तपो मार्तंड अंतर्मना की तपस्या एवं विज्ञान महावीर दीपचंद ठोले ,छत्रपतीसंभाजीनगर श्री भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थ संरक्षिणी महासभा महाराष्ट्र

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तपो मार्तंड अंतर्मना की तपस्या एवं विज्ञान
    महावीर  दीपचंद ठोले ,छत्रपतीसंभाजीनगर
श्री भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थ संरक्षिणी  महासभा महाराष्ट्र 75880 44495
      जिनके गुणो को हमसे  गाया नहीं जाता। जिंनकी साधना का अंदाजा कभी लगाया नहीं जाता। जिनकी तपस्या का गुणगान  करें तो कैसा करें ।कि दुनिया में ऐसा अजूबा कहीं पाया नहीं जाता।
    ऐसे कठिनतम्, जघन्य, अद्भुत, अनोखे, अकल्पनीय, अनुठे,साधना में दुर्धर, उत्कृष्ट सिंह निषःक्रीडीत व्रत करने वाले प्रसन्नता के सागर तपोमूर्ति अंतर्मना आचार्य प्रसन्न सागर जी के साधना मयी जीवन को तो शब्दों के परिधि में बाधना असंभव है। वह कल्पनातीत, वर्णनातीत ,तर्कातीत, शब्दातीत है ।
      प्रकृति और विज्ञान की दृष्टि से तथा आध्यात्मिक, पौराणिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण से आचार्य श्री आज के भौतिकवादी एवं सुविधावादी पंचम काल में चतुर्थकालीन साधना कैसे करते हैं यह विज्ञान के लिए एक चिंतनीय व शोध का विषय है। प्रसन्नसागर जी की ओर देखने पर ऐसा लगता है कि उनमें जो विशेषता है वह उन्हें तीर्थंकरों की श्रेणी में ले जाती है ।और वह उनके पूर्व की पुण्याई का ही फल है।
      विज्ञान और तप दोनों ही मानव चेतना की खोज के दो मार्ग है। विज्ञान हमें बाह्य जगत की समझ देता है तो तप हमें आत्मा से मिलवाता है ।यदि विज्ञान और तप को साथ लाया जाए तो “ज्ञान और आत्मज्ञान का समुच्चय” मानवता को सच्चा कल्याण दे सकता है ।”तपं परम ज्ञानम् ” अर्थात जैन धर्म का मूल आधार तप है। तप सबसे बड़ा ज्ञान है। विजय और आत्मा के शुद्धी की प्रक्रिया है। आचार्य  श्री का जीवन वैराग्य ,संयम, आत्म निग्रह और ध्यान पर आधारित है ।मौन से मस्तिष्क का प्री प्रोफेशनल कोरटेक्स सक्रिय होता है ।जिससे निर्णय क्षमता और आत्म नियंत्रण बढ़ता है। मौन मस्तिष्क को डिटॉक्स करने में मदद करता है और चिंता तथा तनाव को घटना है। पूज्यपाद स्वामी ने कहा है कि साधक मौन साधना बहिर ख्याति के लिए नही आत्मानुभूति की सिद्धि के लिए करते हैं और अंत में ज्ञान को प्राप्त करता है। मौनम सर्वार्थ साधनम्
 इसलिए आचार्य प्रसन्नसागर  जी एकांत स्थान पर रहकर मौन साधना करते हैं।
     आधुनिक मानव ज्ञान के शिखरों पर चढ़ चुका है ।परंतु भीतर की शांति से दूर होते जा रहा है ।आत्मा की पुकार को विज्ञान नहीं सुन सकता किंतु तपस्वी की साधना सुनता है ।जैन धर्म में आत्मा को जानने की सर्वाधिक सूक्ष्म और वैज्ञानिक साधना मौन, एकांत ,निरंकार उपवास और दिगंबरत्व है।यही आत्म साक्षात्कार के मार्ग है।
    जो मौन में  बोले वह आत्मा की वाणी है। जो भूखे रहकर खिले वह साधना की कहानी है। दिगंबर तन पर वस्त्र नहीं पर ज्ञान में पूर्ण ज्योति है विज्ञान भी अब कहने लगा यही सर्वोच्च योगी है ।
   हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने शोध से सिद्ध कर दिया कि एकांत में ध्यान करने वाले व्यक्तियो की मानसिक स्थिरता और सहनशक्ति अधिक होती है ।उपवास करने से शरीर में ऑटो फेजी स्वशुद्धिकरण प्रक्रिया शुरू होती है ।लंबे समय तक उपवास से केटोन बॉडीज उत्पन्न होती है,
