ललितपुर। भारत की प्राचीन श्रमण संस्कृति की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ‘जिन’ परम्परा ने क्षमा को पर्व के रूप में प्रचलित किया है। इसे क्षमावाणी भी कहते हैं। क्षमा को सभी धर्मों और संप्रदायों में श्रेष्ठ गुण करार दिया गया है। मनोविज्ञानी भी क्षमा या माफी को मानव व्यवहार का एक अहम हिस्सा मानते हैं। उनका कहना है कि यह इंसान की जिन्दगी का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू है। क्षमावाणी पर प्रमुख मनीषियों, विचारकों के विचार यहाँ प्रस्तुत हैं।
1.क्षमावणी का पर्व सौहार्द, सौजन्यता और सद्भावना का पर्व :
क्षमा करने और क्षमा माँगने के लिए विशाल हृदय की आवश्यकता होती है। तीर्थंकरों ने सम्पूर्ण विश्व में शांति की स्थापना के लिए सूत्र दिया है—
खम्मामि सव्वजीवाणं, सव्वे जीवा खमंतु मे।
मित्ती मे सव्वभूदेसु, वेरं मज्झम ण केणवि।।
अर्थात मैं सभी जीवों को क्षमा करता हूँ। सभी जीव मुझे भी क्षमा करें। मेरी सभी जीवों से मैत्री है। किसी के साथ मेरा कोई वैर भाव नहीं है।
क्षमावणी का पर्व सौहार्द, सौजन्यता और सद्भावना का पर्व है। आज के दिन एक दूसरे से क्षमा मांगकर मन की कलुषता को दूर किया जाता है।
-मुनि श्री अक्षयसागर जी महाराज
(आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के प्रभावक शिष्य जिनका मड़ावरा में चातुर्मास चल रहा है।)
2.क्षमा वीरों को आभूषण है:
मानवता जिन गुणों से समृद्ध होती है उनमें क्षमा प्रमुख और महत्वपूर्ण है। कषाय के आवेग में व्यक्ति विचार शून्य हो जाता है और हिताहित का विवेक खोकर कुछ भी करने को तैयार हो जाता है। लकड़ी में लगने वाली आग जैसे दूसरों को जलाती ही है, पर स्वयं लकड़ी को भी जलाती है। इसी तरह क्रोध कषाय को समझ कर उस पर विजय पा लेना ही क्षमा धर्म है।क्षमा वीरों को आभूषण है।
-ब्र. जयकुमार निशान्त भैया
निर्देशक प्रागैतिहासिक तीर्थक्षेत्र नवागढ़ एवं महामंत्री अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्रि परिषद
3. क्षमा में बहुत बड़ी शक्ति होती है :
मानव जीवन है तो भूल और गलतियां मानव स्वाभाव के कारण होना निश्चित है हम उन गलतियों और भूलो को समयाभाव और इस भागदौड़ भरी जिंदगी में आपसे क्षमा याचना भी नहीं कर पाते हैं। क्षमावाणी पर्व पर हमें अवसर मिलता है सालभर हुई अपनी भूलों के लिए सभी से क्षमा मांगने का।
क्षमा में बहुत बड़ी शक्ति होती है। क्षमाशीलता का भारी महत्व है।
प्रदीप जैन आदित्य
पूर्व केंद्रीय मंत्री भारत सरकार
4.क्षमावणी पर्व हमारी वैमनस्यता, कलुषता धोता है :
क्षमावणी पर्व हमारी वैमनस्यता, कलुषता बैर—दुश्मनी एवं आपस की तमाम प्रकार की टकराहटों को समाप्त कर जीवन में प्रेम, स्नेह, वात्सल्य, प्यार, आत्मीयता की धारा को बहाने का नाम है, हम अपनी कषायों को छोड़ें, अपने बैरों की गांठों को खोलें, बुराइयों को समाप्त करें, बदले, प्रतिशोध की भावना को नष्ट करें, नफरत—घृणा, द्वेष बंद करें, आपसी झगड़ों, कलह को छोड़ें।अनुसंधानकर्ताओं ने यह निष्कर्ष निकाला है कि लम्बे समय तक मन में बदले की भावना, ईर्ष्या—जलन और दूसरों के अहित का चिन्तन और प्रयास करने पर मनुष्य भावनात्मक रूप से बीमार रहने लगता है।
-डॉ सुनील जैन संचय
मंत्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी उत्तर-उत्तराखंड
5. अन्तर्मन को साफ करने का पर्व :
क्षमा ने ही युगों-युगों से मानव-जाति को नष्ट होने से बचाया है।जीवन यात्रा में चलते- चलते स्वार्थ, मोह, अज्ञानतावश जाने-अनजाने हुई समस्त भूल के लिए सच्चे स्वच्छ हृदय से विश्व मैत्री दिवस ‘क्षमावाणी’ पर क्षमा मांगकर अन्तर्मन को साफ किया जाता है।
-संजीव जैन शास्त्री महरौनी
संयुक्तमंत्री विद्वत् परिषद
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