तप त्याग और साधना की मूर्ति थे विद्या सागर जी महा मुनिराज

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जो वास्तव में अनेकानेक विद्याओं के महासागर थे

आत्मीय भाव भीनी विन्यांजली
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पारस जैन पार्श्वमणि पत्रकार कोटा की कलम से

भारत वसुंधरा पर समय समय अनेकानेक दिव्य महान आत्माओं ने जन्म लेकर भारत की संस्कृति और उसके मूल्यों को चार चांद लगाए। संसार शरीर और भोगों को छोड़कर संयम को धारण कर नर से नारायण बनने का मार्ग प्रशस्त किया है। संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज का अभी हाल ही में 17 फरवरी 2024 की रात को महाप्रयाण अनेकानेक दिगंबर जैन संतो के पावन सानिध्य में समाधि के साथ चंद्रगिरी तीर्थ डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में हो गया है।
जहा त्याग तपस्या संयम शील की बहती निर्मल धारा वो विद्या गुरु हमारा।
अंजुली भर लेते है सागर भर देते है विष को अमृत और पतित को पावन कर देते है।धरती बिछोना है आसमान ओढ़ना है संयम तप त्याग और साधना जिनका गहना है ऐसे परम दिगंबर संत के बारे क्या कहना है।
जी हां भले ही आचार्य विद्या सागर जी महा मुनिराज का शरीर प्रत्यक्ष रूप से हमारे सामने नहीं है परंतु उनका विराट व्यक्तित्व सदैव सम्पूर्ण मानव जाति के मन मस्तिष्क पर छाया रहेगा।
राणा, प्रताप, मीरा, हाड़ी, रानी पन्ना धाय के तप त्याग और साधना की परम पवित्र पावन राजस्थान की मिट्टी में वो पुण्य शाली तत्व विद्यमान है कि इस मिट्टी ने हजारों किलोमीटर दूर स्थित कर्नाटक के सदलगा से विद्याधर को अपनी ओर खींच लिया। राजस्थान की मिट्टी का मान बढ़ाया है। मैं पारस जैन पार्श्वमणि पत्रकार कोटा जब जब भी बुंदेलखंड के धार्मिक आयोजनों में मंच संचालन के लिए जाता हूं तब एक ही बात कहता हूं कि हम राजस्थान के वासी है हम बीज बोने अर्थात डालने में विश्वास रखते है। पल्लवित करने के बाद, फल तो दूसरो को खिलाते है। परम पूज्य आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज का संपूर्ण जीवन काल बुंदेलखंड के अतिशय क्षेत्रो व तीर्थ क्षेत्रो एवम नगरों में प्रवास व चातुर्मास के साथ अभूतपूर्व धर्म प्रभावना के साथ निकला है। राजस्थान में उनका प्रवास बहुत ही कम रहा है। आचार्य गुरु श्री ज्ञान सागर जी महाराज के पास जब विद्याधर लंबी यात्रा करके पहुंचे है तब गुरु श्री ज्ञान सागर जी उनका नाम पूछते है, तब वो अपना नाम विद्याधर बताते है । विद्याधर ने आचार्य श्री को अपना शिष्य बनने की बोलते है तो गुरु श्री ज्ञान सागर महाराज जी कहते है कि तुम विद्याधर हो और विद्या लेकर कही उड़ तो नहीं जाओगे। अर्थात दूर तो नही चले जाओगे। तब विद्याधर उसी क्षण आजीवन वाहनों का त्याग कर देते है। तब उनकी अटूट श्रद्धा, लगन व समर्पण देख गुरु जी उनकी तरफ निहारने लगते है । अपने समय में गुरु ज्ञान सागर जी ने अपना आचार्य पद विद्या सागर जी को देने का प्रयास किया तो विद्या सागर जी महाराज ने आचार्य पद लेने से साफ मना कर दिया। तब गुरु ज्ञान सागर महाराज जी ने सोचा कि ये ऐसे पद नहीं लेंगे। तब गुरु ज्ञान सागर जी महाराज ने गुरु दक्षिणा मांगी तो विद्याधर निरुत्तर हो गए। इस तरह गुरु ज्ञान सागर जी महाराज ने अपना आचार्य पद श्री विद्या सागर जी महाराज को प्रदान किया। जो सेवा आचार्य श्री विद्या सागर महाराज ने गुरु ज्ञान सागर महाराज की वो शब्दो में कदापि नहीं लिखी जा सकती। विद्या सागर जी महाराज के द्वारा दिक्षित 500 से अधिक दिगंबर जैन मुनि, आर्यिका, ब्रह्मचारी भाई, बहनों, त्यागी- वृति शिष्य भारत की वसुंधरा पर श्रमण परंपरा को अनंत अनंत ऊचाइया प्रदान करेंगे। इसमें कोई संदेह नही है। एक बात बड़ी गौर करने वाली है कि उनके समस्त शिष्य यथा नाम तथा गुण वाले है। वास्तव में आचार्य श्री विद्या सागर जी महा मुनिराज अनेकानेक विद्याओ के महासागर से कम नहीं थे।उन्होंने कई जगह प्रतिभा स्थल बनाए जिसमें जैन, अजैन समाज की बालिकाएं धार्मिक संस्कारो के साथ- साथ लौकिक शिक्षा भी ग्रहण कर रही है। हथकरघा उद्योग विभिन्न स्थान व जेलों में चल रहे है। जहां से सभी की हर महीना हजारों रुपए की आय हो रही है। विभिन्न जगहों पर गोशालाएं चल रही है। कुंडलपुर बड़े बाबा को छोटे मंदिर से बड़े विराट मंदिर में विराजमान करने की आपकी योजना सर्व विदित है। उसके बारे में क्या लिखूं जितना लिखूं कम लगेगा। आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज के परम पुनीत हाथ लगते ही बड़े बाबा फूलों की तरह उठ कर विशाल नवीन मंदिर में विराज मान हो गए। इंडिया नहीं भारत बोले का नारा दिया। आपके द्वारा लिखा गया साहित्य लोगो के जीवन को जीवंत कर रहा है। आपके द्वारा लिखित मूकमाटी महाकाव्य सर्वाधिक लोकप्रिय है, वास्तव में व्यक्ति चला जाता है परंतु व्यक्ति का व्यक्तित्व सदैव अजर अमर रहता है। अन्त में गुरु चरणों में नमन करता हुआ यही भावना भाता हूं कि जब भी जीवन की अंतिम सांस निकले समाधि के साथ निकले। आपके पावन चरणों में नमन नमन नमन।
प्रस्तुति
राष्ट्रीय मिडिया प्रभारी
पारस जैन पार्श्वमणि पत्रकार कोटा
9414764980

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