद वर्णी नगर, विद्या विहार प्रांगण में गुणानुवाद सभा एवं सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। सभा का शुभारंभ वर्णी पूर्व माध्यमिक विद्यालय मड़ावरा की शिक्षिकाओं द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ, स्वागत भाषण वर्णी विकास संस्थान समिति के अध्यक्ष डॉ हरिश्चंद्र जैन सागर ने किया। संचालन वर्णी विकास संस्थान समिति के मुख्य संयोजक सोनू चंद्रेश शास्त्री जैसीनगर ने किया तथा आभार प्रदर्शन रथ के मुख्य संयोजक मनीष विद्यार्थी शाहगढ़ ने किया।
वर्णी गौरव से सम्मानित हुए विशिष्टजन : इस मौके पर वर्णी प्रभावना रथ के स्थानीय संयोजकों एवं रथ प्रभारियों को वर्णी गौरव उपाधि से अतिथियों द्वारा सम्मानित किया गया । पंडित शीतल चंद्र जैन, डॉ. सुनील संचय ललितपुर, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित प्राचार्य सुरेंद्रकुमार  भगवा, प्रमोद जैन गट्टू बड़ामलहरा, विजय शास्त्री सागर, प्रकाश जैन अदावन, रवि जैन पत्रकार घुवारा, मनीष विद्यार्थी शाहगढ़, श्रीमती अर्चना जैन बरायठा, देवेश शास्त्री बलेह, राजकुमार शास्त्री भगवा, राजकुमार जैन वमनी,संजय शास्त्री तिगोडा,अंकित शास्त्री सागर, सचिन ‘चिन्मय’ टीकमगढ़ आदि को आयोजन स्थल पर  प्रशस्ति पत्र , माला, अंग वस्त्र, तिलक, पगड़ी द्वारा डॉ वी सी जैन, डॉ शिखरचंद सिलोनिया, डॉ राकेश जैन, डॉ हरिश्चंद्र जैन सागर अध्यक्ष वर्णी विकास संस्थान, मुख्य संयोजक सोनू चंद्रेश शास्त्री जैसीनगर ,डी के सराफ, पंडित देवेंद्र जैन सौरई, जीवंधर  शास्त्री, अभिनंदन चौधरी, प्रकाशचंद्र जैन,  प्रकाश मऊना, संजय शास्त्री सागर, डॉ. विक्रम बजाज,हरिशंकर नायक,विनोद सौरई, अभिषेक सौरया,  त्रिलोक जैन मडावरा,संजय शास्त्री ढाना ,अरविंद शास्त्री, पी सी जैन सागर,  सूरज चौधरी, प्रकाश सिलोनिया, अभिषेक जैन,कडोरी लाल बण्डा,दीपचंद शास्त्री भोपाल  ,विमल शास्त्री सागर,प्रकाश शास्त्री सगौनी, कमलेश  जेरा,सुनील शास्त्री हीरापुर, टेकचंद जैन, राजुकमार,  अरविंद बमाना आदि वर्णी विकास संस्थान समिति एवं मड़ावरा जैन समाज के पदाधिकारियों  ने वर्णी गौरव सम्मान प्रदान कर सम्मानित किया । इस मौके पर वर्णी जी के परिजन हरिशंकर नायक आदि को भी सम्मानित किया गया।
वर्णी जी के जीवन के ऊपर एक चित्र प्रदर्शनी भी  लगाई गई । सभी ने अवलोकन कर वर्णी जी के विराट व्यक्तित्व को जाना । रथ में विराजमान अष्ट धातु की गणेश प्रसाद जी वर्णी की मूर्ति 350 किलो की वजनी और 4 फुट की है जो उनकी जन्म स्थली हँसेरा (मड़ावरा) में स्थापित होने के लिए तैयार हुई है।
इस मौके पर  वक्ताओं ने कहा की हँसेरा (मड़ावरा) के लाल गणेश प्रसाद जी वर्णी ने ऐसे समय में शिक्षा की अनोखी अलख जगाई जब शिक्षा के लिए कोई उपयुक्त स्थान नहीं थे। वर्णी जी की प्रेरणा से बुंदेलखंड सहित पूरे देश में अनेकों पाठशालाएं, विद्यालय, महाविद्यालय खुले, मड़ावरा उनकी कर्मभूमि रही है। यहीं से उनके जीवन को नई दिशा भी प्राप्त हुई, आज वर्णी जी की मूर्ति रथ पर जैसे ही नगर भ्रमण कर रही थी तो सभी वर्णी जी को नमन कर रहे थे। उनका न केवल शिक्षा के क्षेत्र में बल्कि आजादी की लड़ाई में भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उनकी चादर जबलपुर में नीलम हुई थी और उससे प्राप्त राशि आजाद हिंद फौज को दे दी गयी थी। 1942 के असहयोग आंदोलन में तो वर्णी जी की प्रेरणा से 1905 में स्थापित स्याद्वाद महाविद्यालय वाराणसी आंदोलन का गढ़ बन गया था। बिनोबा भावे तो वर्णी जी को अपना बड़ा भाई मानते थे। पूज्य वर्णी जी जैन प्राच्य विद्याओं, विद्यालयों के महान उद्धार कर्ता थे। इन्होंने शिक्षा जगत में महान क्रांति की। इन्होंने बुंदेलखंड की अवनत दशा को बड़ी गहराई से देखा -परखा और समझा था।
 सादर प्रकाशनार्थ
 जर्नलिस्ट मनीष विद्यार्थी सागर
9926409086

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