शिर्षक – विद्या गुरु

0
93

इस अमरत्व की गाथा को कहां से शुरू करु,
ज्ञान गुरु नाम को रोशन कर, स्वयं अमरत्व ले गए विद्या गुरु।
दयोदय गोशाला, प्रतिभास्थली,खादी और चरखा दे गए विद्या गुरु,
राग द्वेष की ज्वाला में जलते भक्तों को ज्ञान की बरखा दे गए विद्या गुरु।
इंडिया नहीं भारत बोलों का मंत्र दे गए विद्या गुरु,
खादी को बढ़ावा देने जेलों में भी चरखा यंत्र दे गए विद्या गुरु।
खुद हुए दीक्षित पर सकल परिवार को दीक्षित कर गए विद्या गुरु,
आप तरें, औरों को तारें, श्रमण संस्कृति को जीवंत कर गए विद्या गुरु।
दर्शन, ज्ञान, चारित्र और साधना से ज्ञान गुरु का नाम कर गए विद्या गुरु,
जहां जन्मे, जहां समाधि ली,उस सदलगा और डोंगरगढ़ को धाम कर गए विद्या गुरु।

संस्कृत, प्राकृत, हिंदी, मराठी और कन्नड़ को जानते थे,
और जो इन भाषाओं को नहीं जानते वे भी मस्तक झुकाते थे।
श्रमणशतकम्, निरंजना शतक,भावनाशतक के माध्यम से भक्तों को डागर दे गए,
और तो और पाठ्यक्रम में शामिल मुकमाटी के माध्यम से गागर में सागर दे गए।
सुधा,अभय,समता, अजित प्रमाण और प्रणम्य जैसे कई साधना के साज़ दिए,
उत्कृष्ट,योग और समयसागर सहित पूरे परिवार को साधना के जहाज दिए।
हमने चार दीवारों के घर में रहकर पापों की जंजीर बना दिया,
और वहां पूरे परिवार ने साधना के बल पर घर को मंदिर बना दिया।

भारत मस्ताना उर्फ भरत गांधी नौगामा बांसवाड़ा राजस्थान (राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य विश्व जैन संगठन)
9549177600

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here