आचार्य विशुद्ध सागर जी
नूतन वेदी में विराजे त्रिलोकी नाथ, मंदिर हुआ पूर्ण
मूलनायक भगवान को विराजमान करने का सौभाग्य मिला अनिल जैन को
खरगोन।
श्री महावीर दिगंबर जैन मंदिर वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव मूल नायक भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमा सहित 11 प्रतिमाओं की नूतन वेदी में स्थापना के साथ संपन्न हुआ।
प्रातः काल राधा कुंज सभागृह से बग्गियों में निकला भव्य जुलूस दर्शनीय रहा ।
तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के जय जय कारों के साथ श्रमणाचार्य अहिंसा परमो धर्म के उपदेशक,आध्यात्मिक योगी, धरती के देवता, शताब्दी देशनाकार श्री विशुद्ध सागर जी महाराज ससंघ की पावन उपस्थिति में शोभायात्रा श्री महावीर दिगंबर जैन मंदिर पोस्ट ऑफिस चौराहा पहुंची ।
जहां मूलनायक भगवान महावीर को नूतन वेदी में विराजमान करने का सौभाग्य प्रखर अनिल रीना जैन सेंट्रो को मिला।
शांतिनाथ भगवान अरुण, तरुण,वरुण धनोते, सुमतिनाथ भगवान प्रदीप राजमल जैन, शीतलनाथ भगवान गजेंद्र चौधरी इंदौर, चंद्रप्रभ भगवान स्वर्ण प्रभा सुरेंद्र जैन,सौरभ जैन, पदमप्रभ भगवान डॉक्टर अंकिता जैन, बाहुबली भगवान प्रवीण जैन बड़वाह, आदिनाथ भगवान प्रदीप जैन दाल वाले, महावीर भगवान विमलचंद्र जैन वकील,मुनिसुव्रतनाथ भगवान हुकुमचंद जैन लड्डू परिवार, पार्श्वनाथ भगवान अशोक अभिषेक जैन, सिद्ध भगवान रमेश चंद्र जैन ने नूतन वेदी में विराजमान करने का सौभाग्य प्राप्त किया।
सबके दिन एक जैसे नहीं होते हैं
आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने अपनी मंगल देशना में कहा कि जीवन में हर किसी का महत्व है।
किसी के महत्व को हम कम नहीं कर सकते हैं, सैनिक, डॉक्टर, इंजीनियर,शिक्षक, किसान, विद्वान,लेखक सबका महत्व है। आज हम देश में स्वतंत्र विचरण कर रहे हैं।
यहां इतना बड़ा महोत्सव हो रहा है यह सब इसलिए संभव हुआ कि देश का सैनिक सीमा पर हमारी सब की रक्षा कर रहा है।
सैनिक सीमा पर गोली खाता है तो डॉक्टर उसकी चिकित्सा करता है, सभी की अपनी अपनी जिम्मेदारियां हैं ।
कोई भी छोटा या बड़ा नहीं होता है,कोई आज गरीब है तो कल अमीर होगा।
ध्यान रहे सब के दिन एक जैसे नहीं होते हैं ।आचार्य श्री ने कहा कि जिस प्रकार कमरा खाली छोड़ने से वहां कचरा, जीव जंतुओं का बसेरा हो जाता है, इसी प्रकार बुद्धि को खाली छोड़ने से बुद्धि में कचरा हो जाता है ।
बुद्धि को हमेशा सक्रिय रखें, समाज को हमेशा विद्वानों का सम्मान करना चाहिए,लेकिन विद्वान को कभी धन का भिखारी नहीं बनना चाहिए ।
पालकों को मार्गदर्शन देते हुए उन्होंने कहा कि बच्चों पर कभी भी अपनी भावनाएं नहीं थोपना चाहिए,देखा-देखी उन्हें बड़ा मत बनाओ, उन्हें उनकी योग्यता अभिरुचि से आगे बढ़ने दो।
माता-पिता द्वारा इच्छाए सौंपने से बच्चे डिप्रेशन में आते हैं और वह आत्महत्या तक कर लेते हैं।
मंदिर पर कलश लगाया, ध्वज दंड स्थापित
मीडिया प्रभारी राजेंद्र जैन महावीर और आशीष जैन ने बताया कि भगवान विराजमान होने पर प्रथम शांतिधारा अरिहंत जितेंद्र जैन व प्रथम अभिषेक दरियाव चंद्र जैन खंडवा ने किया। मंदिर उद्घाटन अरुण, तरुण, वरुण धनोते ,मुख्य शिखर कलश सुनील वेद परिवार,अन्य कलश मनीष बड़जात्या, ऋतुराज विजय जैन, संजय वेद, बसंत जैन, मोहित झांझरी,बसंत काला,मनीष सनत बड़जात्या ने मंदिर पर शिखर व ध्वज दंड की स्थापना की।
आचार्य श्री का पाद प्रक्षालन अरुण, अरविंद,आकाश
जैन परिवार ने वह शास्त्र भेंट दिगंबर जैन समाज अध्यक्ष विनोद जैन परिवार,बरखा बड़जात्या बाकानेर ने किया।
प्रातःकाल महाराज श्री ने ब्रज विहार टाउन शिप स्थित मंदिर में भगवान के दर्शन किए। पाद प्रक्षालन शैलेश,नरेंद जैन ने किया।
सिद्धवरकूट के लिए हुआ पद विहार
मौसम ने ली अचानक करवट
42 डिग्री तापमान में आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज ससंघ ने शाम 4 बजे सिद्धवरकूट के लिए पद विहार कर दिया। पद विहार के समय तेज धूप खिली हुई थी कि अचानक सूरज को बादलों ने छुपा लिया मानो प्रकृति भी संतो के साथ चलने को विवश हुई।
खरगोन जैन समाज में अत्यंत दुखी मन से अचार्य संघ को विदाई दी ।महिला- पुरुष, युवा, बच्चें सभी की आंखें नम थी । सेठी टोयोटा पर उनका पल्लव सेठी व परिवार ने पाद प्रक्षालन किया।
खरगोन समाज का उत्साह सराहनीय
आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने खरगोन वासियों के उत्साह की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होंने आयोजन में पंचकल्याणक जैसा उत्साह दिखाया और गजरथ चलाने जैसा पुण्य कमाया ।
आयोजन स्थल पोरवाड सहायक फंड द्वारा आयोजन के दौरान चाय, नींबू पानी, शीतल पेय की व्यवस्था की गई ।
आयोजन समिति के संयोजक अनिल जैन, कार्य अध्यक्ष प्रदीप जैन, महामंत्री अरुण धनोते,जैन समाज अध्यक्ष विनोद जैन, संरक्षक विजय जैन, प्रदीप जैन, सुनील ठेकेदार,पंकज गोधा,यश जैन,मनीष बडजात्या , प्रमोद छाबड़ा, कोषाध्यक्ष जितेंद्र जैन, विवेक जैन, कीर्ति जैन,आशीष जैन लोनारा, महिला मंडल, युवा मंडल का सराहनीय सहयोग प्राप्त हुआ।
संचालन राजेंद्र जैन महावीर सनावद ने किया।
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