सिद्धवरकूट अध्यात्म और प्रकृति का अनुपम उपहार

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उपाध्याय विरंजन सागर जी
सनावद/ सिद्धवरकूट सिद्ध क्षेत्र दिगंबर  जैन संस्कृति का अति प्राचीन अनुपम तीर्थ है।दो चक्री दस काम कुमार मुनि सहित साढ़े तीन करोड़ मुनियों की निर्वाण स्थली यह तीर्थ अध्यात्म और प्रकृति का अनुपम उपहार है। यह तीर्थ हमें बताता है कि हमारी संस्कृति अत्यंत ही समृद्ध है,जिसका इतिहास अनादि काल से है।उक्त विचार गणाचार्य विराग सागर जी महाराज के परम शिष्य उपाध्याय मुनि श्री विरंजन सागर जी महाराज ने सुहावना सिद्धवरकूट इतिहास पुस्तक के लेखक राजेंद्र जैन महावीर से हुई चर्चा में व्यक्त किए। इस अवसर पर ट्रस्टी आशीष चौधरी, रजनीश जैन,अजय जैन उपस्थित थे। उपाध्याय श्री संघ में तीन मुनि,एक क्षुल्लिका जी सम्मिलित हैं जो पट्टाचार्य महामहोत्सव सुमति धाम इंदौर से पद विहार कर छत्रपति सम्भाजी नगर जा रहे हैं। 12अप्रैल को प्रातः काल सनावद नगर में प्रवेश करेंगे। उपाध्याय श्री को क्षेत्र की जानकारी देते हुए आशीष चौधरी ने बताया कि वर्ष 2013में गणाचार्य विराग सागर
जी महाराज अपने विशाल संघ 71पीछी सहित पधारे थे।श्रद्धालुओं ने पद विहार में सम्मिलित होकर धर्म लाभ लिया। तपती धूप में मुनि संघ का विहार हुआ।

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