चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज के आचार्य पद पदारोहण शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में हुआ व्याख्यान
वर्तमान श्रमण परंपरा आचार्य श्री शांतिसागर जी की देन : डॉ सुनील संचय
ललितपुर। क्षत्रपति शाहू जी महाराज विश्व विद्यालय कानपुर एवं आचार्य विद्यासागर सुधासागर जैन शोधपीठ कानपुर के तत्वावधान में
डॉ. विनय कुमार पाठक कुलपति के संरक्षकत्व में
चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज के आचार्य पद पदारोहण शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में वात्सल्य वारिधि पंचम पट्टाचार्य श्री वर्धमानसागर जी महाराज के मंगल आशीर्वाद से चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज एवं उनका अवदान विषय पर ऑनलाइन व्याख्यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मार्गदर्शक डॉ.शीतलचंद्र जैन जयपुर(निर्देशक श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर) रहे। राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित प्रो.फूलचंद्र जैन प्रेमी वाराणसी ने अध्यक्षता की । मुख्य वक्ता युवा मनीषी डॉ. सुनील जैन संचय ललितपुर रहे। प्रारंभ में मंगलाचरण अंशु जैन “कानपुर” ने किया। संयोजक पीठ के सचिव सुमित जैन शास्त्री कानपुर ने आभार व्यक्त किया संचालन राहुल जैन “इंदौर”सहायक आचार्य ने किया। स्वागत भाषण डॉ. कोमल जैन शास्त्री सहायक आचार्य ने किया।
अध्यक्षता करते हुए प्रोफेसर फूलचंद्र प्रेमी वाराणसी ने आचार्यश्री के अवदान को रेखांकित किया तथा उनके द्वारा जैन संस्कृति के संरक्षण में दिए गए अद्वितीय अवदान के बारे में विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि अचार्यश्री ने 1956 में 1105 दिन तक अन्न का त्याग करके और निरन्तर साधना करके जैनायतनों की पवित्रता की रक्षा कर जैनधर्म का महान उपकार किया था।
मार्गदर्शक डॉ शीतलचंद्र जैन प्राचार्य जयपुर ने कहा कि चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज ने दिगम्बर जैन श्रमण परंपरा को पुनर्जीवित कर जैनधर्म की अविस्मरणीय प्रभावना की थी। साधु संतों और श्रावकों को उनके द्वारा बताए गए मार्ग पर चलने की आवश्यकता है। व्याबर के उनके ऐतिहासिक चातुर्मास का उल्लेख किया जिसमें दो परंपरा के आचार्य एकसाथ एक मंच पर थे। अचार्यश्री के निमित्त उपादान, निश्चय व्यवहार के संदेश आज अधिक प्रासंगिक हैं।
इस मौके पर मुख्य वक्ता डॉ. सुनील जैन संचय ने कहा कि बीसवीं सदी के प्रथम दिगम्बर जैनाचार्य के रूप में जैन समाज ने जिस सूर्य का प्रकाश प्राप्त किया उसने सम्पूर्ण धरा का अंधकार समाप्त कर एक बार फिर से भगवान महावीर के युग का स्मरण कराया था वह थे श्रमण जगत में महामुनींद्र, चारित्र चक्रवर्ती, आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज थे।कर्नाटक के भोज के येलगुल में सन 1872 में जन्में बालक सातगौड़ा ने यरनाल में मुनिदीक्षा ग्रहण कर सन 1924 समडौली में आचार्य पद प्राप्त किया था। संपूर्ण देशभर में पद विहार कर उन्होंने बीसवी सदी में दिगम्बरत्व के विस्तार व जैनत्व के उन्नयन के लिए अनेकों कार्य किये । देव-शास्त्र-गुरु, धर्म, धर्मायतन एवं जिनशासन की रक्षा के लिए इन महामना अचार्यश्री ने अनेक महान कार्य किए हैं। इसलिए युग निर्माता के रूप में इनका स्मरण किया जाता है। आज जो विशाल श्रमण परंपरा दिखाई दे रही है यह इन्हीं महामना अचार्यश्री की देन है।वर्तमान में 1800 से अधिक पिच्छीधारी दिगम्बर जैन संत उनका स्मरण कर मोक्षमार्ग पर अग्रसर हैं । उनकी पट्ट परम्परा के पंचम पट्टाधीश आचार्य के रूप में आचार्यश्री वर्धमानसागरजी विगत 1990 से उक्त पद पर शोभायमान हैं ।
वर्तमान में चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज का आचार्य पद प्रतिष्ठापन के 100वें वर्ष को आचार्य पद प्रतिष्ठापना शताब्दी महोत्सव के रूप में में भव्य विशाल स्तर पर वैचारिक आयामों के साथ संस्कृति संवर्धन, सामाजिक सरोकार के बहुउद्देशीय पंचसूत्री कार्यक्रमों के साथ मनाया जा रहा है। इसका उदघाटन पंचम पट्टाचार्य आचार्यश्री वर्द्धमानसागर जी महाराज के सान्निध्य में अक्टूबर 2024 में भव्य उदघाटन भी हो चुका है।
इस मौके पर डॉ. सुरेन्द्र जैन भारती बुरहानपुर ने शताब्दी वर्ष को सफल बनाने के लिए अनेक सुझाव दिए तथा इस प्रकार की व्याख्यान मालाओं की आवश्यकता को प्रसंशनीय कदम बताया।
गौरव ग्रन्थ का प्रकाशन :
मुख्य वक्ता डॉ. सुनील जैन संचय ने सभी को जानकारी देते हुए बताया कि चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज के आचार्य पद प्रतिष्ठापन शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में पंचम पट्टाचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी महाराज की प्रेरणा से उनके अद्वितीय विराट व्यक्तित्व को नवीन पीढ़ी के समक्ष प्रकाशित करने के लिए एक गौरव ग्रंथ का प्रकाशन किया जा रहा है। आप सभी अपनी भावांजलि ,महत्वपूर्ण आलेख शीघ्रता से प्रकाशनार्थ भिजवाएं।
इस अवसर पर प्रोफेसर जयकुमार उपाध्ये दिल्ली, डॉ सुरेन्द्र जैन भारती बुरहानपुर, शोध न्यास पीठ के प्रमुख प्रदीप जैन तिजारा वाले, सुधींद्र जैन सीए, अरविंद जैन सीए, डॉ ज्योतिबाबू जैन उदयपुर, डॉ यतीश जैन जबलपुर, त्रिभुवन जैन महामंत्री कानपुर जैन समाज, सुरेन्द्र जैन वाराणसी, डॉ प्रिया जैन, पूनम जैन बहराइच, रमेशचंद्र शास्त्री जोबनेर, सपना जैन, रेनू जैन, सुमन गाजियाबाद, वी के जैन , दिनेश जैन, दीपक शास्त्री, उमेश जैन, बृजेश शास्त्री, संतोष जैन, सुषमा पाटनी, नीलम जैन आदि प्रमुख रूप से शामिल रहे।