जयपुर। शनिवार को वरुण पथ दिगम्बर जैन मंदिर मानसरोवर के प्रांगण पर धर्म प्रभावना महोत्सव के दूसरे दिन तृतीय पट्टाचार्य, तपस्वी सम्राट आचार्य सन्मति सागर महाराज का 84 वां जन्मजयंती एवं चतुर्थ पट्टाचार्य आचार्य सुनील सागर महाराज का 17 वां आचार्य पदारोहण महोत्सव श्रद्धा-भक्ति और गीत-संगीत के साथ मनाया गया, इस अवसर पर प्रातः 6.30 बजे मूलनायक भगवान महावीर स्वामी के स्वर्ण एवं रजत कलशों के साथ कलशाभिषेक एवं आचार्य श्री के मुखारविंद विश्व मे शांति की कामना करते हुए एवं आचार्य सन्मति सागर महाराज की समृति में भव्य स्वर्ण झरी से शांतिधारा कर अष्ट द्रव्य अर्घ चढ़ाया गया। इसके उपरांत प्रातः 8.15 बजे धर्मसभा हुई जिसे आचार्य सुनील सागर महाराज और आचार्य शंशाक सागर महाराज ने संबोधित किया।
प्रचार संयोजक अभिषेक जैन बिट्टू ने जानकारी देते हुए बताया कि शनिवार को मुख्य आयोजन दोपहर 1 बजे से आयोजित किया गया जिसमें आचार्य सन्मति सागर महाराज के 84 वें जन्मजयंती महोत्सव एवं आचार्य सुनील सागर महाराज के 17 वें आचार्य पदारोहण के अवसर पर 13 श्रेष्ठी पुण्यार्जक परिवारों द्वारा पूजन अर्चना की गई और 84 परिवारों द्वारा दीपकों के साथ महाअर्चना की गई। इसके उपरांत विन्याजनली सभा का आयोजन हुआ जिसे संघ में विराजमान मुनिराजों एवं आर्यिका माताजी सहित समाज के विद्धानों द्वारा आचार्य श्री को विन्यांजली समर्पित की गई।
शाम 6 बजे से भगवान महावीर स्वामी की मंगल आरती एवं आचार्य सन्मति सागर महाराज के चित्र सम्मुख 84 दीपों से गुरु अर्चना का भव्य आयोजन गीत-संगीत के साथ किया गया। इस दौरान आयोजन में सम्मिलित पूर्व विधायक ज्ञानदेव आहूजा, पुष्पेंद्र जैन पचेवर वाले, सुरेश चंद जैन बांदीकुई, निर्मल शाह, राकेश जैन, प्रमोद बाकलीवाल, सुनील गंगवाल, लोकेश सोगानी, शिखरचंद लुहाड़िया सहित सभी श्रेष्ठियों का स्वागत अध्यक्ष एमपी जैन, मंत्री जेके जैन, कोषाध्यक्ष कैलाश सेठी, उपाध्यक्ष ज्ञान बिलाला, संगठन मंत्री हेमेंद्र सेठी सहित समिति के पदाधिकारियों और महिला मंडल की सदस्याओं ने किया।
आचार्य सन्मति सागर गुरुदेव ऐसे अलौकिक दीपक थे जिन्होंने सारे बुझे दीपकों को जलाया – आचार्य सुनील सागर
आचार्य सन्मति सागर महाराज के 84 वें जन्म जयंती महोत्सव के अवसर पर आयोजित विन्यजनली सभा को संबोधित करते हुए आचार्य सुनील सागर महाराज ने कहा की ” आचार्य श्री एक तपस्वी सम्राट थे, उन्होंने अपना अधिकांश समय स्वयं के शरीर को तपने में व्यतीत किया, एक हजार से अधिक उपवास किए, सिंहनिर्षक्रीडित जैसे कठोरतम व्रत कर साधना में लीन रहे, वह एक ऐसे अलौकिक दीपक थे जिन्होंने सारे बुझे हुए दीपकों को जलाया। स्वयं रोशन हुए और सारे जगत को रोशन किया। इस दौरान आचार्य शंशाक सागर महाराज, आर्यिका संगीतमती माताजी सहित कई गणमान्य श्रद्धालुओं ने विन्यानजली अर्पित की।