स्वाध्याय मुक्ति के द्वार तक पहुंचाने में सहायक होता है -मुनिश्री विलोकसागर युगल मुनिराज श्रावकों को करा रहे हैं स्वाध्याय

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मुरैना (मनोज जैन नायक) भौतिकवादी आधुनिक युग में श्रावक स्वाध्याय से दूर होते जा रहे हैं। जबकि स्वाध्याय श्रावक के लिए स्वाध्याय परम आवश्यक है । स्वाध्याय जीवन के विकास की एक अनिवार्य आवश्यकता होते हुए संयम की साधना में सहायक होता है । स्वाध्याय से मिलने वाला ज्ञान सुरक्षित रहता है तथा श्रावक के ज्ञानकोष में निरन्तर वृद्धि होती रहती है। मानव जीवन में सुख की वृद्धि स्वाध्याय से ही होती है । अतः कहा जा सकता है कि स्वाध्याय एक ऐसी साधना है जो साधक को मुक्ति के द्वार तक पहुँचा देता है । स्वाध्याय आत्म-शुद्धि का एक महत्वपूर्ण साधन है। यह व्यक्ति को अपने कुविचारों और दुर्गुणों को दूर करने में मदद करता है, जिससे वह शुद्ध और पवित्र बनता है। जैन धर्म में, स्वाध्याय को मोक्ष प्राप्त करने के मार्ग में एक महत्वपूर्ण कदम माना जाता है। यह श्रावक को कर्मों के बंधन से मुक्त होने में मदद करता है। स्वाध्याय व्यक्ति को मिथ्या विचारों और दुराग्रहों से छुटकारा पाने में मदद करता है। उक्त उद्गार मुनिश्री विलोकसागर महाराज ने बड़े जैन मंदिर में धर्म सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए ।
मुनिश्री ने स्वाध्याय के महत्व को बताते हुए कहा कि जैन धर्म में स्वाध्याय करना श्रावकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण बताया गया है, क्योंकि यह ज्ञान, सम्यक् ज्ञान, सदाचार और आत्म-शुद्धि की प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण साधन है। स्वाध्याय के माध्यम से व्यक्ति अपने कुविचारों को दूर कर सकता है, सही और गलत का ज्ञान प्राप्त कर सकता है और जीवन को बेहतर ढंग से जीने की प्रेरणा पा सकता है। स्वाध्याय ज्ञान का भंडार है, और इसके माध्यम से व्यक्ति नए-नए ज्ञान प्राप्त कर सकता है। यह ज्ञान, चाहे वह सांसारिक हो या आध्यात्मिक, जीवन को बेहतर बनाने में मदद करता है। स्वाध्याय सही और गलत का भेद करने में मदद करता है। यह व्यक्ति को सही मार्ग पर चलने और गलत आदतों से दूर रहने के लिए प्रेरित करता है।
स्वाध्याय व्यक्ति को सदाचारी बनाता है। यह उसे अच्छे कर्म करने और बुरे कर्मों से बचने के लिए प्रेरित करता है। स्वाध्याय व्यक्ति को जीवन जीने की कला सिखाता है, जिससे वह जीवन को बेहतर ढंग से जी सकता है । स्वाध्याय व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास में मदद करता है। यह उसे आत्म-साक्षात्कार और आत्म-ज्ञान की ओर ले जाता है । स्वाध्याय जैन धर्म का एक अनिवार्य हिस्सा है, जो ज्ञान, सदाचार, आत्म-शुद्धि, और मोक्ष की प्राप्ति में मदद करता है। इसलिए श्रावकों को ज्ञान प्राप्ति के लिए, आत्मा को निर्मल रखने के लिए, संयम की साधना के लिए, यहां तक कि मोक्ष प्राप्ति के लिए सदैव पूर्वाचार्यों द्वारा रचित ग्रंथों का अपनी योग्यता के अनुसार सदैव स्वाध्याय करते रहना चाहिए ।
युगल मुनिराज श्रावकों को करा रहे हैं स्वाध्याय
मुनिश्री विलोक सागर महाराज प्रतिदिन प्रातः 08.00 बजे से 09.00 बजे तक समयसार ग्रन्थ, 09.00 बजे से 09.45 तक रयणसार ग्रन्थ की कथाओं के माध्यम से श्रावकों को स्वाध्याय करा रहे हैं।
शाम के समय मुनिश्री विबोधसागर महाराज विशेष कक्षाएं लेकर बच्चों को छहढाला एवं भक्तांबर का अध्ययन करा रहे हैं। पूज्य मुनिराज ने बहुत से नन्हें मुन्ने बच्चों को संस्कृत भक्तामर के अनेकों श्लोकों को कंठस्थ करा दिया है ।

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