नई दिल्लीः निकटवर्ती तीर्थ तरूणसागरम ( गाजियाबाद ) में चातुर्मास कर रहे आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी महाराज से 16 अक्तूबर को पतंजलि योगपीठ के स्वामी रामदेव जी ने मंगलमय भेंट की। यहां आते ही रामदेव जी ने भव्य और विशाल मंदिर में तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ जी के दर्शन किए और फिर कडवे प्रवचनों के लिए मशहूर समाधिस्थ मुनि श्री तरूणसागरजी की प्रतिमा के दर्शन कर विनयांजलि अर्पित की। तत्पश्चात विशाल सभागार में आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी से बहुत ही सार्थक तत्वचर्चा की। दोनों संतों ने वेद, उपनिषद, भागवत और जैन दर्शन पर खुलकर तत्वचर्चा की। रामदेव जी ने आचार्य विद्यासागरजी, तरूणसागरजी और अन्य दिगंबर संतों से मिलन के प्रेरक प्रसंग बताते हुए महामंत्र णमोकार की महिमा बताई। आचार्य श्री ने कहा कि अत्यंत प्राचीन काल से ही वैदिक और श्रमण संस्कृतियां मिलजुलकर चलती आई हैं, दोनो ही संस्कृतियों ने एक-दूसरे से बहुत कुछ लिया-दिया है। तीर्थ के पदाधिकारियों ने स्वामी रामदेव जी का माल्यार्पण से भावभीना स्वागत किया। आचार्य श्री ने पिछले वर्ष 557 दिन की कठोर मौन साधना पूर्ण की थी जिस पर रामदेव जी ने कईं बातें पूछी तो आचार्य श्री ने वैज्ञानिक तरीके से समाधान दिया जिस पर रामदेव जी प्रसन्न हो गए। राकेश पाटनी के अनुसार इस प्रेरक मंगलमय मिलन के अवसर पर सैंकडों श्रद्धालु उपस्थित थे।
प्रस्तुतिः रमेश चंद्र जैन एडवोकेट, नवभारत टाइम्स नई दिल्ली
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