तीर्थंकर : चंद्रप्रभ और पार्श्वनाथ : समानता और विषमताओं पर एक नजर

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तीर्थंकर चंद्रप्रभ और पार्श्वनाथ का एक ही तिथि को जन्म और तप कल्याणक , सभी गुण समान : पर कद , आयु , रंग , तीर्थकाल में जमीन आसमान का अंतर हैं।
पौष कृष्ण एकादशी जो इस वर्ष 2024 के अंग्रेजी कलैंडर के पहले ही रविवार 07 जनवरी को है , वही दिन , जिस दिन दो तीर्थंकरों का जन्म हुआ और तप भी धारण किया , यानि आप कह सकते हैं कि तिथि एक , तीर्थंकर दो , कल्याणक चार । पूरे वर्ष में ऐसा अनोखा एक ही दिन है पौष कृष्ण एकादशी । वैसे सभी तीर्थंकर , गुणों के आइने से समान होते हैं , इतने गुण कि गुरु बृहस्पति भी गुणगान करें तो , जीवन पूरा हो जाये पर गुणों की जानकारी पूरी ना हो। दोनों तीर्थंकर फिर भी रंग, कद, आयु और तीर्थकाल में जमीन आसमान का अंतर है , जानते हैं ऐसे ही कुछ रोचक तथ्य –
# दोनों का ही जन्म उत्तरप्रदेश में हुआ , 8वें तीर्थंकर श्री चन्दाप्रभु का चन्द्रपुरी नगर की महारानी लक्ष्मणा देवी के गर्भ से , वहीं 23वें तीर्थंकर पार्श्व प्रभु का काशी (बनारस) में महारानी वामा देवी के गर्भ से।
# चन्द्र प्रभु का जन्म 7वें तीर्थंकर श्री सुपार्श्वजी 900 करोड़ सागर के बाद हुआ , वहीं पारस प्रभु का जन्म 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ जी के 83 हजार 650 वर्ष बाद हुआ।
# चंदाप्रभु वैजयंत नामक अनुत्तर विमान से आयु पूर्ण कर चन्द्रपुर में माता के गर्भ में आये , वहीं पारसनाथ जी प्रणत स्वर्ग में आयु पूर्ण कर इस धरा पर जन्मे।
# चंदाप्रभु के शरीर का वर्ण चन्द्रमा के समान श्वेत था , वहीं पारस प्रभु का शरीर हरित श्याम रंग का था।
# जहां चंदाप्रभु की आयु ढाई लाख वर्ष पूर्व थी (यानि 2.5 लाख गुना 84 लाख गुना 84 लाख वर्ष) , वहीं पारस प्रभु की आयु मात्र सौ वर्ष थी।
# चंदाप्रभु का कद 900 फुट था , वहीं पारस प्रभु का कद साढ़े 13 फुट था।
# चंदाप्रभु का राज्यकाल साढ़े 6 लाख पूर्व 24 पूर्वांग रहा , वहीं पारस प्रभु ने ना राज्य किया , न ही विवाह किया।
# श्री चंदाप्रभु का जन्म इक्ष्वाकु वंश में हुआ और पारस प्रभु का उग्र वंश में हुआ।
# श्री चंदाप्रभु जी में अधु्रवादि भावनाओं का चिंतवन करने से वैराग्य की भावना बलवती हो गई , वहीं पारसप्रभु जाति स्मरण से वैराग्य की ओर बढ़े।
# चंदाप्रभु जी को तप के लिये बढ़ते देख एक हजार राजाओं ने भी दीक्षा ग्रहण की , वहीं पारस प्रभु को दीक्षा की ओर बढ़ते देख 300 राजा उस ओर बढ़े , पर दिन एक ही था – पौष कृष्ण एकादशी।
# चंदाप्रभु को 3 माह के तप के बाद केवलज्ञान की प्राप्ति हुई , वहीं चार महीने तप के बाद पारस प्रभु को प्राप्ति हुई।
# चंदाप्रभु का समोशरण 100 किमी विस्तार का था , वहीं पारस प्रभु का समोशरण 15 किमी का था।
# चंदाप्रभु के 93 गणधर थे , वहीं पारसप्रभु के 10 गणधर।
# दोनों ने ही सम्मेद शिखरजी से मोक्ष निर्वाण प्राप्त किया , पर चंदाप्रभु ने बिल्कुल पूर्व दिशा में ललित कूट से , वहीं पारसप्रभु ने उसके विपरीत पश्चिम दिशा में स्वर्णभद्र कूट से।
# चंदा प्रभु जी का तीर्थकाल 90 करोड़ सागर चार पूर्वांग का रहा , वहीं पारसप्रभु का तीर्थकाल मात्र 278 वर्ष का रहा , 24 तीर्थंकरों में सबसे छोटा तीर्थकाल और फिर भी सबसे लोकप्रिय तीर्थंकर , सबसे ज्यादा प्रतिमायें पारस प्रभु की हैं।
ऐसी अनेक विभिन्नताओं के बावजूद दोनों ही तीर्थंकरों के अन्य तीर्थंकरों की तरह सभी गुण समान थे। आज हम जैन बंधु ही ऐसे अद्वितीय दिन के प्रचार प्रसार व गुणगान को भूल बैठे हैं और अपेक्षा करते हैं अन्य से कि वो आगे नहीं आते। अपने कर्तव्यपथ से भटके जैन समाज में नेतृत्वहीनता , बड़ी कमेटियों की उत्साहहीनता इसका बड़ा कारण है। अपनी संस्कृति व धर्म के प्रसार के लिये ही , हमें ही आगे आना होगा। बोलिये 8वें तीर्थंकर श्री चन्द्रप्रभ व 23वें तीर्थंकर श्री पारस प्रभु के 2900वें जन्म – 2870वें तप कल्याणक की जय-जय-जय।

🙏 सादर प्रकाशनार्थ

🙏 संकलन प्रस्तुति – रत्नेश जैन/ राजेश रागी वरिष्ठ पत्रकार बकस्वाहा

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