प्राणत देवलोक से च्यव कर एक अतिशय पुण्यशाली जीव राजग्रह नरेश सुमित्र की रानी पदमावती देवी की रत्नकुक्षी में उत्पन्न हुआ | चौदह महास्वप्न देखकर महारानी प्रमुदित हो उठी | ज्येष्ठ क्रष्ण अष्टमी को प्रभु का जन्म हुआ | सर्वत्र आनन्द का प्रसार हो गया |
युवावस्था में मुनिसुव्रत ने पाणीग्रहण संस्कार को स्वीकार किया | वे रा्ज्यारुढ भी हुए | अनेक वर्षों तक सुशासन से जनता को ला्भान्वित कर फ़ाल्गुन क्रष्णा अष्ट्मी को प्रव्रजित हुए | ग्यारह मास तक छ्दमस्थ अवस्था में रहकर फ़ाल्गुन क्रष्णा द्वादशी के दिन प्रभु ने केवलज्ञान प्राप्त किया | तीर्थ की स्थापना कर तीर्थण्कर के रूप में त्रिलोक पुज्य बने |
इन्द्र आदि अठारह गणधरों ने प्रभु के धर्म-परिवार का संचालन किया | चतुर्विध तीर्थ के सदस्यों की संख्या में तीस हजार श्रमण , पचास हजार श्राविकाएं थी |
आठ्वें बलदेव श्री राम एवं वासुदेव लक्ष्मण आदि कीर्ति -पुरुष भी प्रभु मुनिसुव्रत के तीर्थकाल मे हुए |
भगवान के चिन्ह का महत्व
कच्छप –
भगवान मुनिसुव्रतनाथ के चरणों का चिन्ह कच्छप है | कच्छप की एक विशेषता यह है कि वह खतरा देखकर अपने शरीर के अंगों को सिकोडकर निष्क्रिय हो जाता है जिसके कारण वह शत्रुओं से अपना बचाव कर लेता है | इसके इसी गुण से हमें यह सीखना चाहिए कि संसार में रहते हुए पापों से , विषयों से , बुराइयों से , हिंसा आदि आस्त्रवों रूपी शत्रुओं से बचना चाहिए तथा अपने आपको सीमित करते हुए इन्द्रियों को संयम में रखना चाहिए | कछुए की दूसरी विशेषता यह है कि वह जल और थल दोनों जगह समान रूप से दौडने में समर्थ है | उसके इस गुण से हमें यह शिक्षा लेनी चाहिए कि जहां जैसी परिस्थिति हो , उसके अनुरूप अपनी शक्ति लगाकर कार्य सिद्ध कर लें | साधनों के अभाव का रोना नहीं रोना चाहिए | कछुवा मन्द गति से परन्तु निरन्तर चलकर अपने लक्ष्य तक पहुंच जाता है इसी प्रकार हमें भी अपने लक्ष्य की प्राप्ति तक निरन्तर चलते रहना चाहिए |
तिथि दोयज सावन श्याम भयो, गरभागम मंगल मोद थयो |
हरिवृन्द सची पितु मातु जजें, हम पूजत ज्यौं अघ ओघ भजें ||
ॐ ह्रीं श्रावणकृष्णा द्वितीयायां गर्भमंगलमंडिताय श्रीमुनि0अर्घ्यं नि0स्वाहा |1
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड, भोपाल 462026 मोबाइल ०९४२५००६७५३
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