सुमेरू पर्वत की रचना है कुतुबमीनार*- प्रो. अनेकांत

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जैन एकेडमिक एसोसिएशन (JAS) तथा श्री आदिनाथ मेमोरियल ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान मे आयोजित ‘भारतीय संस्कृति के विकास में जैन धर्म का योगदान’ विषयक ऑनलाइन मासिक व्याख्यान माला में  राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त विद्वान प्रोफेसर अनेकांत कुमार जैन, नई दिल्ली ने ‘कुतुबमीनार जैनमानस्तंभ या सुमेरु पर्वत ?’ विषय पर विविधतापूर्ण संदर्भ सहित महत्त्वपूर्ण व्याख्यान दिया ।
आपने बताया कि दिल्ली में महरोली के आस-पास पुराने इतिहास में जैनधर्म से संबंधित बहुत ज्यादा पुरातत्व मिलता है ,कुतुबमीनार तथा आसपास की मस्जिदों के निर्माण मे अनेक जैन मूर्तियो का अंकन आज भी देखा जा सकता है ।
इतना ही नहीं अपभ्रंश भाषा में कवि बुधश्रीधर द्वारा रचित ‘पासणाह चरिउ’ जैसे प्राचीन साहित्य में भी इस क्षेत्र में नाभेय जिनालय और गगनचुम्बी सालु  (कीर्तिस्तंभ )होने के संदर्भ प्राप्त हैं । इसका संपादन करने वाले प्रो. राजाराम जैन जी ने इसकी प्रस्तावना में लिखा है कि इसमें दिल्ली का असली इतिहास छुपा है । दिल्ली को सम्राट अनंगपाल ने बनवाया था । कुतबुद्दीन एबक ने अपने अरबी भाषा के अभिलेख में इसे सूर्यमेरु/ सूर्यस्तंभ (सुमेरु पर्वत )के रूप में भी उल्लेखित किया है ।
यहां हमें अनेक दृष्टि से विचार करके
 हमें और प्रयास करने होंगे और शोध संदर्भ एकत्रित कर प्रमाण प्रस्तुत करने होंगे ।
अतिथि के रूप मे शामिल प्रो पी.सी. जैन ने कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां दीं,जे ए एस के निदेशक डॉ नरेंद्र भंडारी ने कहा आपका व्याख्यान बहुत ही बढ़िया था अगर समाज सहयोग करें  तो विशेषज्ञ विद्वानों से प्रोजेक्ट रूप में यह शोधकार्य कराना चाहिए , कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पूर्व ए एष आई के वरिष्ठ अधिकारी डा मैन्युअल जोसेफ ने कहा प्रारंभिक तौर पर निसंदेह आपका व्याख्यान उत्साहवर्धक और महत्त्वपूर्ण है परंतु मैं पुरातत्व का विशेषज्ञ होने से उसके निर्माण मटेरियल, उपलब्ध सामग्री शिलालेख आदि के मूल्यांकन को प्राथमिकता देता हूँ । साहित्यिक संदर्भ भी महत्त्वपूर्ण हैं जो प्राथमिक सोर्स के रूप में उपलब्ध जरूर किये जा सकते हैं ।परंतु किसी भी स्थल की ऐतिहासिक प्रामाणिकता के लिये  साहित्यिक और पुरातात्विक दोनों संदर्भ चाहिए ।
अंत में कार्यक्रम के संयोजक शैलेंद्र जैन ने आगंतुक सभी अतिथियों एवं श्रोताओं का आभार प्रकट किया तथा संचालन  कामिनी बृजलाल ने किया । यह महत्वपूर्ण चर्चा JAS के यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध है जिसे https://youtu.be/hFQs5DYvmw8   लिंक पर देखा सुना जा सकता है ।
इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में अनेक विद्वान्,पुरातत्वविद,श्रेष्ठी गण,तथा शोधार्थी उपस्थित हुए और प्रश्नोत्तर के माध्यम से भी लाभान्वित हुए ।

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