शास्त्रीय भाषा प्राकृत के लिए सामाजिक जागरण आवश्यक

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चेन्नई।
श्रुत रत्नाकर (अहमदाबाद) द्वारा बहुश्रुत जयमुनि के सानिध्य में हाल ही आगरा में हुई राष्ट्रीय प्राकृत संगोष्ठी में साहित्यकार डॉ. दिलीप धींग दक्षिण भारत से भाग लेने वाले एकमात्र विद्वान थे। संगोष्ठी में उन्हें भी प्राकृत-दूत (एंबेसैडर ऑफ प्राकृत) बनाया गया। इस क्रम में 7 अक्टूबर 2025 को डॉ. धींग ने श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन एजुकेशनल सोसायटी के महासचिव अभयकुमारजी श्रीश्रीमाल जैन को प्राकृत भाषा की सचित्र वर्णमाला भेंट की। लगभग नब्बे साल पुरानी सोसायटी के अंतर्गत पाँच विद्यालय, दो महाविद्यालय और एक औद्योगिक प्रशिक्षण केन्द्र संचालित हैं। श्रीश्रीमाल ने कहा कि शास्त्रीय (क्लासिकल) भाषा प्राकृत के शिक्षण व अनुसंधान के लिए सबको अपने-अपने स्तर पर प्रयास करने चाहिए। प्रसन्नता है कि अभुषा फाउंडेशन के शोधप्रमुख डॉ. दिलीप धींग सतत प्रयत्नशील हैं।
जयमुनि के मार्गदर्शन में तैयार तथा जय जिनशासन प्रकाशन (दिल्ली) से प्रकाशित इस वर्णमाला में प्राकृत, संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी में शब्द दिए गए हैं। यह अपनी तरह की पहली प्रस्तुति है। 10 अक्टूबर 2025 को स्वाध्याय भवन में श्री जैन रत्न युवक परिषद, तमिलनाडु के अध्यक्ष संदीप ओस्तवाल को डॉ. धींग ने प्राकृत भाषा की सचित्र वर्णमाला भेंट की। ओस्तवाल ने बताया कि परिषद द्वारा ‘विंग्स टू फ्लाई’ जैन पाठशाला की आठ शाखाओं में साढ़े सात सौ विद्यार्थी पंजीकृत हैं। अगले सत्र जनवरी-2026 से प्राकृत शिक्षण को भी पाठ्यक्रम में जोड़ा जाएगा।
कवि डॉ. दिलीप धींग ने बताया कि पिछले साल भारत सरकार ने प्राकृत को शास्त्रीय (क्लासिकल) भाषा का दर्जा प्रदान किया था। अब समाज और शैक्षणिक संस्थानों का कर्तव्य है कि प्राकृत शिक्षण और अनुसंधान के लिए कार्य करें। डॉ. धींग ने बताया कि प्राकृत किसी समय भारत की जनभाषा और राजभाषा रही थी। प्राकृत के जरिए भारतीय भाषाओं की आंतरिक एकता को समझा जा सकता है।
संलग्न फोटो: श्रीश्रीमाल को प्राकृत वर्णमाला भेंट करते डॉ. धींग

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