श्रद्धालुओं ने 48 मंत्रों के साथ प्रभु को अर्पित किये 48 दीपक

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भक्तामर पाठ ध्यान व भक्ति से करने पर होता है कष्टों का निवारण- जैन
यमुनानगर, 20 फरवरी (डा. आर. के. जैन):
रैस्ट हाऊस रोड श्री महावीर दिगम्बर जैन मंदिर के प्रांगण में 48 दीपों का भक्तामर अर्चना का विधान का आयोजन डा. आकाश जैन डा. प्राशुका जैन परिवार के सौजन्य से किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता जैन महिला मण्डल की महामंत्री सुमन जैन की तथा संचालन पं. शील चंद जैन ने किया। कार्यक्रम का शुभारम्भ णमोकार महामंत्र के गुंजन व दीप प्रवज्जलन कर किया गया। भावना जैन ने बताया कि स्वास्तिक माण्डले पर 48 दीपों से भक्तामर अर्चना व आराधना की गई। उन्होंने बताया कि प्रत्येक श्लोक-मंत्रों के साथ भिन्न-भिन्न परिवारों के द्वारा प्रभु जी को दीपक अर्पित किया गया। इसमें सर्वविद्यन विनाशक, सर्व सिद्धि दायक, जल-जन्तु भयमोचक, नेत्र रोग संहारक, सरस्वती विद्या प्रसारक, सर्व संकट निवारक, सर्वारिष्ट योग निवारक, भय-पाप नाशक, कूकर विष निवारक, वांछित रूप प्रदायक, लक्ष्मी सुखदायक, आधि-व्याधि नाशक, सम्मान-सौभाग्य संवर्धक, दिव्य ध्वनि प्रतिहार्य, लक्ष्मी प्रदायक, जलोदरादि रोग विनाशक आदि काव्यों के साथ आराधना की गई। मंजू जैन ने संबोधित करते हुये कहा कि भक्तामर विधान एक अनोखी विधा है, जिसको भिन्न-भिन्न रंग रूप में पाया जाता है। इसके अध्ययन व पाठ से इसका चमत्कार देखने को मिलता है। भक्तामर का पाठ ध्यान व भक्ति से करने पर कष्टों का निवारण होता है, दुखों की समाप्ति होती है। इसका प्रभाव सभी कष्टों को मिटा जीवन को सुखमय व शांतिमय बनाता है। उन्होंने आगे कहा कि भगवान किसी को कुछ नहीं देते, परंतु भगवान की भक्ति सब कुछ दे देती है। पुण्य रूपी सुगंध से भक्तों के मन खिल जाते है। आत्मा रूपी वृक्ष से लिपटे हुये कर्म रूपी बंधन खुल जाते है। आदिनाथ स्त्रोत जो भक्ति रस का अद्वितीय महाकाव्य है उसकी रचना उस समय हुई जब राजा भोज के दरबार में कवि कालिदास तथा वररुचि ने साम्प्रदायिकता वश आचार्य प्रवर मानतंगु को राजा की आज्ञानुसार पकड़ कर 48 तालों के अंदर कोठरियों में बंद करवा दिया उस समय आचार्य श्री ने आदिनाथ स्त्रोत की रचना की। स्त्रोत के प्रभाव से ताले व जंजीरे अपने आप टूट गये और वह मुक्त हो गए। अंत में राजा ने हार स्वीकार कर आचार्य से क्षमा मांगी और आचार्य श्री से प्रभावित होकर जैन धर्म अपना लिया। उन्होंने आगे बताया कि स्वास्तिक चिन्ह पर 48 दीपों से भक्तामर अर्चना की गई, और प्रत्येक श्लोक के साथ परिवारों द्वारा दीप जला करा प्रभु का अर्पित किया गया। पाठ के उपरांत आरती की गई। इस अवसर पर भारी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।
फोटो नं. 1 एच.
पाठ करते व आरती करते श्रद्धालु……………(डा. आर. के. जैन)

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