त्रिदिवसीय राष्ट्रीय विद्वत् संगोष्ठी अभूतपूर्व सफलता के साथ सम्पन्न
संस्कृति की रक्षा के लिए विद्वान आगे आएं : निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी महाराज
मुनिश्री बोले विद्वान अपनी अचार संहिता बनाएं
सागर। परम पूज्य निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी महाराज ससंघ के पावन सान्निध्य में अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत् परिषद के तत्वावधान में 9 से 11 नवम्बर 2024 तक तीर्थंकर ऋषभदेव से तीर्थंकर महावीर तक की ऐतिहासिक परंपरा पर डॉ जयकुमार जैन मुजफ्फरनगर, प्राचार्य अरुण जैन सांगानेर के निर्देशन में डॉ. सुरेंद्र जैन भारती बुरहानपुर के कुशल संयोजकत्व में भाग्योदय तीर्थ,सागर में आयोजित त्रिदिवसीय राष्ट्रीय विद्वत्संगोष्ठी सफलता पूर्वक सम्पन्न हुई।
संगोष्ठी के आठ सत्रों में 48 शोधालेख विद्वानों द्वारा प्रस्तुत किए गए जिसकी गहन समीक्षा पूज्य मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज ने की।
संगोष्ठी में प्रो फूलचंद्र प्रेमी वाराणसी, डॉ शीतल चंद्र जैन जयपुर, डॉ जयकुमार जैन मुजफ्फरनगर,
प्रोफेसर कमलेश जैन वाराणसी, प्राचार्य अरुण कुमार जैन सांगानेर, प्रो अशोक कुमार जैन वाराणसी, प्रो विजय कुमार जैन लखनऊ, डॉ सुरेन्द्र जैन भारती बुरहानपुर,डॉ नरेन्द्र जैन टीकमगढ़, प्रो ऋषभचंद्र फौजदार दमोह,प्रो अनेकांत जैन दिल्ली,डॉ अनिल अनिल जैन प्राचार्य जयपुर, डॉ धर्मेंद्र जैन जयपुर, डॉ नरेन्द्र जैन सनावद, डॉ रांका जैन दिल्ली, डॉ उज्जवला गोसावी, डॉ पंकज जैन इंदौर, डॉ ज्योति जैन खतौली,डॉ राकेश जैन जयपुर, डॉ सुनील संचय ललितपुर,डॉ आनंद जैन वाराणसी,वैभव मेहेत्रे जालना, डॉ पुलक जबलपुर, डॉ किरण प्रकाश सांगानेर, महेंद्र जैन शास्त्री मुरैना, डॉ नीलम सराफ ललितपुर, अनन्त बल्ले सोलापुर, डॉ आशीष जैन बम्होरी दमोह, , प्राचार्य सतीश शास्त्री सांगानेर, संजीव शास्त्री महरौनी, डॉ आलोक रानू भोपाल, डॉ राजेन्द्र चिंतामणि जैन नागपुर, डॉ प्रदीप तारादेही, विदुषी निर्मला सांघी जयपुर, विदुषी मंजुलता छाबड़ा जयपुर, डॉ सुमित जैन उदयपुर, डॉ ज्योतिबाबू जैन उदयपुर, पार्श्व प्रसाद जैन अलीगंज, आलोक मोदी ललितपुर, प्रशांत भारिल्ल ब्यावर, दिनेश गंगवाल, राजकुमार शास्त्री जयपुर, राजेन्द्र सुमन सागर, विदुषी प्रियंका जैन सागर, मनोज शास्त्री भगवा सागर, डॉ संजय जैन , विदुषी मंजुलता छाबड़ा आदि विद्वानों ने अपने शोध पत्र विभिन्न सत्रों में प्रस्तुत किए।
संगोष्ठी के सह संयोजक वैभव मैत्रे जालना, स्थानीय संयोजक राजेन्द्र सुमन, मनोज शास्त्री भगवा, डॉ संजय जैन रहे।
संगोष्ठी के आठ सत्रों की क्रमशः अध्यक्षता प्राचार्य अरुण जैन सांगानेर, प्रोफेसर फूलचंद्र जैन प्रेमी वाराणसी, प्रो. कमलेश कुमार जैन वाराणसी, प्रो. विजय जैन लखनऊ, डॉ नरेंद्र जैन टीकमगढ़, प्रो ऋषभचंद्र फौजदार दमोह, डॉ शीतल चंद्र जैन जयपुर, प्रो जयकुमार जैन मुजफ्फरनगर ने अध्यक्षता व प्रो विजय कुमार जैन लखनऊ, पंडित राजेन्द्र सुमन सागर, डॉ ज्योति जैन खतौली, प्रो अनेकांत जैन दिल्ली, संजीव शास्त्री महरौनी, डॉ सुनील जैन संचय ललितपुर, डॉ सुरेन्द्र जैन भारती बुरहानपुर ने संचालन किया।
