क्षमा मांगने से पापों का क्षय होता है -मुनिश्री विलोकसागर

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मुरैना (मनोज जैन नायक) सभी धर्मों में क्षमा धर्म को महान माना गया है । खासकर जैन धर्म में क्षमा धर्म को सर्वोच्च स्थान दिया गया है । क्षमा मांगने से कोई छोटा नहीं होता । क्षमा मांगने वाला साहसी, धीर वीर और गंभीर होता है। क्षमा मांगने से पाप नहीं लगता बल्कि क्षमा मांगने से पापों का क्षय होता है । तुच्छ व्यक्ति कभी क्षमा नहीं मानता, तुच्छ व्यक्ति कभी किसी को क्षमा नहीं करता । महान व्यक्ति ही सभी को क्षमा करता है और सभी से क्षमा मांगता है । “क्षमा वीरस्य भूषणम” क्षमा वीरों का आभूषण है, वीर और साहसी व्यक्ति ही क्षमा कर सकता है । कायर और डरपोक व्यक्ति न क्षमा कर सकता है, न ही वह क्षमा मांग सकता है । संसार में रहते हुए अनेकों त्रुटियां होती हैं, अनेकों गलतियां होती हैं । व्यावहारिकता में हम एक दूसरे को भला बुरा भी कह देते हैं। संसार में रहते हुए हम एक दूसरे के प्रति कषाय पाल लेते हैं। इन्हीं कषायों के चक्कर में हम एक दूसरे से वैर भाव पाल लेते है । यदि अपने समय रहते सभी प्राणी मात्र को क्षमा नहीं किया तो हमारा अंतिम समय बहुत बुरा व्यतीत होगा । उक्त उद्गार जैन संत मुनिश्री विलोक सागर महाराज ने बड़े जैन मंदिर में धर्म सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए ।
दिगंबर जैन संत ने क्षमा के महत्व को प्रतिपादित करते हुए बताया कि जैन दर्शन में क्षमा का विशेष महत्व है । जैन श्रावक श्राविकाओं के लिए भादो के महीने में पर्युषण पर्व के अंतिम दिन क्षमावाणी पर्व मनाया जाता है । इस सभी जैन धर्मावलंबी एक दूसरे से क्षमा याचना करते हैं। सभी लोग सामने वाले से क्षमा मांगते हैं और स्वयं भी उसे क्षमा करते है ।
जैन मुनिराज, साधु, साध्वियों की दैनिक चर्या का एक अंग प्रतिक्रमण है । वे प्रतिदिन प्रतिक्रमण करते हैं। वे प्रतिक्रमण के माध्यम से संसार के प्राणी मात्र से क्षमा मांगते हैं और उन्हें भी क्षमा करते है ।
पूज्य मुनिराज ने बताया कि हम सभी संसार में रहते हुए पुण्य पाप की चर्चा करते है । कर्म सिद्धांत की बात करते हैं, कर्म सिद्धांत का प्रचार प्रसार करते हैं। लेकिन हमारे ऊपर थोड़ा सा भी संकट आ जाए तो हम बौखला जाते है, घबराहट में सब कुछ भूल जाते है । संकट के समय, विपरीत परिस्थितियों के समय हमारा सारा ज्ञान छूमंतर हो जाता है । हमारी सारी श्रद्धा समाप्त हो जाती है । हमारी सबसे बड़ी गलती यही है । हमें विपरीत परिस्थितियों में भी श्रद्धावान रहना चाहिए । हमें संकट के समय में समता रखना चाहिए । हमारे जीवन में कितनी भी विकट परिस्थिया उत्पन्न हो जाएं, हमें श्रद्धा भक्ति पूजा उपासना नहीं छोड़नी चाहिए ।
आज से मुनिश्री लेगे समयसार की विशेष क्लाश
बड़े जैन मंदिर में विराजमान जैन संत मुनिश्री विलोक सागर महाराज एवं मुनिश्री विबोधसागर महाराज जैन सिद्धांत के सर्वोच्च ग्रन्थ समयसार की विषय कक्षा लगाकर जैन श्रावक श्राविकाओं को धर्म का ज्ञान कराते हुए जीवन जीने की कला का प्रशिक्षण देंगे ।

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