तिजारा में प्राप्त प्रतिमा रात्रि करीब 9 बजे हुई देहरा मन्दिर में विराजमान

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विराजमान से पूर्व शक्तियों का कराया अहसास, समाजजनों से लिया वचन
तिजारा कस्बे के टोल टैक्स के पास निवासी सचिन पुत्र विक्रम जाति अहीर के घर खुदाई के दौरान लगभग ढाई वर्ष पूर्व अष्टधातु की एक प्रतिमा प्राप्त हुई। जिसे उसने अपने घर पर ही कपड़े में लपेटकर ही छूपा दिया और किसी को सूचना नहीं दी उसके साथ एक लोटा भी प्राप्त हुआ लेकिन उसमें उन्होंने बताया कि राख मिली थी।
धीरे-धीरे समय गुजरता गया जैसे ही पिछले वर्ष भाद्र मास आया तो प्रतिमा ने अपना चमत्कार दिखाना प्रारंभ किया। यू कहें की उचित स्थान प्राप्त करने के लिए प्रतिमा ने कई प्रकार के परचम दिए। जिन्हें उस परिवार ने स्वयं बयान किया, उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष भाद्र माह में मेरी लगभग 20 से 25 गाय मर गई और मुझे बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ। घर में दादी,पत्नी व अन्य को प्रतिमा की आवाज स्वप्न में सुनाई देती थी कि मेरा सम्मान नहीं कर रहे हो। इस वर्ष भी भाद्र मास में उस परिवार का काफी नुकसान हुआ और एक तीव्र आवाज आई कि मेरा सम्मान क्यों नहीं किया जा रहा है। एक छोटी सी पोस्ट सोशल मीडिया पर डाली। जिसके माध्यम से संपूर्ण तिजारा की समाज एकत्रित हुई और लगातार उनके परिवार से संपर्क स्थापित किया। जिसके परिणाम स्वरुप उन्होंने खुश होकर स्वयं ही इस प्रतिमा को तिजारा कमेटी को सुपुर्द कर दिया और अपनी गलती स्वीकार कर ली।
यह प्रतिमा अष्ट धातु की पद्मासन लगभग 5 इंच की है। जिस पर प्रशस्ति व चिन्ह स्पष्ट दृष्टि गोचर नही हो रहे हैं किंतु लोगो को ऐसा महसूस हो रहा है कि स्वस्तिक अंकित हो, उसी आधार पर सुपार्श्वनाथ भगवान की मान ली गयी है।
परम् पूज्य आचार्य श्री वसुनन्दी जी महाराज की सुशिष्या आर्यिका श्री वर्धस्व नंदनी माताजी ससंघ के सानिध्य में देहरा समिति द्वारा अभी मानस्तम्भ पर प्रतिमा जी को विराजमान किया गया है और आगे की भूमिका बनाई जा रही है।
जब प्रतिमा को समाजजन उस अहीर परिवार के घर लेने पहुंचे तो वहां एक व्यक्ति को स्वत ही कुछ शक्तियों के आने का आभास हुआ और उन्होंने प्रतिमा ले जाने से पहले समाज से पूछा कि तुम मुझे जहां ले रहे आ रहे हो वहां मेरा सम्मान तो करोगे तब समाज जनों ने हाथ जोड़कर कहा कि हां बिल्कुल सम्मान जनक तरीके से आपको विराजमान करेंगे और आपको देहरा मंदिर तिजारा ले जा रहे हैं। लगभग कुछ मिनट तक वह शक्ति उन व्यक्ति में विराजमान रही।
प्रतिमा को जैसे ही किसी कपड़े में लपेटकर उस परिवार के द्वारा घर पर रखा जाता था तो कुछ समय बाद वह कपड़ा स्वतः ही फट जाता था उसमें छिद्र हो जाते थे लगभग ऐसे 20 से 25 बार कपड़ों का बदलाव परिवार के द्वारा किया गया। अनेको चमत्कारों के कारण प्रतिमा जी मन्दिर में विराजमान हो सकी।
संकलन व शब्द :- संजय जैन बड़जात्या कामां, राष्ट्रीय प्रचार मंत्री धर्म जागृति संस्थान

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