विधि, अभ्यास और गुरु को कभी नहीं छोड़ना चाहिए- पट्टाचार्य विशुद्ध सागर महाराज
इंदौर -30-4-2025
राजेश जैन दद्दू ने बताया की, महापर्व अक्षय तृतीया के विशेष अबूझ मुहूर्त में 12 आचार्यों ने अपने हाथों से थामकर जैसे ही आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज को पट्टाचार्य सिंहासन पर शुसोभित किया, पूरा पंडाल नगाड़ों, घंटियों, ढोल-मंजीरों शंखनाद और लाखों श्रद्धालुओं की जय जय गुरुदेव नमोस्तु शासन जयवंत हो की गूंज से गूंजायमान हो उठा। चारों दिशा से आए भट्टारक स्वामी ने मंत्रोच्चार किया, वहीं मुनि ससघ और आर्यिकाओं ने श्रमण संस्कृति के नवागत महामहिम आचार्य विशुद्ध सागर जी के पाद प्रक्षालन कर आशीर्वाद प्राप्त किया और ‘नमोस्तु’ निवेदित किया। धर्म समाज प्रचारक राजेश जैन दद्दू ने बताया कि तीर्थ स्वरूप
सुमतिनाथ दिगंबर जिनालय, गोधा एस्टेट, पट्टाचार्य महोत्सव समिति, गुरु भक्त परिवार एवं न्यासी सपना मनीष गोधा ने बताया कि 6 दिवसीय विशाल पट्टाचार्य महोत्सव का मुख्य आयोजन अत्यंत भव्यता एवं भक्ति श्रद्धा और खुशीयों के साथ मनाया गया। प्रातः काल की बेला में मंगल शोभा यात्रा निकाली गई, जिसके लिए चारों दिशाओं और विदेश से पधारे गुरु भक्त और धर्मालंबियों समाज जन ने सुबह पांच बजे से ही हाल में स्थान ग्रहण कर लिया था। प्रातः काल सात बजे के निर्धारित मुहूर्त में विशेष मंत्रोच्चारण गुंजायमान हुआ। अष्टकुमारियों ने मंगल कलश स्थापना की। प्रतीष्ठा चार्यो ने भूमि शुद्धि की। तीर्थ स्वरूप जिनालय के एवं गोधा एस्टेट के न्यासी मनीष सपना गोधा ने पवित्र नदियों से लाया गया जल, चंदन गंधोदक से सिंहासन का शुद्धिकरण किया गया।
तत पश्चात 12 आचार्यों ने हाथ थामकर श्रमण संस्कृति के महामहिम आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज को पट्टाचार्य विशाल सिंहासन पर विराजमान कर उन्हें विशाल संघ के भावी पट्टाचार्य के रूप में स्वीकार करते हुए अनुमोदना और सहमति प्रकट की।नवागत महामहिम आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी का स्वर्ण रजत कलश से भरें जल से हुआ पाद प्रक्षालन । तीर्थ स्वरूप
सुमतिनाथ दिगंबर जिनालय, गोधा स्टेट में मांगलिक बेला मे ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो समय स्थिर हो गया हो। दसों दिशाओं के साथ क्षेत्रपालों का आह्वान किया गया। वायुकुमार, मेघकुमार, अग्निकुमार के नाम के विधी विधान से अर्घ्य समर्पित कर उन्हें आमंत्रित कर प्रतिष्ठित किया गया।
इस अद्वितीय, ऐतिहासिक क्षण में 12 आचार्य, 8 उपाध्याय, 140 मुनि महाराजों व आर्यिका माताजी ने अपने पट्टाचार्य को सम्मानपूर्वक स्थापित किया। आयोजन के स्वप्न द्रष्टा मनीष-सपना गोधा ने स्वर्ण-रजत कलश जल से पट्टाचार्य पद पर विराजमान महामहिम आचार्य विशुद्ध सागर जी के चरणों का पाद प्रक्षालन किया और उस जल को बड़े ही श्रद्धापूर्वक अपने मस्तक पर लगाया। सभी मुनि संसघ महाराज और आर्यिकाओं माताऐं ने भी वह जल मस्तक से लगाकर आशीर्वाद प्राप्त ग्किया।
समाधिस्थ गणाचार्य गुरु विराग सागर जी के आदेश का शिष्यों ने किया पालन। शुभ दिवस
अक्षय तृतीया के इस शुभ अवसर पर महामहिम आचार्य श्री विशुद्ध सागर महाराज को पट्टाचार्य उपाधि गणाचार्य विराग सागर गुरु जी की आज्ञा से प्रदान की गई। शिष्यों ने अपने गुरु की आज्ञा को शिरोधार्य कर न केवल सुना, बल्कि उसे अक्षरशः पालन करते हुए पट्टाचार्य पदवी पर शोभायमान किया। प्रतिष्ठा,
