क्षमा धारण करना या क्षमा याचना करना आओ विश्लेषण करें* संजय जैन बड़जात्या कामां

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विश्व के सभी धर्म करुणा, मानवता एवं दीन पर उपकार की भावना रखते है।सभी धर्म में कमोबेश दान को भी महत्वपूर्ण माना गया है किंतु किसी भी धर्म में क्षमा का विस्तृत विवेचन नहीं किया गया जो कि जैन धर्म में किया गया है।जैन धर्म वास्तविकता,मौलिकता और वैज्ञानिकता की कसौटी पर खरा उतरने वाला एक ऐसा धर्म है। जो प्रत्येक विषय को गहराई तक चिंतन और मंथन करता है। जैन धर्म में ही रत्न त्रय की साधना करते हुए दस धर्म क्षमा,मार्दव,आर्जव,सत्य,शौच,संयम,तप,त्याग,अकिंचन, ब्रह्मचर्य की प्राप्ति का वर्णन मिलता है। क्षमा से ही प्रारंभ होकर क्षमा पर ही अंत किया जाता है।
   जैन धर्म शास्त्रों व संतों के माध्यम से यह अनवरत रूप से कहा जाता है कि यदि आप क्षमा को धारण कर लोगे तो दस धर्म स्वतः ही चले आएंगे अर्थात सबसे पहले क्षमा धर्म को ही धारण करना आवश्यक है *क्षमा वीरस्य भूषणम्* अर्थात क्षमा वीरों का आभूषण है। क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात सीधा सा अर्थ है कि जो बड़ा है वह क्षमा को धारण करें छोटे से गलती होना स्वाभाविक क्रिया है। किंतु जब तक क्रोध ने घट कर रखा है तब तक क्षमा का आना तो असंभव सा प्रतीत होता है। क्षमा का आगमन तभी हो सकता है जब क्रोध का शमन हो। क्रोध को बाह्य मार्ग दिखलाया जाए और आंतरिक घट में क्षमा को समावेश करने का मौका दिया जाए।
    पूजन विधि में पंडित द्यानतराय द्वारा लिखा गया है कि *उत्तम क्षमा गहो रे भाई, इह भव जस पर भव सुखदाई* अर्थात प्रत्येक मानव को क्षमा धारण करनी चाहिए इस भव में यश और अगले भव में भी सुखदाई होती है। जैन आगम, शास्त्रों में भी क्षमा को धारण करने का विषय बताया गया है। पंडित द्यानत राय ने यह भी  स्पष्ठ लिखा है कि *धरिये क्षमा विवेक,कोप न कीजे पीतमा* विवेकी जीवों को क्षमा तथा विवेक का त्याग नहीं करना चाहिए तथा कोप (क्रोध, गुस्सा) नहीं करना चाहिए। विवरण से यह विश्लेषण निकलता है कि क्षमा धारण करना चाहिए ना की याचना करना चाहिए।
      वर्तमान परिस्थितियों में इस महान पर्व को क्षमा याचना पर्व के रूप में मनाया जाने लगा है जो की एक प्रकार से क्षमा पर्व के बिल्कुल विपरीत है। सभी यह सोचते हैं कि जिन्होंने गलती की है वह आकर के क्षमा मांगेगा और स्वयं के मन में क्रोध को पाले रखते हैं जबकि क्षमा धर्म तो स्पष्ट कह रहा है कि क्रोध रूपी संक्लेश को समाप्त करो और छमा को धारण करो ना कि क्षमा याचना की बाट जोहो। क्षमा याचना से पूर्व क्षमा करना ही क्षमा धर्म का मूल उद्देश्य और सार्थकता है।
*संजय जैन बड़जात्या कामां,सवांददाता जैन गजट*

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