शुद्धि से प्राप्त होती हैं सभी उपलब्धियां – आचार्य श्री विमर्श सागर जी महामुनिराज

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शुद्धोच्चारण पूर्वक स्तोत्र की आराधना से रोगों का शमन। भावलिंगी संत

दिल्ली से सोनल जैन की रिपोर्ट

कृष्णानगर, जैन मंदिर में चातुर्मास कर रहे जिनागम पंथ प्रवर्तक, आदर्श महाकवि भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज के मुखार‌विन्द से श्री भक्ताभर महिमा पर विशेष व्याख्यान माला का आयोजन चल रहा प्रतिदिन शुरुवाणी का अमृत पान करने पूरे दिल्ली NCR. से भारी संख्या कृष्णा नगर जैन मंदिर पहुँच रहे हैं। है। दिगम्बर जैनाचार्य ने अपनी चिरपरिचित ओजस्वी वाणी में धर्म सभा की संबोधित करते हुये श्रेष्ठ जीवन भी उपलब्धि शुद्धि पर ही आधारित है। जीवन की जितनी भी महान उपलब्धियाँ हैं वे सब शुद्धि से ही प्राप्त की जाती है। किसी भी धमानुष्ठान की सिद्धि शुद्धि पर ही आधारित है। आप जब बोलते हैं तो लोक में कहा जाता है कि शब्दों का उच्चारण शुद्ध करो, स्पष्ट बोलो। कोई भी धर्म कार्य करते हैं तो सर्वप्रथम मनः शुध्दि आवश्यक है। पुनः शब्दों एका शुद्धिकरण एवं काय कभी शुद्धि आवश्यक होती है जब पूर्ण शुब्दि के साथ कोई धर्मनुिष्ठान किया जाता है तो निश्चित ही वो अतिशयकारी बन जाता है। निरंग्रंथ योगियों के लिये आहार जब कराया जाया है तो भी मन, वचा, काय की शुद्धि का ध्यान रखा जाता है। जीवन में उपलविधयों को प्राप्त करना है तो जीवनोपयोगी सारे स्तम्भ शुद्ध होना चाहिये।

भवतामर स्तोत्र जैन दर्शन में सर्वाधिक लोकप्रिय स्तोत्र है, घर घर में भक्तामर स्तोत्र का पाठ किया जाता है। गृहप्रवेश, प्रतिष्ठान के शुभारंभ आदि में सभी जैन परिवारों में भक्तामर स्तोत्र मथना भक्तामर विधान करने की – प्राचीन परम्परा है। यह स्तोत्र, महान अतिशय कारी है। आचार्य मानतुंग स्वामी ने स्वर, व्यंजन एवं बीजाक्षरों की अतिशय शुद्धि के साथ इस स्तोत्र भी रचना की है। जब से यह स्तोत्र रचा गया तभी से आजतक हजारों वर्षों की यह स्तोत्र चमत्कारी घटनामों का जनक रहा है) शुद्ध उच्चारण पूर्वक और विधिपूर्वक भगर इस स्तोत्र के मांगलिक बीजामरों का उच्चारण, पाठ भधवा भनुष्ठान किया जाता है तो निश्चित रूप से यह शारीरिक, मानसिक, एवं वाचनिक रोगों के उपशमन एवं भात्मशान्ति का कारण बनता है। शुध्दि के साथ श्रद्धा भी महत्त्वपूर्ण कारण है। जहाँ भर्थ, व्यन्जन, स्वर. भी शुद्धि उच्चारण को शुद्ध करती है वहीं अहा उससे शातिसय पुण्य का अर्जन कराती है। श्रद्धा पूर्वक इस महान स्तोत्र का भगर शुद्ध उच्चारण किया जाता है तो ऐन्ता लोक में कोई कोई कार्य नहीं है जो सिद्ध न हो सके।

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