विद्वान हुए पुरस्कृत : 11 नवम्बर को प्रो अशोक कुमार जैन वाराणसी, डॉ धर्मेंद्र भैया जयपुर, पंडित अरुण कुमार जी सांगानेर, पंडित अमित शास्त्री जबलपुर को श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर द्वारा एक-एक लाख रुपये की राशि पुण्यार्जक परिवारों द्वारा सम्मानित किया गया।
प्रो. अशोक कुमार जी जैन का हुआ अभिनंदन ग्रंथ का विमोचन व सम्मान : परम पूज्य मुनिपुंगव श्री सुधा सागर जी महाराज ससंघ के सानिध्य में दिनांक 12 नवंबर 2024 को भाग्योदय तीर्थसागर के विशाल विद्या सुधा मंडपम में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पूर्व जैन बौद्ध दर्शन विभाग अध्यक्ष प्रोफेसर अशोक कुमार जैन वाराणसी अध्यक्ष विद्वत् परिषद को अखिल भारतीय अभिनन्दन समिति ने शताधिक मूर्धन्य मनीषियों द्वारा श्रेष्ठी श्री ज्ञानेन्द्र कुमार जैन जी गदिया की अध्यक्षता में उन्हें ससम्मान अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट करके उनका अभूतपूर्व अभिनन्दन किया गया और उन्हें महामहोपाध्याय की उपाधि से विभूषित भी किया गया ।
विद्वत् परिषद का अधिवेशन : इस मौके पर 11 नवम्बर रात्रि व 12 नवम्बर को विद्वत् परिषद का अधिवेशन प्रो अशोक कुमार जैन वाराणसी की अध्यक्षता आयोजित हुआ। इस दौरान प्रो अशोक कुमार जैन ने विमोचन के बाद अध्यक्षीय वक्तव्य प्रस्तुत किया।
अधिवेशन में शताधिक विद्वानों की गरिमापूर्ण उपस्थिति रही। अनेक महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए। विद्वत्परिषद् के खुले अधिवेशन में परिषद् में धर्म और सामाजिक क्षेत्र में किये गये विशिष्ट कार्यों के लिए 10 विद्वानों को पुरस्कृत और सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर पूज्यमुनिश्री ने कहा कि संस्कृति बुझे हुए दीपक को जलाती है। हमारी संस्कृति का मूल लक्ष्य परमार्थ है। पुराण ग्रन्थों में तीर्थंकरों के धर्मोपदेश के साथ जो सांसारिक कलाओं का उपदेश प्राप्त होता है उसका कारण यह है कि तीर्थंकरों ने हमारे राग को उच्छृंखलता से रोककर राग को संस्कारित किया है । जिससे हमारा पतन न हो । जहाँ पाश्चात्य संस्कृति पर का उपयोग अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए करती है, वहीं भारतीय संस्कृति परमार्थ और आत्मदर्शन की संस्कृति है । विद्वानों का कर्तव्य है कि वे तीर्थंकरों के सिद्धान्तों का प्रचार- प्रसार देश-विदेश में करें ।
पूज्यमुनिश्री ने अधिवेशन में उपस्थित सभी विद्वानों से कहा कि उन्हें सर्वाधिक ध्यान अपनी आचारसंहिता के परिपालन पर देना चाहिए और अपनी पहचान को सुरक्षित रखकर परम्परा से प्राप्त गौरव और सम्मान की रक्षा करना चाहिए।
ज्ञान हमारी ज्ञान की पर्याय बनना चाहिए।
संस्कृति को जीवित रखने के लिए मुनियों ने अपने आपको भी मिटा दिया था।मूल परंपराओं को जीवित रखने के लिए विद्वानों को आगे आना चाहिए। जैनधर्म व्यक्ति के आश्रित नहीं वस्तु के आश्रित है।
-डॉ सुनील जैन संचय, ललितपुर
कार्यकारिणी सदस्य विद्वत् परिषद