  मस्तिष्क ऊर्जा देता है और एकाग्रता में वृद्धि होती है ।नासा और जापान की शोध एजेंसियों ने लंबे उपवास को स्वास्थ्य पुनर्निर्माण पद्धति के रूप में स्वीकार किया है।  अध्यात्म शास्त्र में बतलाया है आहार सीमित, समय पर ,साधा और अनुत्तेजक हो। साथ ही भूख से कम मात्रा में हो। उपवास से मनुष्य तामसिक  व राजसिक आहार के मोह से दूर रहता है और प्रोटीन युक्त सात्विक आहार से मन एवं विचारों की शुद्धि होती है ।जिससे साधकों की आत्मोन्नति होती है ।इसीलिए तो आचार्य प्रसन्नसागर जी  नियमित रूप से 48 घंटे के पश्चात ही आहार लेते हैं और अनेक व्रत उपवास भी रखते हैं । वे हरदम यह कहते हैं कि कम खाकर मरने वालों की संख्या ज्यादा खाने वालों से कम है।
     चिकित्सकीय रूपसे अधिकांश डॉक्टर इस बात से सहमत है कि बिना भोजन मनुष्य 8 सप्ताह तक जीवित रह सकता है। लेकिन प्रसन्नसागर जी ने सिह निषःक्रीडीत व्रत रख कर  557 दिन तक बिना जल अनाज के जीवित रहे जो एक चमत्कार है ।जिसे विज्ञान ने ब्रेथरियनिज्म नाम  दिया है जो प्राण तत्वों पर आधारित है।
         आयुर्वेद के अनुसार हमें प्राण तत्व सूर्य की किरणों से प्राप्त होता है जिसे हमारे आचार्य श्री जेठ माह की कड़ी धूप में  और वर्ष  के12 ही महिने भरी दुपहरी को चिलचिलाती धुप मे छत पर बैठकर ही सामायिक कर कर इस प्राण तत्व की ऊर्जा का संग्रह कर लेते हैं ।जिससे उनका शरीर वज्र  का बन गया है। हमारा शरीर करीबन 67 प्रतिशत पानी से बना होता है ।जो हमारे जोड़ों के लिए लुब्रिकेंट का काम करता है ।और हमारे शरीर के तापमान को मौसम के अनुसार  संतुलित रखता है। ध्यान में जाने से आदमी भूख प्यास जैसी बुनियादी आवश्यकताओं को भुला देता है। शरीर 20% ऊर्जा की खपत हमारे दिमाग से करता है जब हम दिमाग को मौन  साधना   से शांत रखते हैं  तो ऊर्जा की गैर जरूरी खपत नहीं होती और इसी कारण आचार्य श्री की कठिन तम साधना सफल होती है। योग के माध्यम से भी कई महीनो तक बिना खाए पिए मनुष्य जीवित रह सकता है। जो आचार्य श्री ने सिद्ध  कर दिखाया।
    प्रसन्नसागर सागर जी की तप साधना जीवन के मानसिक, शारीरिक और सामाजिक स्वास्थ्य केलिएअत्यंत वैज्ञानिक, तर्कसंगत और अनुभव सिद्ध विधियां है। आपकी तपस्या और चर्या केवल धार्मिक या आस्थामुलक नहीं है यह वैज्ञानिक रूप से भी एक अत्यंत विकसित और संतुलित जीवन शैली है ।आज का विज्ञान कोनसियस  लिविंग की बात करता है ।प्रसन्नसागर जी उसका मूर्त स्वरूप है। आपकी तपस्या केवल आचरण नहीं ,आत्मा की जागृति की तीर्थ यात्रा है ।यह विज्ञान से परे  किंतु विवेक से युक्त मार्ग है ।
     तप साधना से निखरे आचार्य श्री *देवोपम सिद्ध पुरुष* कहलाने
के अधिकारी है ।क्योंकि आध्यात्मिक क्षेत्र में तप का सर्वाधिक महत्व है जो आत्मा को समग्र रूप से जान लेता है वह पूरे ब्रह्मांड को जान लेता है ।और आचार्य श्री ने भी अपनी तपश्चर्या से  सिद्ध कर दिखाया कि *विज्ञान सर्वोपरि नहीं धर्म सर्वोपरि है*
    ऐसे धर्मिक आस्थाओ  को जोड़ने वाले महायोगी, जन-जन को ऊन्मार्ग से सन्मार्ग बतलाने वाले, श्रेष्ठ सन्यासी ,अध्यात्म पंथी, आत्मा के सच्चे ऊपासक, आत्मान्वेषी , जगत के प्राणी मात्र को अहिंसा, क्षमा, करूणा ,समता का सद्बोध देने वाले भगवान महावीर के लघुनंदन ,धरती के चलते फिरते निर्ग्रंथ देवता आचार्य प्रसन्नसागर जी के चरणों में विनयान्जली अर्पण करते हुए भावना भाता हु की आपको शीघ्र ही ऋद्धि सिद्धि की प्राप्ति होकर मोक्ष मार्ग प्रशस्त हो ,हमारे जीवन को ज्योतिर्मय  बनाने में सार्थक सिद्ध हो और अगली भव में तीर्थंकर के रूप में अवतरित हो
  श्री संपादक  महोदय सा जयजिनेद्र।  आने वाली 23 जुलाई  को आ श्री प्रसन्नसागर जी का 55 वा जनकल्याणक महोत्सव तरूणसागरम  मुरादनगर  ऊ प्र  मे बडे श्रृद्धा एवं समर्पण भाव  से सम्पन्न  हो रहा।अतः यह आलेख आपकी  पत्रीका मे प्रकाशित  कर उपकृत  करे।धन्यवाद।
   महावीर  दीपचंद  ठोले,छत्रपतीसंभाजीनगर (महा)
 महामंत्री  श्री भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थ संरक्षिणी महासभा  (महा) 7588044495 नरेंद्र पियुष जैन औरंगाबाद

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