क्षमावाणी : मन का कलुष धोने का पर्व – डॉ. सुनील जैन संचय

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भारत की प्राचीन श्रमण संस्कृति की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ‘जिन’ परम्परा ने क्षमा को पर्व के रूप में प्रचलित किया है। इसे क्षमावाणी भी कहते हैं।
विश्व के इतिहास में यह पहला पर्व है, जिसमें शुभकामना, बधाई, उपहार न देकर सभी जीवों से अपने द्वारा जाने-अनजाने में किए गए समस्त अपराधों के लिए क्षमायाचना करते हैं। क्षमा करने और क्षमा माँगने के लिए विशाल हृदय की आवश्यकता होती है। तीर्थंकरों ने सम्पूर्ण विश्व में शांति की स्थापना के लिए सूत्र दिया है—
खम्मामि सव्वजीवाणं, सव्वे जीवा खमंतु मे।
मित्ती मे सव्वभूदेसु, वेरं मज्झम ण केणवि।।
अर्थात मैं सभी जीवों को क्षमा करता हूँ। सभी जीव मुझे भी क्षमा करें। मेरी सभी जीवों से मैत्री है। किसी के साथ मेरा कोई वैर भाव नहीं है।
क्षमावणी का पर्व सौहार्द, सौजन्यता और सद्भावना का पर्व है। आज के दिन एक दूसरे से क्षमा मांगकर मन की कलुषता को दूर किया जाता है। मानवता जिन गुणों से समृद्ध होती है उनमें क्षमा प्रमुख और महत्वपूर्ण है। कषाय के आवेग में व्यक्ति विचार शून्य हो जाता है। और हिताहित का विवेक खोकर कुछ भी करने को तैयार हो जाता है। लकड़ी में लगने वाली आग जैसे दूसरों को जलाती ही है, पर स्वयं लकड़ी को भी जलाती है। इसी तरह क्रोध कषाय को समझ पर विजय पा लेना ही क्षमा धर्म है।
रामधारी सिंह दिनकर ने कहा है कि क्षमा वीरों को ही सुहाती है। उन्होंने लिखा है कि- क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो, उसका क्या जो दंतहीन, विषहीन, विनीत सरल हो।।
क्षमा को सभी धर्मों और संप्रदायों में श्रेष्ठ गुण करार दिया गया है। जैन संप्रदाय में इसके लिए एक विशेष दिन का आयोजन क्षमावाणी के रूप में  किया जाता है। मनोविज्ञानी भी क्षमा या माफी को मानव व्यवहार का एक अहम हिस्सा मानते हैं। उनका कहना है कि यह इंसान की जिन्दगी का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू है।
क्षमावणी पर्व हमारी वैमनस्यता, कलुषता बैर—दुश्मनी एवं आपस की तमाम प्रकार की टकराहटों को समाप्त कर जीवन में प्रेम, स्नेह, वात्सल्य, प्यार, आत्मीयता की धारा को बहाने का नाम है, हम अपनी कषायों को छोड़ें, अपने बैरों की गांठों को खोलें, बुराइयों को समाप्त करें, बदले, प्रतिशोध की भावना को नष्ट करें, नफरत—घृणा, द्वेष बंद करें, आपसी झगड़ों, कलह को छोड़ें।अनुसंधानकर्ताओं ने यह निष्कर्ष निकाला है कि लम्बे समय तक मन में बदले की भावना, ईर्ष्या—जलन और दूसरों के अहित का चिन्तन और प्रयास करने पर मनुष्य भावनात्मक रूप से बीमार रहने लगता है।जीवन में जब भ‍ी कोई छोटी-बड़ी परेशानी आती है तब व्यक्ति अपने मूल स्वभाव को छोड़कर पतन के रास्ते पर चल पड़ता है। जो कि सही नहीं है, हर व्यक्ति को अपना आत्म‍चिंतन करने के पश्चात सत्य रास्ता ही अपनाना चाहिए। हमारी आत्मा का मूल गुण क्षमा है। जिसके जीवन में क्षमा आ जाती है उसका जीवन सार्थक हो जाता है। क्षमायाचना और क्षमादान चाहे दो आत्मीय जनों के बीच हो अथवा समूहों या राष्ट्रों के बीच , यदि ईमानदारी के साथ क्षमायाचना की जाती है , तो यह अपमान की भावना का निराकरण करती है। क्षमा में बहुत बड़ी शक्ति होती है। क्षमाशीलता का भारी महत्व है , पर हम इसके बारे में बहुत कम ध्यान देते हैं।
क्षमा का जीवन में बहुत बड़ा महत्व है। अगर इंसान कोई गलती करे और उसके लिए माफी मांग ले तो सामने वाले का गुस्सा काफी हद तक दूर हो जाता है। जिस तरह क्षमा मांगना व्यक्तित्व का एक अच्छा गुण है, उसी तरह किसी को क्षमा कर देना भी इंसान के व्यक्तित्व में चार चांद लगाने का काम करता है।
क्षमायाचना करने के लिए हममें अपनी गलती , असफलता और कमजोरी को स्वीकार करने की क्षमता होनी जरूरी है। पर निरंतर जीत के लिए हम इतने आतुर होते हैं कि अपनी गलतियों और कमजोरियों को स्वीकार करने की हमें फुरसत ही नहीं मिलती।
क्षमा ने ही युगों-युगों से मानव-जाति को नष्ट होने से बचाया है

किसी को किसी की भूल के लिए क्षमा करना और आत्मग्लानि से मुक्ति दिलाना एक बहुत बड़ा परोपकार है। क्षमा करने की प्रक्रिया में क्षमा करने वाला क्षमा पाने वाले से कहीं अधिक सुख पाता है।अगर आप किसी की भूल को माफ़ करते हैं तो उस व्यक्ति की सहायता तो करते ही हैं साथ ही साथ स्वयं की सहायता भी करते हैं। अत: मन के बैर-भाव के विसर्जन करने के इस अवसर को अपने हाथ से जाने न दें और इसका लाभ उठाते हुए सभी से क्षमा-याचना करें ताकि हमारा मन और आत्मा शुद्ध हो सकें। साथ ही दूसरे के मन को भी हम शांति पहुंचा सकें, यही हमारा प्रयास होना चाहिए।

किसी ने ठीक ही लिखा है-
जैसा भी हो सम्बन्ध बनाये रखिये।
दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिये।।

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