तीर्थराज सम्मेद शिखर की पावन पवित्रता पर मंडराता खतरा

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दिनांक 14 और 15 जनवरी 2025 को लाखों की संख्या में अजैन लोग पहुंचेंगे सम्मेद शिखर पर्वत पर फैलाएंगे अपवित्रता

जैन तीर्थ क्षेत्र की रक्षा सुरक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है
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पारस जैन पार्श्वमणि पत्रकार कोटा की कलम से

*प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण धरती का स्वर्ग एक बार बंदे जो कोई ताकि नरक पशुपति नहीं होई ऐसे महान तीर्थ राज सम्मेद शिखर की बात है । तीर्थ स्थलों का कण-कण पूजनीय वंदनीय अभिनंदनीय होता है । तीर्थ स्थलों की पावन भूमि अनंतानंत जीवों के तप त्याग और साधना की रज से पवित्र होती है जिस जगह से करोड़ों जीवों ने संसार शरीर और भोगों को त्याग कर तप त्याग और साधना के मार्ग को अपनाकर संसार बंधन से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त किया ऐसे पवित्र पावन स्थल को अपवित्र करना कितने घोर पाप के बंध का कार्य हो रहा है। हर साल 14 और 15 जनवरी 2025 को लाखों की संख्या में लोग तीर्थराज पर्वत पर पर्यटन के लिए घूमने आते है इन दो दिनों के लिए संपूर्ण भारत से जो यात्री श्रद्धालुगण शिखर जी आते है उनको पर्वत पर वंदना के लिए नहीं जाने दिया जाता है। ये लोग पूरे पर्वत पर अपवित्रता फैलाते है। संपूर्ण भारत वर्ष का जैन समाज मूल दर्शक बनकर देखता रहता है । ये कैसी विडंबना है। तीर्थ स्थलों पर जन्मों जन्मों के पापो का नाश और पुण्य का संचय होता हैं । ऐसे तीर्थ स्थल पतित से पावन कंकर से शंकर नर से नारायण बनने के लिए होते है । आज के कलयुग में हमे केसे केसे नजारे देखने को मिल रहे है।ये सब कई सालो से चल रहा है। ये प्रकृति में विकृति का बहुत बड़ा कारण बनता है। जब जब मानव ने प्रकृति के आयामों के साथ खिलवाड़ किया है तब तब प्रकृति में विकृति आई हैं। हमे प्रकृति में संस्कृति का शंखनाद करना चाहिए।प्रकृति में विकृति का सबसे बड़ा रूप कोरोना सबको सबक सिखा कर चला गया। सादगी से जीवन जीने की कला भी सीखा गया। पूजनीय वंदनीय अभिनंदनीय पवित्र पावन स्थल को अपवित्र किया जा रहा है । ये संपूर्ण भारत वर्ष की जैन समाज के लिए बेहद दुखद शर्मनाक कलंकित घटना कही जा सकती है।

“कलयुग की ये कैसी बलिहारी है पाप और अत्याचार सब धर्म स्थल पर पड़ रहे भारी है।”

जैन समाज के जितने भी तीर्थ क्षेत्र अतिशय क्षेत्र सिद्ध क्षेत्र है उनकी पवित्र पावनता शुद्धता ज्यो की त्यों बनी रहनी चाहिए। इसके लिए सबसे पहले उन सभी क्षेत्रों के चारों ओर बाउंड्रीवाल करवा देना चाहिए। हम नए नए मंदिर बनाते जा रहे है और दूसरे हमारे प्राचीन तीर्थों और मंदिरों पर कब्जा करते जा रहे है। मुझे यह बात समझ नहीं आती कि संपूर्ण भारत में आज तक जैन समाज के द्वारा किसी भी अन्य धर्म या संप्रदाय के स्थान पर नाजायज कब्जा कर अपना धर्म स्थल घोषित नहीं किया तो फिर दूसरे धर्म के लोग क्यों हमारे तीर्थों धार्मिक स्थलों पर नाजायज कस्बा करने में क्यों लगे हुवे है। ये बड़ा सोचनीय गंभीर विषय है। सबसे बड़ा उदाहरण गुजरात प्रांत में सिद्ध क्षेत्र गिरनार जी को ले लीजिए वह भी हमारे हाथ से निकलता का रहा हैं । वहां दत्तात्रय मंदिर के सौंदर्य करण के लिए सरकार ने करोड़ों की राशि का बजट पास कर दिया।इंदौर गोमटगिरी तीर्थ क्षेत्र में दूसरे समाज के लोगों के लिए जगह देनी पड़ी। दिल्ली का कुतुबमीनार न जाने कितने जैन मंदिरों को तोड़ कर बनाया गया।जैन तीर्थ क्षेत्र की रक्षा सुरक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है।
अब समय की मांग है कि संपूर्ण भारत में जितने भी चातुर्मास जिस नगर जहा पर हो वहां पर एक तीर्थ रक्षा कलश की भी स्थापना करनी चाहिए।चातुर्मास के बाद उस राशि को उस अतिशय तीर्थ क्षेत्र के बाउंड्रीवाल करवाने में लगा देनी चाहिए। ऐसा प्रयास किया जाना चाहिए। तीर्थों को पर्यटन स्थल नहीं अपितु जैन तीर्थ घोषित करना चाहिए।इनकी प्राचीनता, पावनता, पवित्रता, भव्यता, पुरातत्वता प्रमाणिकता ज्यों की त्यों बनी रहनी चाहिए। प्राचीन तीर्थ भारतीय संस्कृति की अनमोल धरोहर होती है। इसकी रक्षा सुरक्षा करना हमारा परम कर्तव्य बनता है।
मैं राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी पारस जैन पार्श्वमणि पत्रकार जैन समाज की बड़ी बड़ी संस्थाओं के प्रतिनिधि मंडल से आत्मीय निवेदन करता हूं कि इस विषय को गंभीरता से लेवे। और तीर्थ स्थलों की पवित्रता बनाए रखे।
प्रस्तुति
पारस जैन पार्श्वमणि पत्रकार कोटा
9414764980

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