स्वयं को बदलने के बजाय हम दूसरों को बदलने में

0
5
स्वयं को बदलने के बजाय हम दूसरों को बदलने में,
स्वयं को धर्मात्मा और ज्ञानी मानने की भूल कर रहे हैं..!अन्तर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी  औरंगाबाद दिली नरेंद्र पियुष जैन अन्तर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी महाराज एवं उपाध्याय पियूष सागरजी महाराज ससंघ तरुणसागरम तीर्थ पर वर्षायोग हेतु विराजमान हैं उनके सानिध्य में वहां विभिन्न धार्मिक कार्योंकम संपन्न हो रहें हैं उसी श्रुंखला में उपस्थित गुरु भक्तों को संबोधित करते हुए आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी महाराज ने कहा कि
स्वयं को बदलने के बजाय हम दूसरों को बदलने में,
स्वयं को धर्मात्मा और ज्ञानी मानने की भूल कर रहे हैं..!
आज के दौर में प्रवचन और सत्संग करने करवाने वालों की होड़ सी मची हुई है। अधिकांश कथाकार और प्रवचनकार ग्रन्थों के गूढ़ रहस्यों एवं अनुभवों से अनभिज्ञ है। यह सत्य है कि ग्रन्थों में जो लिखा है वो त्रिकालिक सत्य है, शाश्वत अमृत वचन है,, लेकिन उसकी गहराई को छूकर बोलने वाले या तदनुरूप आचरण करने वाले बहुत कम सन्त सन्यासी मिलेंगे। धर्म की व्यास पीठ पर बैठकर बोलने का अधिकार उसको ही है, जो ग्रन्थ के तदनुसार आचरण कर रहा हो। अन्यथ: व्यास पीठ पर बैठकर प्रवचन, सत्संग करना, करवाना निरर्थक है। धर्म को जब तक स्वयं धारण नहीं करें, तब तक प्रवचन सत्संग करने करवाने का अधिकार नहीं है। क्योंकि धर्म को धारण करके कही गई बातें स्व-पर के कल्याण में कारण है, अन्यथ: ऐसा ही है जैसे – मछली तो जल में रहे, तो भी बदबू ना जाये।
आज धर्म के अर्थ को समझने वाले कम और समझाने वाले बहुत ज्यादा लोग हो गये और जो समझ कर दुनिया को समझा रहे हैं वो भी योजनाओं में, धर्म की आड़ में मठो के मठाधीश बनकर बैठ गये हैं। सबको अपरिग्रह का उपदेश देकर, स्वयं जमीन-जायदाद के विस्तार में उलझ रहे हैं। ऐसे प्रवचनकार और कथाकार लोगों की श्रद्धा, भक्ति विश्वास का नायजाज फायदा उठाकर अपनी दुकान चला रहे हैं। धर्म के नाम पर लोगों को रट्टू तोते के समान धर्म, पन्थ, परम्परा और सम्प्रदाय का पाठ पढ़ा रहे हैं। जो उनके जाने के बाद वही अधर्म की सड़ांध को फैलाते रहे। धर्म के फल से कुत्ता देवता बन जाता है और अधर्म के फल से, देवता भी कुत्ता बन जाता है…!!!            नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here