विधानाचार्य पंडित धर्मचंद्र शास्त्री, चंद्रकांत ईंडी, नितिन झांझरी के निर्देशन में प्रातःकाल 5:15 बजे स्तुति, देव स्तवन, आचार्य वंदना एवं स्वाध्याय के पश्चात 6 बजे जिन अभिषेक व शांतिधारा की विधियां संपन्न हुईं। प्रातः 6:30 बजे मंगल जुलूस परिसर में निकाला गया। 36 संस्कार विधियों के अंतर्गत पट्टाचार्य पद प्रतिष्ठा संस्कार महामहोत्सव संपन्न हुआ। इसमें कलश स्थापना, भूमि शुद्धि, स्थान शुद्धि, सिंहासन शुद्धि के पश्चात लाखों समाज जन की उपस्थिति एवं गुरु भक्तों के निवेदन को शिरोधार्य करते हुए श्रमण संस्कृति के महामहिम आचार्य विशुद्ध सागर महाराज को सिंहासन पर विराजमान कर दीप स्थापना एवं पीठ शुद्धि के साथ महामहोत्सव पट्टाचार्य पद के माता-पिता बनने का परम सोभाग्य तीर्थ स्वरूप जिनालय के न्यासी गोधा परिवार के सपना-मनीष गोधा को प्राप्त हुआ।
रात्रि में महाआरती, लेजर शो और सम्राट खारवेल नाटिका का भव्य मंचन हुआ, जिसे जैन धर्मालंबियों ने अत्यंत सराहा।
पट्टाचार्य महामहिम आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी का पहला आशीर्वचन में कहा कि
“विधि, अभ्यास और गुरु को कभी नहीं छोड़ना चाहिए”।
— पट्टाचार्य विशुद्ध सागर महाराज ने लाखों की संख्या में पधारे समाज जन को अपनी मंगल देशना में संबोधित करते हुए कहा कि समाधिस्थ
“गुरुदेव विराग सागर ने मुझमें क्या देखा, यह मुझे नहीं पता। मैंने केवल गुरु सेवा और उनकी आज्ञा को देखा और उसी मार्ग पर बढ़ता गया। आज भी यह जिम्मेदारी गुरु आज्ञा से संभाल रहा हूं। मुझे याद है, मेरे गुरुदेव ने मेरे भीतर वैराग्य के बीज को पहचाना और एक झलक में ही वह प्रस्फुटित हो उठा। आगम कहता है कि एक बार जिसे गुरु मान लिया जाए, वह जीवन भर गुरु ही रहना चाहिए।
दीक्षा के बाद मैंने एक दिन भी गुरु कक्ष छोड़ा नहीं। मैंने संकल्प लिया था कि गुरु के सामने कभी लेटूंगा नहीं, न ही खांसूंगा। एक रात 3 बजे गुरुदेव की पिच्छी मेरे सिर पर घूम रही थी, उन्होंने कहा — ‘जाग जाओ, सोने की जरूरत नहीं है, जिनागम का रहस्य समझो।’ उस समय तो समझ नहीं आया, लेकिन आज समझ आ रहा है कि वे मुझे इस दायित्व के निर्वाहन के लिए तैयार कर रहे थे।
यदि मुझसे कोई प्रश्न पूछे कि आप इस पद तक कैसे पहुंचे तो मेरा उत्तर होगा — विधि, अभ्यास और गुरु का आशीर्वाद कभी नहीं छोड़ना चाहिए। आज इस सिंहासन पर जो प्रतिष्ठा हुई है, वह अकेले मेरी नहीं है, सभी 12 आचार्यों को मिलकर इस पद के कर्तव्यों का निर्वहन करना होगा।”इस अवसर पर मध्यप्रदेश सरकार के जनप्रिय केबीनेट मंत्री अपने अवतरण दिवस पर पहुंचे मंत्री कैलाश विजयवर्गीय तीर्थ स्वरूप जिनालय सुमतिधाम पहुंचे और पट्टाचार्य महामहिम आचार्य विशुद्ध सागर जी से आशीर्वाद ग्रहण किया। मंत्री जी ने कहा:
“इंदौर में मैंने इतने साधु-संतों का एक साथ ऐसा भव्य समागम पहले कभी नहीं देखा। यह दृश्य मेरे जीवन का अविस्मरणीय और गौरवपूर्ण है। मां अहिल्या की नगरी इंदौर आज पुण्यभूमि बन गई है। आज देश में बढ़ती अशांति और हिंसा को संतों की तप साधना ही रोक सकते हैं। जब तक इस धरती पर पानी और अग्नि हैं, तब तक जिन शासन जयवंत रहेगा। आप सभी संत समाज को शांति और अहिंसा का मार्ग दिखाएं।”नमोस्तु शासन जयवंत हो।